रांचीः भाषा, संस्कृति और परंपरा की सुरक्षा के लिए अलग झारखंड राज्य का आंदोलन हुआ था. लेकिन राज्य बने 25 साल होने के बावजूद अबतक स्कूली स्तर पर जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई शुरु नहीं हो पाई. इसकी वजह से आज की पीढ़ी अपनी परंपरा और संस्कृति को भूल रही है. जाहिर है कि जब बच्चे पढ़ेंगे, तभी अपनी संस्कृति को जानेंगे. इसलिए स्कूल से कॉलेज स्तर पर जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति होना जरुरी है. इस मसले को राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया है.
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के मंत्री रामदास सोरेन ने कहा है कि हर हाल में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई सुनिश्चित की जाएगी. छात्रों की संख्या के अनुपात में क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षक बहाल किए जाएंगे. इस व्यवस्था को समझने के लिए पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल मॉडल का अध्ययन किया जा चुका है. अब इसको धरातल पर उतारने की कवायद चल रही है.
पश्चिम बंगाल के पैटर्न का एक कमेटी कर चुकी है अध्ययन
स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का कहना है कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में केजी से पीजी तक क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई होती है. वहां के तौर तरीके को समझने के लिए पांच सदस्यीय टीम को सात दिवसीय दौरे पर पश्चिम बंगाल भेजा गया था. टीम ने एक सप्ताह तक पश्चिम बंगाल में रहकर व्यवस्था का अध्ययन किया है. कमेटी ने विभाग को रिपोर्ट समर्पित कर दिया है. इस रिपोर्ट से सीएम हेमंत सोरेन को अवगत कराया जाएगा.
जिला स्तर पर होगा री-सर्वे
स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का कहना है कि पिछले साल भी क्षेत्रीय भाषा बोलने वाले छात्रों की संख्या के हिसाब से सर्वे हुआ था. लेकिन समीक्षा में पता चला कि उस सर्वे में कई त्रुटियां थी. क्योंकि कई स्कूलों में भाषाई स्तर पर छात्रों की मुकम्मल पहचान नहीं की जा सकी थी. लिहाजा, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने कहा है कि जिला स्तर पर दोबारा सर्वे कराया जाएगा. इसके जरिए भाषाई अनुपात का आंकड़ा आने पर शिक्षक बहाली की प्रक्रिया शुरु की जाएगी.
पिछले साल के सर्वे में थी कई त्रुटियां
सरकार में शामिल कांग्रेस के विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी का कहना है कि प्राथमिक, मध्य, हाई स्कूल और कॉलेज में जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई के लिए शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 29 में संरक्षण और अनुच्छेद 350(क) में शिक्षा में सुविधा का जिक्र है. पिछले साल सर्वे हुआ था, जो बिल्कुल गलत तरीके से हुआ था. सिमडेगा में पिछले साल हुए सर्वें में खड़िया समुदाय के लिए दो, मुंडारी के लिए 41 और नागपुरी के लिए 156 सीटों के सृजन की बात हुई थी. लेकिन कुड़ूख और उरांव जनजाति के छात्रों को गिनती नहीं की गई. इस वजह से क्षेत्रीय भाषा के लिए शिक्षक की सीट तय नहीं हो पाई.
अब देखना है कि पश्चिम बंगाल में हुए सर्वे की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का क्या स्टैंड सामने आता है. वैसे सरकार भी मानती है कि जनजातीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति अनिवार्य होनी चाहिए.
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