पटना: पहले बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे, फिर आईपीएस आनंद मिश्रा और 'सुपर कॉप' आईपीएस शिवदीप लांडे, अब रेल आईजी के तौर पर काम कर चुके आईपीएस नुरुल होदा ने अपनी नई पारी की शुरुआत राजनीति से की है. उन्होंने बुधवार को पूर्व मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. वह तेज तर्रार आईपीएस के तौर पर जाने जाते हैं. सीतामढ़ी के रहने वाले नुरुल होदा ने 28 साल तक आईपीएस के तौर पर पुलिस सर्विस की है.
वीआईपी में शामिल हुए पूर्व आईपीएस: 1995 बैच के नुरुल होदा का मानना है कि पुलिस सर्विस में एक जैसा काम करते-करते वह पूरी तरह से बोर हो चुके थे. उनको अब जीवन में कुछ नया और बेहतर करना है, इसलिए अगली पारी के तौर पर राजनीति को चुना है. उन्होंने कहा कि वह अपने गांव, शहर और राज्य के लिए कुछ बड़ा करना चाहते हैं. ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए मोहम्मद होदा ने मुसलमानों की स्थिति और मुस्लिम पॉलिटिक्स पर खुलकर अपना विचार साझा किया.
सवाल- क्या वजह है कि आईपीएस नुरुल होदा ने पुलिस की सर्विस छोड़कर राजनीति को चुना?
नुरुल होदा- बिल्कुल, यह मेरे जीवन की दूसरी पारी है. पहले पुलिस सर्विस थी, अब राजनीति में हूं. अब अपने मन की करूंगा. मुक्त हो चुका हूं. थोड़ा एक्सपेरिमेंट करूंगा. अपने लोगों के लिए अब लड़ाई लडूंगा. उनके हक की लड़ाई लड़ूंगा.
सवाल- पुलिस सर्विस में क्या कमी रही कि आपने यह दूसरी पारी चुनी?
नुरुल होदा- लंबी नौकरी की है मैंने. इतने लंबे काम के बाद कुछ चेंज चाहिए था, लिहाजा चेंज के लिए मैंने यह शुरू किया है.

सवाल- आप आईजी पद पर थे, आपका प्रमोशन भी हो चुका था. एक चमकता हुआ करियर था. मुझे जानकारी है कि आपकी नौकरी 5 बची हुई थी लेकिन उससे पहले ही आपने क्यों वीआरएस ले लिया?
नुरुल होदा- मेरी नौकरी 5 साल बची हुई थी लेकिन मेरा मानना है कि जो करना है, अभी करो. कल के ऊपर कुछ नहीं छोड़ना चाहिए. मैं अपने लाइफ से संतुष्ट था. मेरी फैमिली सेटल्ड है. मेरे ऊपर कोई ऐसी रिस्पांसिबिलिटी भी नहीं थी. मैंने लाइफ में एक्सपेरिमेंट करने के लिए इस तरफ (राजनीति में) आया हूं.
सवाल- आपकी गिनती एक तेज-तर्रार आईपीएस ऑफिसर के तौर पर होती थी. ऐसे में आपने राजनीति को चुना तो, राजनीति में क्या करना चाहते हैं?
नुरुल होदा- जो अच्छा है, वह हर जगह अच्छा ही रहेगा. मैं अगर वहां अच्छा था तो यहां भी अच्छा ही रहूंगा. मैंने जो मेहनत वहां किया था, वही मेहनत यहां भी करूंगा.
सवाल- मैंने आपकी 6:30 मिनट का एक वीडियो देखा है, जिसमें कई मुद्दों को आपने उठाया है, चाहे वह अपने गांव में अंग्रेजी स्कूल खोलने की बात हो या फिर कई ऐसे मुद्दे जिस पर आपने खुलकर बोला, आपको लगा कि सबसे जरूरी क्या है?
नुरुल होदा- देखिए स्कूल खोलना मेरा ड्रीम है. मैं मॉडर्न एजुकेशन के फेवर में हूं. हमारे यहां बहुत कमी है. हर मुस्लिम मोहल्ले में यह कमी है. उनकी लायबिलिटी मदरसे पर है. सरकार हमारे इलाकों में तो मदरसा खोलने से रही. मेरा सरकार से अनुरोध है कि किसी को कहते हो कि आप मॉडर्न बन जाओ लेकिन, उसको आप दुनिया दिखाओगे नहीं, उसको तालीम दोगे नहीं तो वह आदमी अपने इलाके से पांच-पांच किलोमीटर 10 किलोमीटर तो जाएगा नहीं. वहां जाते हैं तो उनके साथ भेदभाव होता है. चाहिए कि आपके आसपास एजुकेशन का सिस्टम बनाया जाए. मेरी एक ख्वाहिश है कि मरने से पहले अपने गांव में इंग्लिश मीडियम के टॉप क्लास का स्कूल खोल सकूं.

सवाल- आप राजनीति में नहीं होते फिर भी आप वहां एक इंग्लिश स्कूल खोल सकते थे?
नुरुल होदा- इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है. वह एक मेरा सपना है. इसे राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. अबतक मैंने अपने सपने को पूरा करने में टाइम ही नहीं दे पाया था. मेरी पोस्टिंग अलग-अलग जगह पर रही है. आप वर्दी में होते हो सब कुछ नहीं कर सकते हैं. अब मुक्ति मिली है तो हम अपने मन के काम में समय दे सकते हैं. हम अपने लोगों के गांव जा सकते हैं, उनके लिए कुछ कर सकते हैं.
सवाल- क्या यह सपना उस समय पाला था, जब एक युवा नुरुल होदा अपने गांव सीतामढ़ी से निकला था?
नुरुल होदा- यह मेरे गांव का सवाल नहीं है. यह पूरे भारत के मुस्लिम मोहल्ले का सवाल है. सरकार की जो पॉलिसी बनती है, उसमें यह मैपिंग होनी चाहिए. जो मुस्लिम मोहल्ले हैं, उनमें स्कूल- मेडिकल होने चाहिए. क्या मुसलमान ने वहां आने से रोक दिया है. क्या मुसलमान एजुकेशन, मेडिकल, सैनिटेशन, हेल्थ नहीं लेना चाहते हैं. यह सरकार का झुकाव होना चाहिए. उनकी तरफ ओवरऑल इस सोच की सरकार आती है या एक ऐसा नेता आता है, जोकि अच्छी सोच का प्रतिनिधि आता है, जिनको लगता है कि नहीं भाई इसको भी जरूरत है.
आप दावे करते हो, आप कहते हैं कि मुसलमान को हम एक हाथ में कुरान और एक हाथ में कंप्यूटर दे देंगे. आप ये कंप्यूटर कहां से दे देंगे? उसके मोहल्ले में कंप्यूटर के लिए स्कूल रहेगा तब तो, पहले तो क्रिएट कीजिए आप इंफ्रास्ट्रक्चर, उसके बाद कंप्यूटर तो उसके हाथ में खुदब खुद चला जाएगा. मुसलमान तो कंप्यूटर चला रहे हैं. जहां सुविधा है वह वहां चला रहे हैं लेकिन, हमारे यहां तो बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है.

सवाल- मैं आपका प्रेस कॉन्फ्रेंस सुन रहा था. उसमें अपने कई मुद्दों पर स्पष्ट अपनी राय रखी, वक्फ बोर्ड पर भी अपने बातें कहीं, वक्फ बोर्ड को लेकर आपकी क्या सोच है?
नुरुल होदा- यह वक्फ बोर्ड पर बोलना अभी यह ज्यूडिशरी मैटर है. यह कॉन्स्टिट्यूशनल प्रोपराइटरी का मामला है. अभी यह सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू में है. अभी किसी का भी बोलना इस पर ठीक नहीं है. हम अपनी ओपिनियन इस पर नहीं रख सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट इसको देख रहा है.
सवाल- आपने एक और मुद्दा स्पष्ट तौर पर रखा है. जो 18 फीसदी मुसलमान हैं, उनको जातियों में विभक्त किया जा रहा है. जबकि यह आपने कहा कि ऐसा नहीं है. उनको बांटा जा रहा है.
नुरुल होदा- मुसलमान की संख्या 18 फीसदी है. मेरा मानना है कि इस्लाम धर्म है और मुसलमान जाति है. इसमें कैटिगिरीजेशन करना, डिवीजन करना ना पहले था ना अभी है. अगर कोशिश हो रही है मुसलमान में स्ट्रेटिफिकेशन करने का मेरे मुताबिक ये गलत है और इस्लाम धर्म फिर खत्म हो जाएगा. पहले ट्रिपल तलाक मादा के लिए यानी कि महिलाओं के लिए लाया, अब यह पासमादा का शब्द आ गया है. यह नए-नए शब्द कॉइन करते हैं.
हमारे यहां दहेज एक्ट आज से नहीं है क्या दहेज लेना छोड़ दिए हैं हम लोगों ने. कौन सी पुलिस दहेज रोक रही है. कानून जो होता है एक्सेप्टेंस चलता है. आपने किसी चीज को स्वीकारा है, मन मस्तिष्क से अच्छी होनी चाहिए तो, गलत गलत होता है और सही सही होता है. लोगों ने एक्सेप्ट किया की सती प्रथा गलत है, लोगों एक्सेप्ट किया कि विधवा विवाह होना चाहिए. बच्चियों को इस तरह से सताना ठीक नहीं है और एक दिन यह आएगा कि लोग कहेंगे कि जो कानून थोपा जा रहा है वह बुरा है लेकिन ज्यादा तादाद यह ऐसे लोगों के लिए जो दहेज जैसे चीजों को अच्छा मानते हैं.

"वक्फ का कानून बना देने से कुछ नही होने वाला. वक्फ का मैनेजमेंट एक इशू हो सकता है देखिए, आपको डायबिटीज हो जाए और आपको मिठाई खिलाई जाए तो, यह कोई इलाज नहीं है. मेरे हिसाब से वक्फ बोर्ड का हिसाब कुछ इसी तरह का है."- नुरुल होदा, पूर्व आईपीएस सह वीआईपी नेता
सवाल- आपने वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) को चुना, क्या वजह है?
नुरुल होदा- जो सुलभ है जो उपलब्ध है, मैं भीड़ का पाट नहीं बनना चाहता था. मुकेश सहनी जी ने कहा था कि मैं आपको प्रॉपर सम्मान दूंगा, आईए हमारे साथ. यहां काम करने का स्कोप है. बड़े बरगद के नीचे छोटा पौधा नहीं लगता. हम लोग तो नए-नए आए हैं.
सवाल- तो फिर ओवैसी के साथ क्यों नहीं गए? वह भी तो अच्छा काम कर रहे हैं, मुसलमान की बात कर रहे हैं.
नुरुल होदा- मैं उनके पॉलीटिकल आईडियोलॉजी से सहमत नहीं हूं. ओवैसी जी बहुत ही नॉलेजबल आदमी हैं. वह एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमैन है लेकिन उनकी सोच है कि मुसलमान अकेले कुछ कर सकता है, जोकि हिंदुस्तान में मुमकिन नहीं है. इसलिए उनके पीछे वोट फेंकने का कोई औचित्य नहीं है. उनका वोट बर्बादी की तरफ जाता है. ओवैसी के बारे में कहा जाता है कि वह बीजेपी की बी टीम है. आपकी वजह से कोई हार रहा है तो इसमें आपका दोष है.
ओवैसी कहते हैं कि मैं पॉलीटिकल पार्टी हूं और मुझे इलेक्शन लड़ने का पूरा राइट है. वह सही कहते हैं आप ऐसे समझिए कि पहलवानी का सर्टिफिकेट मिला हुआ है. आप पहलवान तो हो लेकिन पहलवानी में भी कैटेगरी होती है कि आप किस वेट से लड़ेंगे. आप जाकर सूमो से लड़ोगे तो फिर क्या होगा. ओवैसी ऐसा कर रहे हैं ओवैसी लाइटवेट पहलवान हैं और सूमो से जाकर लड़ रहे हैं. लाइट वेट पहलवान सूमो से कभी जीत पाएगा. आप अपनी तैयारी कीजिए, इकट्ठा मिलकर चुनाव लड़िये. ओवैसी जी की गलत सोच है कि मुसलमान अकेले भारत में कुछ नहीं कर सकता है.
सवाल- अंतिम सवाल है, 28 साल तक आपने वर्दी पहनी है अब कुर्ता-पजामा में कैसा लग रहा है?
नुरुल होदा- कुर्ता-पजामा कंफर्टेबल है. मैं इसके बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचता हूं. मैं प्रेफर कैजुअल पहनने में करता हूं. राजनीति में ऐसा कोई ड्रेस कोड तो है नहीं. सब कोई अपनी चॉइस का पहना है. हमारे मोदी जी तो फैशन आइकन है. उन्होंने फैशन को रीडिफाइंड किया है.

कौन हैं नुरुल होदा?: विकासशील इंसान पार्टी से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले मोहम्मद नुरुल होदा 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं. यूपीएससी से पहले उनका चयन अवर सेवा चयन परिषद और 39वीं बीपीएससी में भी हुआ था. नुरुल होदा ने रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में महानिरीक्षक (आईजी) पद पर रहते हुए आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. सीतामढ़ी जिले के रहने वाले मो. होदा अपने पैतृक गांव में 300 बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा भी मुहैया कराते हैं.
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