नई दिल्ली: हाल ही में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए. इनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना भी शामिल है.इस जल संधि को निलंबित करने के कुछ दिनों बाद जल संसाधन मंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए योजना तैयार कर रही है कि पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान को न जाए.
वहीं, 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने के केंद्र के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल किया कि क्या भारत के पास पाकिस्तान में बहने वाले पानी को स्टोर करने के लिए पर्याप्त बांध हैं. खड़गे ने इस बात पर भी स्पष्टता मांगी कि देश सिंधु जल संधि के निलंबन से निपटने की योजना कैसे बना रहा है.
मोदी सरकार द्वारा सिंधु जल संधि पर लिया गया ऐतिहासिक निर्णय पूर्णतः न्यायसंगत और राष्ट्रहित में है।हम ख्याल रखेंगे की पाकिस्तान में सिंधु नदी का एक बूंद पानी भी नहीं जाए । pic.twitter.com/yJhdzdDAAb
— C R Paatil (@CRPaatil) April 25, 2025
सिंधु नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान के पास
2010 में कराची काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस और पाकिस्तान-भारत नागरिक मैत्री मंच द्वारा आयोजित समारोह में भारत के उच्चायुक्त ने कहा था कि जो लोग पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि इसने सिंधु नदी प्रणाली के पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को दिया. संधि ने पूर्वी नदियों (सतलज, व्यास और रावी) - जिसका औसत प्रवाह 33 एमएएफ है. इसका उपयोग भारत को दिया, जबकि पश्चिमी नदियों, अर्थात सिंधु, झेलम और चिनाब - जिसका औसत प्रवाह 136 एमएएफ है - का उपयोग पाकिस्तान को दिया.
उन्होंने कहा कि चूंकि पाकिस्तान 15 अगस्त 1947 तक पूर्वी नदियों से पानी की सप्लाई पर निर्भर था, इसलिए भारत ने पश्चिमी नदियों और अन्य स्रोतों से प्रतिस्थापन नहरों के निर्माण के लिए पाकिस्तान को 62 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग का भुगतान करने पर भी सहमति व्यक्त की.
पानी का प्रवाह रोकना कितना संभव?
प्रसिद्ध जल संसाधन विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने बताया कि भारत के लिए उच्च प्रवाह अवधि के दौरान पश्चिमी नदियों से अरबों क्यूबिक मीटर पानी रोक पाना लगभग असंभव है. साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल से जुड़े क्षेत्रीय जल संसाधन विशेषज्ञ ठक्कर ने ईटीवी भारत को बताया, "भारत में बुनियादी ढांचा ज्यादातर नदी-प्रवाह जलविद्युत संयंत्रों का है, जिन्हें किसी बड़े भंडारण की आवश्यकता नहीं है. भारत में जलविद्युत संयंत्र टर्बाइनों को घुमाने और बड़ी मात्रा में पानी रोके बिना बिजली पैदा करने के लिए बहते पानी के बल का उपयोग करते हैं."
ठक्कर ने बताया कि अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के कारण भारत संधि के तहत झेलम, चिनाब और सिंधु नदी के पानी के अपने 20 प्रतिशत हिस्से का भी पूरा उपयोग नहीं कर पा रहा है.

पानी रोकने के लिए कितने बांध की जरूरत?
अनुमान के मुताबिक भारत को वर्तमान में पाकिस्तान में बहने वाले पानी को स्टोर करने के लिए भाखड़ा नांगल के साइज के कम से कम 22 बांधों की आवश्यकता होगी. बता दें कि भाखड़ा नांगल डैम में कुल 6.122 MAF पानी रोका जा सकता है.
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार पश्चिमी नदियों से हर साल औसतन लगभग 136 मिलियन एकड़-फुट (MAF) पानी बहता है. गौरतलब है कि 1 एमएएफ पानी 10 लाख एकड़ भूमि को 1 फुट गहरे पानी में डुबो सकता है या तीन दिल्ली-एनसीआर के बराबर क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले सकता है. ऐसे में अगर पश्चिमी नदियों से बहने वाला पूरा पानी रोक दिया जाए, तो यह 42241 वर्ग किलोमीटर में फैले पूरे जम्मू कश्मीर को 13 फीट पानी में ढक सकता है.
इस जल को रोकने का सबसे व्यावहारिक तरीका स्टोरेज बांध बनाना है, ताकि सूखे मौसम में कृषि और बिजली उत्पादन के लिए पानी का उपयोग किया जा सके, लेकिन संधि भारत को पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों पर स्टोरेज बांध बनाने की अनुमति नहीं देती है. इसलिए, वर्तमान में इनमें से किसी भी नदी पर एक भी बांध मौजूद नहीं है. यहां तक कि रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना जलाशयों में भी भारत 3.6 MAF से अधिक पानी नहीं रोक सकता है.
पाकल दुल स्टोरेज
पाकल दुल भारत द्वारा किश्तवाड़ जिले में चेनाब नदी की सहायक नदी पर बनाया जा रहा पहला स्टोरेज केंद्र है. इसमें 125.4 मिलियन क्यूबिक मीटर या 0.1 MAF पानी जमा हो सकता है. नवंबर 2021 में तत्काली केंद्रीय मंत्री आर के सिंह ने इस परियोजना का उद्घाटन किया था.

मौजूदा होल्डिंग कैपेसिटी
वर्तमान में जम्मू कश्मीर के जलाशय सिंधु, चिनाब और झेलम नदी से फ्लो होने वाले पानी का एक प्रतिशत भी स्टोर नहीं कर सकते हैं. जम्मू कश्मीर में पश्चिमी नदियों पर छह चालू जलविद्युत परियोजनाएं हैं. हालांकि उनमें से किसी को भी स्टोरेज बांध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन प्रत्येक परियोजना निरंतर संचालन के लिए अपने जलाशय में कुछ पानी स्टोर करता है.
कुल मिलाकर, सलाल, किशनगंगा, बगलिहार, उरी, दुलहस्ती और निमू बाजगो बांध जलाशय एक वर्ष में इन नदियों में बहने वाले पानी का केवल 0.4 प्रतिशत ही रख सकते हैं. जब जम्मू और कश्मीर में निर्माणाधीन सभी जलविद्युत परियोजनाएं पूरी हो जाएँगी, तो यह क्षमता 2 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है.
रतले, पाकल दुल, क्वार और किरू जलविद्युत परियोजनाएं वर्तमान में निर्माणाधीन हैं. इनका निर्माण नवंबर 2021 और मई 2022 के बीच शुरू हुआ और अगले साल फरवरी और नवंबर के बीच पूरा होने की उम्मीद है. इसके अलावा कम से कम तीन और बांधों, सावलकोट, बुर्सर, किरथाई-II, की योजना बनाई गई है.
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के एक आकलन के अनुसार एक बार पूरा हो जाने पर, इन बांधों का ज्वाइंट वाटर स्टोरेज पाकिस्तान में प्रवाह के समय पर एक बड़ा प्रभाव डालने की निर्विवाद क्षमता प्रदान करेगा, विशेष रूप से शुष्क अवधियों के दौरान.
पूर्वी नदियों पर बने सात प्रमुख बांध हर साल रावी, ब्यास और सतलुज नदियों में बहने वाले पानी का 50 प्रतिशत तक पानी स्टोर कर सकते हैं, डेटा से पता चलता है. अगर भारत बाढ़ की चेतावनी को रोकता है या मानसून के चरम मौसम के दौरान भाखड़ा बांध के जलद्वार खोलने का फैसला करता है, तो कृषि व्यवधान हो सकता है.
जल प्रवाह को रोकने के लिए भारत की तीन-चरणीय कार्य योजना क्या है?
संधि के निलंबन के बाद एक भारत सरकार ने निर्णय को क्रियान्वित करने और पाकिस्तान में नदी के पानी के प्रवाह को प्रतिबंधित करने के लिए एक व्यापक तीन-चरणीय दृष्टिकोण नीति बनाई है. इनमें लॉन्ग टर्म, मिड टर्म और शॉर्ट टर्म पॉलिसी शामिल है.
शॉर्ट टर्म उपायों में प्रशासनिक प्रवर्तन कार्रवाई शामिल है. इनमें जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान को तेज करना, देश में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजना और सताए गए पाकिस्तानी हिंदुओं को दिए गए दीर्घकालिक वीजा (एलटीवी) को छोड़कर सभी पाकिस्तानी वीजा रद्द करना शामिल है.
बुनियादी ढांचे के मामले में मिड टर्म और लॉन्ग टर्म योजनाएं भारत की उस पानी को रोकने, मोड़ने और पुनःउपयोग करने की क्षमता को बढ़ाने के इर्द-गिर्द घूमती हैं जो अन्यथा पाकिस्तान की ओर बह जाता.
पाकिस्तान ने इस कदम पर क्या प्रतिक्रिया दी है
पाकिस्तान ने भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले को खारिज कर दिया है और चेतावनी दी है कि उसे आवंटित जल सप्लाई में किसी भी तरह की बाधा को शत्रुतापूर्ण कार्रवाई माना जाएगा.
इस्लामाबाद में अधिकारियों ने इस कदम को एक्ट ऑफ वारबताया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि सिंधु नदी राष्ट्रीय कृषि और 240 मिलियन से अधिक लोगों के दैनिक जल उपभोग के लिए कितनी महत्वपूर्ण है.
सिंधु जल संधि को आधुनिक इतिहास में सबसे लचीले अंतरराष्ट्रीय जल-बंटवारे समझौतों में से एक माना जाता रहा है. छह दशकों में कई युद्धों और कूटनीतिक तनावों से गुज़रने के बाद, यह अब तक के सबसे गंभीर व्यवधान का सामना कर रहा है.
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