देहरादून (किरणकांत शर्मा): हरिद्वार जमीन खरीद मामले में लापरवाही डीएम कर्मेंद्र सिंह को आखिरकार भारी पड़ गई. लाखों की जमीन करोड़ों में खरीदने वाले इस बड़े घोटाले में जांच अधिकारी ने जिलाधिकारी को लापरवाही और अनदेखी करने का दोषी पाया है. इसके बाद हरिद्वार के डीएम कर्मेंद्र सिंह को सस्पेंड करके सचिव कार्मिक एवं सतर्कता विभाग उत्तराखंड शासन के कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया है.
उत्तराखंड में दूसरी बार हुआ किसी डीएम पर एक्शन: ये दूसरा मामला है जब जिलाधिकारी के पद पर रहते हुए उत्तराखंड में किसी आईएएस अधिकारी पर कार्रवाई हुई है. डीएम को सस्पेंड करने का ये पहला मामला है. इससे पहले पटवारी भर्ती घोटाले में डीएम का टर्मिनेशन हुआ था. तब तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी के समय पौड़ी के डीएम एसके लाम्बा बर्खास्त किये गए गए थे.
क्या था मामला: बात उस समय की है जब राज्य गठन के बाद पहली बार पटवारी की भर्ती होनी थी. साल 2002 के अंत में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने इस भर्ती को करवाने का निर्णय लिया था. उस वक्त उत्तराखंड सरकार में राजस्व मंत्री की कमान हरक सिंह रावत के पास थी. यह भर्ती पौड़ी के तत्कालीन सीडीओ कुंवर राज कुमार और तत्कालीन जिलाधिकारी एसके लाम्बा के अंडर हो रही थीं. ऐसे में अनियमितता पाए जाने के बाद डीएम को पहले सस्पेंड किया गया और बाद में उनकी बर्खास्तगी हो गई.
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने नगर निगम हरिद्वार में हुए जमीन घोटाले पर सख्त रुख अपनाते हुए, दो आईएएस, एक पीसीएस अधिकारी सहित सात अधिकारियों को निलंबित करने के निर्देश दिए हैं, इस मामले में तीन अधिकारी पूर्व में निलंबित हो चुके हैं, जबकि दो की पूर्व में सेवा समाप्त की जा…
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) June 3, 2025
हरिद्वार भूमि खरीद घोटाले में गिरी गाज: हरिद्वार भूमि खरीद घोटाला मामला साल 2024 में उस वक्त का है, जब राज्य में कई स्थानों पर नगर निगम और नगर पालिका के चुनाव हो रहे थे. नगर निगम का पूरा का पूरा सिस्टम नगर आयुक्त के पास था. उस वक्त हरिद्वार नगर निगम में तैनात नगर आयुक्त वरुण चौधरी जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
ये है पूरा मामला: इस दौरान नगर निगम ने हरिद्वार के सराय स्थित 33 बीघा जमीन को खरीदा था. आखिरकार 33 बीघा जमीन को किस पर्पज से खरीदा गया, ये अभी तक स्पष्ट नहीं है. खैर जमीन खरीदने तक तो मामला सब कुछ सही था, लेकिन जिस जगह यह जमीन थी उस जगह पर या कहें उसके आसपास पहले से ही नगर निगम कूड़ा डंप करने का काम कर रहा था. ऐसे में जिस जमीन के रेट हजारों रुपए या लाखों रुपए थे, उस जमीन को नगर निगम ने सरकारी बजट से 58 करोड़ रुपए में खरीद लिया.
कौड़ियों की भूमि, करोड़ों में खरीदी: किसी को यह मालूम नहीं था कि आखिरकार कौड़ियों के दाम बिकने वाली जमीन को क्यों इतने ज्यादा पैसे देकर खरीदा गया. इसके बाद हरिद्वार नगर निगम के चुनाव हुए. नगर निगम की कुर्सी पर बीजेपी उम्मीदवार बैठ गईं. धीरे-धीरे यह मामला सार्वजनिक हुआ और बात इतनी तेजी से शहर में फैली कि विपक्ष सहित स्थानीय लोगों ने भी इस पर खुलकर चर्चा करनी शुरू कर दी कि आखिरकार आम जनता के पैसों का इस तरह से दुरुपयोग क्यों किया जा रहा है. मामला इतना बढ़ा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तक यह अनियमितता और अधिकारियों की कारगुजारी पहुंच गई.
जांच में दोषी पाए गए अफसर: उसके बाद आईएएस रणवीर सिंह चौहान को इस मामले की जांच सौंपी गई. जांच में 7 अफसरों को प्रथम दृष्टया गड़बड़ी और लापरवाही का दोषी पाया गया. 1 मई को 4 अफसरों का सस्पेंशन हुआ था. अब 3 जून को हरिद्वार डीएम कर्मेंद्र सिंह और आईएएस वरुण चौधरी समेत एक पीसीएस अफसर अजयवीर को सस्पेंड कर दिया गया है.
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