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तेजी से पिघल रहे हैं हिमालयी ग्लेशियर, गंगा, यमुना जैसी कई नदियां होंगी प्रभावित, भयंकर जल संकट की आहट - HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING

दुनिया में ग्लेशियर तेजी से खत्म हो रहे हैं. आईआईटी (आईएसएम) के प्रोफेसर से बीतचीत के आधार पर संवाददाता नरेंद्र निषाद की रिपोर्ट.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
प्रतीकात्मक तस्वीर (ANI)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : March 26, 2025 at 6:37 PM IST

Updated : March 26, 2025 at 7:52 PM IST

5 Min Read

धनबाद: दुनिया के सबसे बड़े और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में हिंदकुश, हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र आता है, जहां विशाल ग्लेशियर और बर्फ से ढके इलाके मौजूद हैं. ये क्षेत्र भारत और उसके आसपास के देशों के लिए मीठे पानी का प्रमुख स्रोत हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि ये ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं.

आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के अप्लायड जियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद और उनकी टीम हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने पर शोध कर रही है. उनकी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, यदि यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में मीठे पानी की गंभीर कमी हो सकती है. ईटीवी भारत के संवाददाता नरेंद्र निषाद ने इस विषय पर प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद से खास बातचीत की.

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद से बात करते संवाददाता नरेंद्र निषाद (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर पृथ्वी का तापमान करता है नियंत्रित-पानी के स्रोत के लिए सिर्फ ग्लेशियर नहीं है, बल्कि पृथ्वी के तापमान को भी नियंत्रित करता है. चमकदार सतह होने के कारण सूर्य की रोशनी को भी परिवर्तित करता है. जिसके कारण पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहता है. ग्लेशियर के पिघलने पर ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ता है. अब ग्लेशियर तेजी से खत्म हो रहे हैं. इसके मतलब है कि पृथ्वी पर संकट बढ़ रहा है. ज्लद ही ठोस उपाए नहीं किए गए तो ये भी हो सकता है कि पृत्वी इंसानों के रहने के लायक ही ना रह जाए.

Himalayan glaciers are melting
हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशीयर (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर पिघलने की गति चिंताजनक

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद के अनुसार, हिमालय के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं. पिछले 20 वर्षों में इनका आकार काफी घट चुका है. अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो अगले 75 वर्षों में ग्लेशियरों का 25 प्रतिशत हिस्सा समाप्त हो सकता है. उन्होंने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने से प्रारंभ में नदियों में जलस्तर बढ़ सकता है, लेकिन धीरे-धीरे जल की मात्रा में गिरावट आएगी. अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों में सिर्फ पत्थर के पहाड़ ही रह जाएंगे.

Himalayan glaciers are melting
तापमान के आंकड़े (ईटीवी भारत)

सेटेलाइट डेटा से मिले चौंकाने वाले तथ्य

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद ने बताया कि 1975 से सेटेलाइट डेटा उपलब्ध है, जो हर 15 दिन में अपडेट होता है. इस डेटा के अनुसार, कुछ अपवादों को छोड़कर, लगभग सभी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव भारत समेत कई देशों की प्रमुख नदियों जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु और तिब्बत से निकलने वाली अन्य नदियों पर पड़ेगा. इनका जलस्तर घटने से 60 से 70 करोड़ लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा, जिनकी आजीविका मीठे पानी पर निर्भर है.

Himalayan glaciers are melting
मौसम में बदलाव की तस्वीर (ईटीवी भात)

हर साल खत्म हो रहे अरबों टन बर्फ: ग्लेशियर हर जगह सिकुड़ रहे हैं. यह आंकड़ा 20 सालों का है. लगातार तापमान में वृद्धि इसका कारण है. 2000 और 2023 के बीच, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर ने हर साल लगभग 270 अरब टन बर्फ खो दिया. एक साल में 270 अरब टन बर्फ का नुकसान पूरी वैश्विक आबादी द्वारा 30 वर्षों में खपतकिए जाने वाले पानी के समान है.

Himalayan glaciers are melting
गंगोत्री ग्लेशियर (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर बचाने के उपाय

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद का मानना है कि ग्लेशियरों के पिघलने की गति रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम की जाए. उन्होंने सौर और पवन ऊर्जा जैसी हरित ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर जोर दिया. इससे वातावरण स्वच्छ रहेगा और वैश्विक तापमान नियंत्रित होगा, जिससे बर्फ पिघलने की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
क्या होगा अगर ग्लेशियर पिघल जाए (ईटीवी भारत)

औद्योगिकरण और बढ़ता तापमान

1850 से 1910 के बीच अमेरिका में तेज़ी से औद्योगिकीकरण हुआ, जबकि भारत में 1975 के बाद से औद्योगिक विकास में वृद्धि देखी गई. एनटीपीसी ने इसी अवधि में कोयले से बिजली उत्पादन शुरू किया. वर्तमान में भारत में कोयले का उत्पादन एक बिलियन टन तक पहुंच चुका है, और 2030 तक यह डेढ़ बिलियन टन होने का अनुमान है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर को बचाने के लिए क्या हो रही कोशिश (ईटीवी भारत)

हालांकि औद्योगिकरण आवश्यक है, लेकिन प्रोफेसर प्रसाद का कहना है कि क्लीन कोल तकनीक को अपनाकर प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. पेट्रोलियम में सल्फर और कार्बन की मात्रा को कम करना भी अनिवार्य है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर से जुड़ी कुछ जानकारी (ईटीवी भारत)

वन क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत

पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत ने वन आवरण बढ़ाने का संकल्प लिया है. राजमार्गों के किनारे बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना चाहिए, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित हो सके और तापमान में कमी आए. इसके अलावा, अनुपयोगी भूमि पर वृक्षारोपण करके भी ग्लेशियरों को बचाने में मदद मिल सकती है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर से जुड़ी कुछ जानकारी (ईटीवी भारत)

वैश्विक स्तर पर बढ़ता खतरा

ग्लेशियर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में तेजी से पिघल रहे हैं. उत्तरी कैलिफोर्निया में भी ग्लेशियर पिघलने के कारण नदियों में पानी की मात्रा घट रही है. यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं विश्वभर के ग्लेशियरों की मैपिंग कर रही हैं, ताकि भविष्य में जल संकट से बचने के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें.

अगर वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए तुरंत ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में जल संकट गहरा सकता है. इसलिए, हरित ऊर्जा को अपनाना, क्लीन कोल तकनीक पर जोर देना और व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण करना समय की सबसे बड़ी मांग है. इससे न केवल ग्लेशियरों को बचाया जा सकता है, बल्कि करोड़ों लोगों के भविष्य को भी सुरक्षित किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें:

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इस जिले में सूख गईं सभी नदियां, एक सभ्यता का हुआ अंत!

धनबाद: दुनिया के सबसे बड़े और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में हिंदकुश, हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र आता है, जहां विशाल ग्लेशियर और बर्फ से ढके इलाके मौजूद हैं. ये क्षेत्र भारत और उसके आसपास के देशों के लिए मीठे पानी का प्रमुख स्रोत हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि ये ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं.

आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के अप्लायड जियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद और उनकी टीम हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने पर शोध कर रही है. उनकी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, यदि यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में मीठे पानी की गंभीर कमी हो सकती है. ईटीवी भारत के संवाददाता नरेंद्र निषाद ने इस विषय पर प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद से खास बातचीत की.

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद से बात करते संवाददाता नरेंद्र निषाद (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर पृथ्वी का तापमान करता है नियंत्रित-पानी के स्रोत के लिए सिर्फ ग्लेशियर नहीं है, बल्कि पृथ्वी के तापमान को भी नियंत्रित करता है. चमकदार सतह होने के कारण सूर्य की रोशनी को भी परिवर्तित करता है. जिसके कारण पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहता है. ग्लेशियर के पिघलने पर ग्लोबल वार्मिंग तेजी से बढ़ता है. अब ग्लेशियर तेजी से खत्म हो रहे हैं. इसके मतलब है कि पृथ्वी पर संकट बढ़ रहा है. ज्लद ही ठोस उपाए नहीं किए गए तो ये भी हो सकता है कि पृत्वी इंसानों के रहने के लायक ही ना रह जाए.

Himalayan glaciers are melting
हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशीयर (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर पिघलने की गति चिंताजनक

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद के अनुसार, हिमालय के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं. पिछले 20 वर्षों में इनका आकार काफी घट चुका है. अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो अगले 75 वर्षों में ग्लेशियरों का 25 प्रतिशत हिस्सा समाप्त हो सकता है. उन्होंने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने से प्रारंभ में नदियों में जलस्तर बढ़ सकता है, लेकिन धीरे-धीरे जल की मात्रा में गिरावट आएगी. अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों में सिर्फ पत्थर के पहाड़ ही रह जाएंगे.

Himalayan glaciers are melting
तापमान के आंकड़े (ईटीवी भारत)

सेटेलाइट डेटा से मिले चौंकाने वाले तथ्य

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद ने बताया कि 1975 से सेटेलाइट डेटा उपलब्ध है, जो हर 15 दिन में अपडेट होता है. इस डेटा के अनुसार, कुछ अपवादों को छोड़कर, लगभग सभी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव भारत समेत कई देशों की प्रमुख नदियों जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु और तिब्बत से निकलने वाली अन्य नदियों पर पड़ेगा. इनका जलस्तर घटने से 60 से 70 करोड़ लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा, जिनकी आजीविका मीठे पानी पर निर्भर है.

Himalayan glaciers are melting
मौसम में बदलाव की तस्वीर (ईटीवी भात)

हर साल खत्म हो रहे अरबों टन बर्फ: ग्लेशियर हर जगह सिकुड़ रहे हैं. यह आंकड़ा 20 सालों का है. लगातार तापमान में वृद्धि इसका कारण है. 2000 और 2023 के बीच, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर ने हर साल लगभग 270 अरब टन बर्फ खो दिया. एक साल में 270 अरब टन बर्फ का नुकसान पूरी वैश्विक आबादी द्वारा 30 वर्षों में खपतकिए जाने वाले पानी के समान है.

Himalayan glaciers are melting
गंगोत्री ग्लेशियर (ईटीवी भारत)

ग्लेशियर बचाने के उपाय

प्रोफेसर अनूप कृष्ण प्रसाद का मानना है कि ग्लेशियरों के पिघलने की गति रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम की जाए. उन्होंने सौर और पवन ऊर्जा जैसी हरित ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर जोर दिया. इससे वातावरण स्वच्छ रहेगा और वैश्विक तापमान नियंत्रित होगा, जिससे बर्फ पिघलने की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
क्या होगा अगर ग्लेशियर पिघल जाए (ईटीवी भारत)

औद्योगिकरण और बढ़ता तापमान

1850 से 1910 के बीच अमेरिका में तेज़ी से औद्योगिकीकरण हुआ, जबकि भारत में 1975 के बाद से औद्योगिक विकास में वृद्धि देखी गई. एनटीपीसी ने इसी अवधि में कोयले से बिजली उत्पादन शुरू किया. वर्तमान में भारत में कोयले का उत्पादन एक बिलियन टन तक पहुंच चुका है, और 2030 तक यह डेढ़ बिलियन टन होने का अनुमान है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर को बचाने के लिए क्या हो रही कोशिश (ईटीवी भारत)

हालांकि औद्योगिकरण आवश्यक है, लेकिन प्रोफेसर प्रसाद का कहना है कि क्लीन कोल तकनीक को अपनाकर प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. पेट्रोलियम में सल्फर और कार्बन की मात्रा को कम करना भी अनिवार्य है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर से जुड़ी कुछ जानकारी (ईटीवी भारत)

वन क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत

पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत ने वन आवरण बढ़ाने का संकल्प लिया है. राजमार्गों के किनारे बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना चाहिए, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित हो सके और तापमान में कमी आए. इसके अलावा, अनुपयोगी भूमि पर वृक्षारोपण करके भी ग्लेशियरों को बचाने में मदद मिल सकती है.

HIMALAYAN GLACIERS ARE VANISHING
ग्लेशियर से जुड़ी कुछ जानकारी (ईटीवी भारत)

वैश्विक स्तर पर बढ़ता खतरा

ग्लेशियर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में तेजी से पिघल रहे हैं. उत्तरी कैलिफोर्निया में भी ग्लेशियर पिघलने के कारण नदियों में पानी की मात्रा घट रही है. यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं विश्वभर के ग्लेशियरों की मैपिंग कर रही हैं, ताकि भविष्य में जल संकट से बचने के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें.

अगर वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए तुरंत ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में जल संकट गहरा सकता है. इसलिए, हरित ऊर्जा को अपनाना, क्लीन कोल तकनीक पर जोर देना और व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण करना समय की सबसे बड़ी मांग है. इससे न केवल ग्लेशियरों को बचाया जा सकता है, बल्कि करोड़ों लोगों के भविष्य को भी सुरक्षित किया जा सकता है.

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Last Updated : March 26, 2025 at 7:52 PM IST
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