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शिमला के इस कॉलेज में रात को पलते हैं जुनून वालों के सपने, अफसर से लेकर मजदूर तक स्टूडेंट्स - SHIMLA EVENING COLLEGE

हिमाचल का एक कॉलेज, जहां हर शाम क्लास लगती है. इसकी खासियत ये है कि यहां अफसर से लेकर मजदूर तक एक साथ पढ़ते हैं.

शिमला में इवनिंग कॉलेज
शिमला में इवनिंग कॉलेज (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : June 17, 2025 at 7:42 PM IST

Updated : June 17, 2025 at 8:11 PM IST

9 Min Read

शिमला(श्रेया शर्मा): शाम का वक्त जब शहर की रफ्तार धीमी पड़ने लगती है, दुकानें बंद होने लगती हैं और बसें अपने आखिरी चक्कर में होती हैं, तब शिमला में एक इमारत ऐसी भी है, जो उस समय जीवंत हो उठती है. यह इमारत है हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का सायंकालीन अध्ययन विभाग, जिसे आम भाषा में इवनिंग विभाग कहा जाता है. यह कॉलेज उन हजारों सपनों की जमीन है, जो दिन में काम करके रात को पढ़ाई करते हैं. 1962 से अब तक, यह सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि एक संघर्षशील शिक्षा संस्कृति का प्रतीक बन चुका है.

इतिहास से शुरू होती है यह प्रेरणादायक कहानी

शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था. यह उस समय पंजाब विश्वविद्यालय के अधीन था. इसकी स्थापना कोठारी आयोग की उस रिपोर्ट के बाद हुई थी, जिसमें evening colleges और correspondence courses को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई थी. उद्देश्य स्पष्ट था, ऐसे युवाओं को शिक्षा देना जो दिन में काम करते हैं और पढ़ाई की इच्छा रखते हैं, लेकिन नियमित कॉलेज जाना उनके लिए संभव नहीं होता.

हिमाचल के इस कॉलेज में हर शाम में लगती है क्लास (ETV Bharat)

प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल बताती हैं कि "उस समय पंजाब यूनिवर्सिटी ने कई जगह इवनिंग कॉलेज खोले थे. हिमाचल में तीन कॉलेज थे, लेकिन आज सिर्फ शिमला का ही कॉलेज जीवित रह पाया है. ये विभाग एक मिशन था, सिर्फ एक कॉलेज नहीं."

उस दौर की पढ़ाई: जब क्लास रात 9:40 बजे तक चलती थी

शुरुआत के वर्षों में कॉलेज की कक्षाएं शाम 5:40 से रात 9:40 बजे तक चला करती थीं. छात्र दिन में नौकरी करते, शाम को किताबें उठाते. कोई सरकारी कार्यालय में बाबू होता, कोई दुकान पर काम करता, कोई टाइपिंग स्कूल में शिक्षक और फिर सब शाम को एक ही जगह कक्षा में पहुंचते. यह वह दौर था, जब पढ़ाई के लिए गंभीरता चरम पर थी.

शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था
शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था (ETV Bharat)

प्रोफेसर मीनाक्षी याद करती हैं कि "छात्र Youth Festival की तैयारी भी करते थे, पढ़ाई भी पूरी करते और अपने घर भी चलाते थे. पढ़ाई उनके लिए साधन नहीं, उद्देश्य था".

कॉलेज के नाम कई पहली उपलब्धियां

यह विभाग शिमला ही नहीं, पूरे हिमाचल प्रदेश में पहला कॉलेज था. जिसने B.Com कोर्स शुरू किया. आज यहां BA, B.Com और पांच स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलते हैं. छात्रों की संख्या लगभग 600 है, जिनमें से अधिकतर नौकरी पेशा या दैनिक मजदूर हैं.

शिमला शहर
शिमला शहर (ETV Bharat)

सिर्फ पढ़ाई नहीं, संघर्ष की प्रयोगशाला

यह कॉलेज सिर्फ क्लासरूम नहीं, बल्कि संघर्ष की प्रयोगशाला भी है. यहां हर छात्र की अपनी एक कहानी है. कोई ATM में नाइट शिफ्ट करता है, वहीं सोता है और शाम को कॉलेज आता है. कोई दिनभर मजदूरी करता है और क्लास में नींद से लड़ता है. फिर भी वे हार नहीं मानते.

छात्रों से बात करती प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल
छात्रों से बात करती प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल (ETV Bharat)

प्रोफेसर मीनाक्षी बताती हैं कि "एक छात्र रात में ATM में काम करता था, फिर क्लास में आता था. वह थककर अक्सर क्लास में सो जाता था, लेकिन वह पास हुआ और आज एक अच्छी सरकारी पोस्ट पर है. ये बच्चे ही हमारी प्रेरणा हैं".

छात्रों की ज़िंदगी की असली कहानियाँ

दिन में डोमिनोज़, शाम को डिग्री, चरनदास की कहानी

चरनदास दिन में डोमिनोज़ पिज़्ज़ा में काम करता है. उसका काम ऑर्डर पैक करना और डिलीवरी करना होता है. वह 5:30 बजे की शिफ्ट खत्म करता है और फिर सीधे कॉलेज पहुंचता है.

चरनदास कहते है कि "मुझे पढ़ाई हमेशा से करनी थी, लेकिन हालात ने पहले नौकरी करने को मजबूर किया. अब इवनिंग कॉलेज ने मुझे वो मौका दिया है, जिसे मैं कभी खोना नहीं चाहता".

58 साल की उम्र में क्लास में, दीनेश कुमार, सुपरिटेंडेंट (पोटैटो रिसर्च सेंटर)

58 वर्षीय दीनेश कुमार आलू अनुसंधान केंद्र में सुपरिटेंडेंट हैं. वह ऑफिस में पूरा दिन काम करते हैं और शाम को कॉलेज में पढ़ाई करते हैं.

हर शाम इवनिंग क्लास में उमड़ती है छात्रों की भीड़
हर शाम इवनिंग क्लास में उमड़ती है छात्रों की भीड़ (ETV Bharat)

दिनेश कुमार मुस्कुराते हुए कहते है कि "मेरे साथ पढ़ रहे कई छात्र मेरे बेटे-बेटियों की उम्र के हैं. लेकिन मैं यहां खुद को सबसे छोटा समझता हूं, क्योंकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती".

पढ़ाई से ठेकेदारी तक, विवेक की कहानी

पूर्व छात्र विवेक अब ठेकेदार हैं. उन्होंने मजदूरी करते हुए इसी कॉलेज से पढ़ाई पूरी की थी.

विवेक कहते है कि "इस कॉलेज ने मुझे सिर्फ डिग्री नहीं दी, खुद पर भरोसा करना सिखाया. आज मैं अपने मजदूरों के लिए एक उदाहरण बनता हूं".

12वीं के बाद गैप, अब रेखा ने की दोबारा शुरुआत

रेखा ने शादी और पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. अब वह अपने बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ खुद भी पढ़ाई कर रही हैं.

रेखा कहती है कि "मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे मुझसे ये सीखें कि पढ़ाई कभी भी छोड़ी नहीं जाती".

टिकम राम, असिस्टेंट प्रोफेसर (कॉमर्स) इवनिंग कॉलेज
टिकम राम, असिस्टेंट प्रोफेसर (कॉमर्स) इवनिंग कॉलेज (ETV Bharat)

प्रोफेसर आशुतोष की बात, "मैं उन्हें पहले विश करता हूं"

हिंदी के प्रोफेसर आशुतोष कहते हैं कि "मेरी क्लास में कुछ छात्र उम्र में मुझसे बड़े हैं. ऐसे में जब वे मुझे ‘सर’ कहकर विश करते हैं. कई बार मैं ही उन्हें पहले विश कर देता हूं और सम्मानपूर्वक ‘सर’ या ‘मैम’ कहकर बुलाता हूं. ये रिश्ता केवल शिक्षक-छात्र का नहीं, आपसी सम्मान का है".

जब छात्र उम्र में प्रोफेसर से बड़े हों... ❝इवनिंग कॉलेज की खास बात यह भी है कि यहां छात्रों की उम्र का कोई दायरा नहीं है. कई बार छात्र अपने प्रोफेसर से उम्र में बड़े होते हैं. ऐसे में कक्षा में एक अनोखा दृश्य बनता है, जहां शिक्षक ‘सर’ या ‘मैम’ कहकर छात्रों को संबोधित करते हैं. यह विनम्रता और परस्पर सम्मान की मिसाल है.❞

लड़कियां कम क्यों हैं? एक सामाजिक सच्चाई

विभाग में पढ़ाई की कोई उम्र सीमा नहीं है, लेकिन महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है. इसकी कई वजहें हैं रात में बसें या सुरक्षित साधन न मिल पाना, पारिवारिक जिम्मेदारियां और कई बार सामाजिक सोच.

प्रोफेसर मीनाक्षी कहती हैं कि "कई बार लड़कियाँ आखिरी क्लास नहीं कर पातीं. क्योंकि रात में घर लौटना मुश्किल होता है. फिर भी जो आती हैं, वे दिन में नौकरी करती हैं, परिवार संभालती हैं और शाम को पढ़ाई करती हैं. ये सच्चे रोल मॉडल हैं".

इतिहास से जुड़ी इमारत, विरासत से जुड़ी लाइब्रेरी

यह कॉलेज जिस इमारत में चलता है, वह 1914 में बनी थी. इससे पहले यह एक ब्रिटिश चर्च हुआ करता था, स्कॉटलैंड के लोगों के लिए 1914 के पहले इस इमारत में आग लगने के बाद इसे दोबारा बनाया गया और बाद में सरकार ने इसे अधिग्रहित कर गांधी निवास नाम दे दिया.

इवनिंग क्लास कॉलेज में लाइब्रेरी की सुविधा
इवनिंग क्लास कॉलेज में लाइब्रेरी की सुविधा (ETV Bharat)

कॉलेज की लाइब्रेरी अपने आप में एक धरोहर है. यहां आज भी अंग्रेजों के जमाने का बोर्ड एंट्रेंस पर लगा है. 27,000 से अधिक किताबें, अनेक दुर्लभ पांडुलिपियाँ, और शोधार्थियों के लिए जरूरी दस्तावेज आज भी यहां मौजूद हैं.

लाइब्रेरी इंचार्ज विकास सहगल खुद इसी कॉलेज से 1985 में पढ़े हैं और अब यहीं सेवा दे रहे हैं. वे बताते हैं कि "मैंने दुकान में नौकरी करते हुए यहीं पढ़ाई की. अब जब आज के बच्चों को संघर्ष करते देखता हूं तो अपना समय याद आ जाता है".

जगह की कमी, लेकिन इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं

छात्र अब MA हिस्ट्री जैसे नए कोर्स की मांग कर रहे हैं. लेकिन कॉलेज भारी जगह की कमी से जूझ रहा है. ग्राउंड फ्लोर का आधा हिस्सा राज्य पुस्तकालय के पास है और बाकी हिस्से में कक्षाएं व कार्यालय चल रहे हैं.

प्रिंसिपल मीनाक्षी पॉल कहती हैं कि "हम कोशिश करते हैं कि सीमित संसाधनों में ही बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा दें. शाम की पढ़ाई का सबसे बड़ा फायदा यह है कि छात्र आत्मनिर्भर होते हैं, वे काम भी करते हैं और पढ़ाई भी".

अफसर से लेकर वर्कर तक यहां के छात्र
अफसर से लेकर वर्कर तक यहां के छात्र (ETV Bharat)

छात्रों की नजर में ‘सर्वश्रेष्ठ विभाग’

जब हमने कुछ छात्रों से बात की तो सभी का यही कहना था कि "हमारे लिए यह विभाग सबसे अच्छा है". वे बताते हैं कि दिनभर अपना काम निपटाकर वे पढ़ाई के लिए यहां आते हैं. उन्हें न सिर्फ डिग्री मिलती है, बल्कि आत्मविश्वास और पहचान भी. कुछ ऐसे छात्र यहां आते है जो अभी अपने रिटायरमेंट ऐज में है. सचिवालय में 5 बजे तक नौकरी करते है और शाम को आकर अपनी पढ़ाई पूरी करते है.

क्या है इस मॉडल का भविष्य?

देशभर में जब इवनिंग कॉलेज धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं, ऐसे में शिमला का यह कॉलेज एक आदर्श मॉडल बन सकता है. यह दर्शाता है कि अगर नीति, इच्छाशक्ति और सही दिशा हो तो शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाया जा सकता है. शाम के उजाले में भी.

ये सिर्फ कॉलेज नहीं, उम्मीद की आखिरी किरण है

शिमला का Evening College उन लोगों के लिए रोशनी है, जिनकी सुबहें जिम्मेदारियों में बीतती हैं. यह संस्थान हमें बताता है कि शिक्षा का रास्ता सिर्फ क्लासरूम तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह संघर्ष, त्याग और इच्छाशक्ति से होकर निकलता है.

यह विभाग हमें यह भी याद दिलाता है कि जब पूरी दुनिया सोने की तैयारी कर रही हो, कोई बच्चा किताबों में अपना भविष्य लिख रहा होता है। और शायद वही बच्चा कल का अधिकारी, शिक्षक या समाज सुधारक बनता है.

ये भी पढ़ें: 67 साल के MBA स्टूडेंट से मिलिए, रिटायरमेंट के बाद भी नहीं छोड़ी पढ़ाई, लॉ सहित अब तक कई डिग्रियां की हासिल

शिमला(श्रेया शर्मा): शाम का वक्त जब शहर की रफ्तार धीमी पड़ने लगती है, दुकानें बंद होने लगती हैं और बसें अपने आखिरी चक्कर में होती हैं, तब शिमला में एक इमारत ऐसी भी है, जो उस समय जीवंत हो उठती है. यह इमारत है हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का सायंकालीन अध्ययन विभाग, जिसे आम भाषा में इवनिंग विभाग कहा जाता है. यह कॉलेज उन हजारों सपनों की जमीन है, जो दिन में काम करके रात को पढ़ाई करते हैं. 1962 से अब तक, यह सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि एक संघर्षशील शिक्षा संस्कृति का प्रतीक बन चुका है.

इतिहास से शुरू होती है यह प्रेरणादायक कहानी

शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था. यह उस समय पंजाब विश्वविद्यालय के अधीन था. इसकी स्थापना कोठारी आयोग की उस रिपोर्ट के बाद हुई थी, जिसमें evening colleges और correspondence courses को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई थी. उद्देश्य स्पष्ट था, ऐसे युवाओं को शिक्षा देना जो दिन में काम करते हैं और पढ़ाई की इच्छा रखते हैं, लेकिन नियमित कॉलेज जाना उनके लिए संभव नहीं होता.

हिमाचल के इस कॉलेज में हर शाम में लगती है क्लास (ETV Bharat)

प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल बताती हैं कि "उस समय पंजाब यूनिवर्सिटी ने कई जगह इवनिंग कॉलेज खोले थे. हिमाचल में तीन कॉलेज थे, लेकिन आज सिर्फ शिमला का ही कॉलेज जीवित रह पाया है. ये विभाग एक मिशन था, सिर्फ एक कॉलेज नहीं."

उस दौर की पढ़ाई: जब क्लास रात 9:40 बजे तक चलती थी

शुरुआत के वर्षों में कॉलेज की कक्षाएं शाम 5:40 से रात 9:40 बजे तक चला करती थीं. छात्र दिन में नौकरी करते, शाम को किताबें उठाते. कोई सरकारी कार्यालय में बाबू होता, कोई दुकान पर काम करता, कोई टाइपिंग स्कूल में शिक्षक और फिर सब शाम को एक ही जगह कक्षा में पहुंचते. यह वह दौर था, जब पढ़ाई के लिए गंभीरता चरम पर थी.

शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था
शिमला का इवनिंग कॉलेज जुलाई 1962 में स्थापित हुआ था (ETV Bharat)

प्रोफेसर मीनाक्षी याद करती हैं कि "छात्र Youth Festival की तैयारी भी करते थे, पढ़ाई भी पूरी करते और अपने घर भी चलाते थे. पढ़ाई उनके लिए साधन नहीं, उद्देश्य था".

कॉलेज के नाम कई पहली उपलब्धियां

यह विभाग शिमला ही नहीं, पूरे हिमाचल प्रदेश में पहला कॉलेज था. जिसने B.Com कोर्स शुरू किया. आज यहां BA, B.Com और पांच स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलते हैं. छात्रों की संख्या लगभग 600 है, जिनमें से अधिकतर नौकरी पेशा या दैनिक मजदूर हैं.

शिमला शहर
शिमला शहर (ETV Bharat)

सिर्फ पढ़ाई नहीं, संघर्ष की प्रयोगशाला

यह कॉलेज सिर्फ क्लासरूम नहीं, बल्कि संघर्ष की प्रयोगशाला भी है. यहां हर छात्र की अपनी एक कहानी है. कोई ATM में नाइट शिफ्ट करता है, वहीं सोता है और शाम को कॉलेज आता है. कोई दिनभर मजदूरी करता है और क्लास में नींद से लड़ता है. फिर भी वे हार नहीं मानते.

छात्रों से बात करती प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल
छात्रों से बात करती प्रिंसिपल प्रो. मीनाक्षी एफ. पॉल (ETV Bharat)

प्रोफेसर मीनाक्षी बताती हैं कि "एक छात्र रात में ATM में काम करता था, फिर क्लास में आता था. वह थककर अक्सर क्लास में सो जाता था, लेकिन वह पास हुआ और आज एक अच्छी सरकारी पोस्ट पर है. ये बच्चे ही हमारी प्रेरणा हैं".

छात्रों की ज़िंदगी की असली कहानियाँ

दिन में डोमिनोज़, शाम को डिग्री, चरनदास की कहानी

चरनदास दिन में डोमिनोज़ पिज़्ज़ा में काम करता है. उसका काम ऑर्डर पैक करना और डिलीवरी करना होता है. वह 5:30 बजे की शिफ्ट खत्म करता है और फिर सीधे कॉलेज पहुंचता है.

चरनदास कहते है कि "मुझे पढ़ाई हमेशा से करनी थी, लेकिन हालात ने पहले नौकरी करने को मजबूर किया. अब इवनिंग कॉलेज ने मुझे वो मौका दिया है, जिसे मैं कभी खोना नहीं चाहता".

58 साल की उम्र में क्लास में, दीनेश कुमार, सुपरिटेंडेंट (पोटैटो रिसर्च सेंटर)

58 वर्षीय दीनेश कुमार आलू अनुसंधान केंद्र में सुपरिटेंडेंट हैं. वह ऑफिस में पूरा दिन काम करते हैं और शाम को कॉलेज में पढ़ाई करते हैं.

हर शाम इवनिंग क्लास में उमड़ती है छात्रों की भीड़
हर शाम इवनिंग क्लास में उमड़ती है छात्रों की भीड़ (ETV Bharat)

दिनेश कुमार मुस्कुराते हुए कहते है कि "मेरे साथ पढ़ रहे कई छात्र मेरे बेटे-बेटियों की उम्र के हैं. लेकिन मैं यहां खुद को सबसे छोटा समझता हूं, क्योंकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती".

पढ़ाई से ठेकेदारी तक, विवेक की कहानी

पूर्व छात्र विवेक अब ठेकेदार हैं. उन्होंने मजदूरी करते हुए इसी कॉलेज से पढ़ाई पूरी की थी.

विवेक कहते है कि "इस कॉलेज ने मुझे सिर्फ डिग्री नहीं दी, खुद पर भरोसा करना सिखाया. आज मैं अपने मजदूरों के लिए एक उदाहरण बनता हूं".

12वीं के बाद गैप, अब रेखा ने की दोबारा शुरुआत

रेखा ने शादी और पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. अब वह अपने बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ खुद भी पढ़ाई कर रही हैं.

रेखा कहती है कि "मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे मुझसे ये सीखें कि पढ़ाई कभी भी छोड़ी नहीं जाती".

टिकम राम, असिस्टेंट प्रोफेसर (कॉमर्स) इवनिंग कॉलेज
टिकम राम, असिस्टेंट प्रोफेसर (कॉमर्स) इवनिंग कॉलेज (ETV Bharat)

प्रोफेसर आशुतोष की बात, "मैं उन्हें पहले विश करता हूं"

हिंदी के प्रोफेसर आशुतोष कहते हैं कि "मेरी क्लास में कुछ छात्र उम्र में मुझसे बड़े हैं. ऐसे में जब वे मुझे ‘सर’ कहकर विश करते हैं. कई बार मैं ही उन्हें पहले विश कर देता हूं और सम्मानपूर्वक ‘सर’ या ‘मैम’ कहकर बुलाता हूं. ये रिश्ता केवल शिक्षक-छात्र का नहीं, आपसी सम्मान का है".

जब छात्र उम्र में प्रोफेसर से बड़े हों... ❝इवनिंग कॉलेज की खास बात यह भी है कि यहां छात्रों की उम्र का कोई दायरा नहीं है. कई बार छात्र अपने प्रोफेसर से उम्र में बड़े होते हैं. ऐसे में कक्षा में एक अनोखा दृश्य बनता है, जहां शिक्षक ‘सर’ या ‘मैम’ कहकर छात्रों को संबोधित करते हैं. यह विनम्रता और परस्पर सम्मान की मिसाल है.❞

लड़कियां कम क्यों हैं? एक सामाजिक सच्चाई

विभाग में पढ़ाई की कोई उम्र सीमा नहीं है, लेकिन महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है. इसकी कई वजहें हैं रात में बसें या सुरक्षित साधन न मिल पाना, पारिवारिक जिम्मेदारियां और कई बार सामाजिक सोच.

प्रोफेसर मीनाक्षी कहती हैं कि "कई बार लड़कियाँ आखिरी क्लास नहीं कर पातीं. क्योंकि रात में घर लौटना मुश्किल होता है. फिर भी जो आती हैं, वे दिन में नौकरी करती हैं, परिवार संभालती हैं और शाम को पढ़ाई करती हैं. ये सच्चे रोल मॉडल हैं".

इतिहास से जुड़ी इमारत, विरासत से जुड़ी लाइब्रेरी

यह कॉलेज जिस इमारत में चलता है, वह 1914 में बनी थी. इससे पहले यह एक ब्रिटिश चर्च हुआ करता था, स्कॉटलैंड के लोगों के लिए 1914 के पहले इस इमारत में आग लगने के बाद इसे दोबारा बनाया गया और बाद में सरकार ने इसे अधिग्रहित कर गांधी निवास नाम दे दिया.

इवनिंग क्लास कॉलेज में लाइब्रेरी की सुविधा
इवनिंग क्लास कॉलेज में लाइब्रेरी की सुविधा (ETV Bharat)

कॉलेज की लाइब्रेरी अपने आप में एक धरोहर है. यहां आज भी अंग्रेजों के जमाने का बोर्ड एंट्रेंस पर लगा है. 27,000 से अधिक किताबें, अनेक दुर्लभ पांडुलिपियाँ, और शोधार्थियों के लिए जरूरी दस्तावेज आज भी यहां मौजूद हैं.

लाइब्रेरी इंचार्ज विकास सहगल खुद इसी कॉलेज से 1985 में पढ़े हैं और अब यहीं सेवा दे रहे हैं. वे बताते हैं कि "मैंने दुकान में नौकरी करते हुए यहीं पढ़ाई की. अब जब आज के बच्चों को संघर्ष करते देखता हूं तो अपना समय याद आ जाता है".

जगह की कमी, लेकिन इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं

छात्र अब MA हिस्ट्री जैसे नए कोर्स की मांग कर रहे हैं. लेकिन कॉलेज भारी जगह की कमी से जूझ रहा है. ग्राउंड फ्लोर का आधा हिस्सा राज्य पुस्तकालय के पास है और बाकी हिस्से में कक्षाएं व कार्यालय चल रहे हैं.

प्रिंसिपल मीनाक्षी पॉल कहती हैं कि "हम कोशिश करते हैं कि सीमित संसाधनों में ही बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा दें. शाम की पढ़ाई का सबसे बड़ा फायदा यह है कि छात्र आत्मनिर्भर होते हैं, वे काम भी करते हैं और पढ़ाई भी".

अफसर से लेकर वर्कर तक यहां के छात्र
अफसर से लेकर वर्कर तक यहां के छात्र (ETV Bharat)

छात्रों की नजर में ‘सर्वश्रेष्ठ विभाग’

जब हमने कुछ छात्रों से बात की तो सभी का यही कहना था कि "हमारे लिए यह विभाग सबसे अच्छा है". वे बताते हैं कि दिनभर अपना काम निपटाकर वे पढ़ाई के लिए यहां आते हैं. उन्हें न सिर्फ डिग्री मिलती है, बल्कि आत्मविश्वास और पहचान भी. कुछ ऐसे छात्र यहां आते है जो अभी अपने रिटायरमेंट ऐज में है. सचिवालय में 5 बजे तक नौकरी करते है और शाम को आकर अपनी पढ़ाई पूरी करते है.

क्या है इस मॉडल का भविष्य?

देशभर में जब इवनिंग कॉलेज धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं, ऐसे में शिमला का यह कॉलेज एक आदर्श मॉडल बन सकता है. यह दर्शाता है कि अगर नीति, इच्छाशक्ति और सही दिशा हो तो शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाया जा सकता है. शाम के उजाले में भी.

ये सिर्फ कॉलेज नहीं, उम्मीद की आखिरी किरण है

शिमला का Evening College उन लोगों के लिए रोशनी है, जिनकी सुबहें जिम्मेदारियों में बीतती हैं. यह संस्थान हमें बताता है कि शिक्षा का रास्ता सिर्फ क्लासरूम तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह संघर्ष, त्याग और इच्छाशक्ति से होकर निकलता है.

यह विभाग हमें यह भी याद दिलाता है कि जब पूरी दुनिया सोने की तैयारी कर रही हो, कोई बच्चा किताबों में अपना भविष्य लिख रहा होता है। और शायद वही बच्चा कल का अधिकारी, शिक्षक या समाज सुधारक बनता है.

ये भी पढ़ें: 67 साल के MBA स्टूडेंट से मिलिए, रिटायरमेंट के बाद भी नहीं छोड़ी पढ़ाई, लॉ सहित अब तक कई डिग्रियां की हासिल

Last Updated : June 17, 2025 at 8:11 PM IST
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