सिरमौर: आज के स्कूलों पर बच्चों को सिर्फ और सिर्फ किताबी ज्ञान देने पर सवाल उठते हैं. कई बार सवाल उठता है कि आखिर छात्रों को व्यावहारिक (Practical) ज्ञान क्यों नहीं दिया जाता जो भविष्य में उनके काम आएगा. हिमाचल प्रदेश का एक स्कूल कुछ इसी राह पर चल रहा है जहां बच्चों को न सिर्फ किताबी ज्ञान मिल रहा है, बल्कि व्यावहारिक शिक्षा से भी बच्चों को रूबरू करवाया जा रहा है. यहां ना सिर्फ बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, बल्कि प्रैक्टिकल ज्ञान के जरिए उसे अमल करना भी सिखाया जा रहा है. हिमाचल के सिरमौर जिले में स्थित इस स्कूल के बच्चों ने स्कूल के एक कमरे में ही मशरूम उगाकर कमाल कर दिया है.
9वीं के छात्रों ने उगाई बटन मशरूम
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के पीएम श्री पंडित दुर्गा दत्त राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल नारग के छात्रों ने स्कूल के कमरे में ही बटन मशरूम तैयार कर दिया है. स्कूल स्टाफ और मशरूम वैज्ञानिक के मार्गदर्शन में एग्रीकल्चर और हेल्थ केयर व्यावसायिक विषयों के बच्चों ने इस काम को अंजाम दिया है. स्कूल में मशरूम उगाने वाले ये बच्चे 9वीं कक्षा के छात्र हैं. वहीं, स्कूल में बटन मशरूम के सफल प्रयोग के बाद अब मशरूम की ढिंगरी और शिटाके किस्मों के उत्पादन शुरू करने को लेकर तैयारियां की जा रही हैं.
"स्कूल में मशरूम उगाने का मकसद सिर्फ इतना था कि बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी स्कूल में ही मिले. इस स्कूल में 80 बच्चे एग्रीकल्चर और हेल्थ केयर विषयों की पढ़ाई भी कर रहे हैं. इन छात्रों ने मशरूम उत्पादन के लिए स्कूल के एक रूम में ही ये एक्सपेरिमेंट किया, जो पूरी तरह सफल रहा है." - नेहा कौंडल, अध्यापिका, कृषि विषय
हीटर और बल्ब जलाकर मेंटेन किया कमरे का तापमान
नारग स्कूल के प्रिंसिपल रोहित वर्मा ने बताया कि मशरूम उत्पादन के लिए सोलन जिले में स्थित नौणी यूनिवर्सिटी से मशरूम स्पॉन के 10 बैग लाए गए थे. इसके लिए कमरे का तापमान 20-22 डिग्री सेल्सियस बनाए रखना जरूरी था. स्कूल के जिस एक दरवाजे वाले कमरे में मशरूम का उत्पादन किया गया, उस कमरे का तापमान 13-14 डिग्री था, जिसे हीटर जलाकर 20-22 डिग्री सेल्सियस किया गया. यहां 200 वॉट का बल्ब भी जलाया गया. तापमान मेंटेन करने के बाद थर्मामीटर से चेक करके मशरूम स्पॉन को इस कक्ष में लगाया गया. स्पॉन डालकर केसिंग सॉयल की परत बनाई गई. इसके साथ-साथ गीली बोरी से मशरूम को नमी दी गई. प्रिंसिपल ने बताया कि 3-4 दिन बाद फ्लैश आने पर मशरूम को 14 डिग्री या इससे कम तापमान की आवश्यकता थी. लिहाजा मशरूम को ऐसे कमरे में शिफ्ट किया गया, जहां ये तापमान मिल सके. इसके लिए हवादार के साथ ठंडे कमरे का चयन किया गया. यहां भी मशरूम को नमी देने के लिए गीली बोरी का इस्तेमाल किया गया. बीते दिन ही मशरूम तैयार हुई है, जिसे काटकर अब मिड डे मील में बच्चों को परोसा जाएगा. पहली बार में करीब 3 किलो मशरूम निकाली गई है.
"बिना किसी रासायनिक खाद और दवाई का इस्तेमाल किए मशरूम उगाकर स्टूडेंट बहुत उत्साहित महसूस कर रहे हैं. इस सफल प्रयोग के बाद बच्चे अब ढिंगरी और शिटाके मशरूम उगाने की योजना पर भी काम करेंगे. मशरूम उत्पादन के इस कार्य में समय-समय पर नौणी यूनिवर्सिटी की मशरूम विशेषज्ञ डॉ. सविता जंडायक का परामर्श लिया गया." - रोहित वर्मा, प्रिंसिपल, नारग स्कूल
ये काम भी सीख रहे छात्र
पीएम श्री पंडित दुर्गा दत्त राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल नारग में पहले भी छात्रों के लिए वोकेशन शिक्षा के तहत महर्षि चरक औषधीय वाटिका, वर्मी कम्पोस्ट यूनिट, ग्रीन हाउस, किचन गार्डन, ओपीडी कक्ष का निर्माण किया गया है, ताकि विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जा सके. जिससे भविष्य में बच्चे इसे आजीविका का बेहतरीन साधन बना सकें.
क्लास में मशरूम उगाने वाले छात्रों की खुशी का ठिकाना नहीं
स्कूल के एक कमरे में प्रैक्टिकली मशरूम उगाकर एक तरह से क्लासरूम में मशरूम उगाने वाले छात्रों की खुशी का ठिकाना नहीं है. स्कूल में मशरूम उत्पादन में शामिल 9वीं कक्षा के कृषि व्यावसायिक विषय के छात्र राहुल, अंशुल, दिव्यांश, आरुष, वरुण और आयुष इससे बेहद उत्साहित नजर आए. छात्रों का कहना है कि स्कूल में मशरूम उत्पादन करना बहुत मजेदार रहा, इसमें उन्हें बहुत मजा आया और बहुत कुछ सीखने को मिला. थ्योरी के साथ-साथ उन्हें प्रैक्टिकल करने को भी मिल रहा है, जिससे उन्हें हर चीज अच्छे से समझ आ रही है. इसके अलावा जब वो लोग स्कूल से पास होंगे तब उनके पास करियर के बेहतर ऑपशन होंगे.
स्कूल में होगी मिट्टी की जांच
कृषि विषय की अध्यापिका नेहा कौंडल और कृष्णा (प्रयोगशाला सहायक) ने बताया कि प्रिंसिपल रोहित वर्मा के सुझाव पर इस वर्ष उनके द्वारा विद्यालय के लिए एक मृदा परीक्षण किट (मिट्टी की जांच करने वाली किट) की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई है. जिसका उपयोग विद्यार्थियों और स्थानीय कृषकों को अपनी मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिति और गुणवत्ता का पता लगाने में किया जाएगा, ताकि बच्चे सही मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग कर सकें और अपनी फसल की पैदावार बढ़ा सकें.