ETV Bharat / bharat

14 मई को 52 वें CJI के रूप में शपथ लेंगे आरएस गवई: जानिए प्रोफाइल और अहम फैसले - NEXT CHIEF JUSTICE OF INDIA

जस्टिस बी.आर गवई 14 मई, 2025 को भारत के 52वें सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे. जानते हैं, कैसे सुप्रीम कोर्ट तक सफर तय किया.

CHIEF JUSTICE OF INDIA
जस्टिस बी.आर गवई (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 11, 2025 at 5:38 PM IST

Updated : May 12, 2025 at 1:11 PM IST

8 Min Read

हैदराबादः जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई यानी कि बी.आर गवई 14 मई, 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. वे सर्वोच्च न्यायालय की कमान संभालने वाले दूसरे दलित न्यायाधीश होंगे. अपने अब तक के न्यायिक जीवन में उन्होंने कई अहम और दूरगामी प्रभाव वाले फैसले सुनाए हैं. जस्टिस गवई ने नागपुर से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का यह लंबा और प्रेरक सफर कैसे तय किया, आइए जानते हैं उनके सफरनामे की पूरी कहानी.

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. 1985 में वकालत शुरू करने के बाद उन्होंने राजा एस. भोंसले जैसे वरिष्ठ कानूनविद् के साथ काम किया. जल्द ही स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में विशेषज्ञता हासिल की और कई नगर निगमों, विश्वविद्यालयों व निगमों के लिए स्थायी वकील रहे.

वे सहायक सरकारी वकील, अतिरिक्त लोक अभियोजक और फिर 2000 में नागपुर पीठ के सरकारी वकील बने. 2003 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए. 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने और अब 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा.

ETV GFX
ETV GFX (ETV Bharat)

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के उल्लेखनीय निर्णयः

  • संपत्ति पर बुलडोजर की कार्रवाईः खंडपीठ ने बुलडोजर की कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति/घरों को राज्य मशीनरी द्वारा केवल इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि वे किसी अपराध के आरोपी या दोषी हैं.
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य हैः सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से माना कि अनुसूचित जातियों का आरक्षित श्रेणियों में उप-वर्गीकरण, अनुसूचित जाति श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग कोटा देने के लिए स्वीकार्य है.
  • दिल्ली आबकारी शराब नीति घोटालाः खंडपीठ ने मनीष सिसोदिया को केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा क्रमशः भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (‘पीसी एक्ट’) और धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002, (‘पीएमएलए’) के तहत दर्ज दोनों मामलों में जमानत दे दी.
  • अनुच्छेद 370 पर फैसलाः पांच जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा. इसने राज्य का दर्जा बहाल करने का भी निर्देश दिया. तत्कालीन सीजेआई डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने विशेष रूप से भारत के चुनाव आयोग को 30-9-2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने का निर्देश दिया.
  • चुनावी बॉन्ड योजना को खारिज कियाः 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. इस प्रकार, चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक होने के कारण खारिज कर दिया गया.
  • बिना स्टाम्प वाले मध्यस्थता समझौते की वैधताः 7 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि बिना स्टाम्प वाला समझौता स्टाम्प अधिनियम के तहत अस्वीकार्य है, लेकिन इसे शुरू से ही अमान्य नहीं किया जा सकता. इस प्रकार, बिना स्टाम्प वाले या अपर्याप्त रूप से स्टाम्प वाले समझौतों में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य हैं.
  • नोटबंदी पर फैसला: संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केंद्र की 2016 की विमुद्रीकरण योजना (नोटबंदी) को बरकरार रखा और माना कि विमुद्रीकरण केंद्र के घोषित उद्देश्यों के अनुरूप था और इसे उचित तरीके से लागू किया गया था.
  • 'आहत करने वाले' बयान देने की स्वतंत्रता: संविधान पीठ ने सार्वजनिक पदाधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे पर फैसला सुनाया. पूछा कि क्या नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इसमें बाधा डालता है और मंत्रियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर और अधिक प्रतिबंध लगाने के खिलाफ फैसला सुनाया.
  • मृत्युपूर्व बयान ही दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता हैः पीठ ने अपीलकर्ता को इस बात पर ‘गंभीर संदेह’ व्यक्त करते हुए बरी कर दिया कि क्या कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया मृत्युपूर्व बयान स्वैच्छिक था या किसी अन्य के कहने पर उसे पढ़ाया गया था.
  • तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानतः सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत दी. 3 न्यायाधीशों की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता अतुल सीतलवाड़ को दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर के संबंध में नियमित जमानत दी.
  • मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलाः सर्वोच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. पूर्ण पीठ ने उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. पीठ ने यह विचार किया कि उच्च न्यायालय के साथ-साथ निचली अदालत ने भी वर्तमान मामले को 'दुर्लभतम' मामलों में शामिल करके आरोपी को मृत्युदंड देने में गलती की थी.
  • मेहर में संपत्ति के अधिकार का दावाः क्या सौतेले बच्चे, मां की मृत्यु के बाद उसकी मेहर में संपत्ति के अधिकार का दावा कर सकते हैं? डिवीजन बेंच ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उच्च न्यायालय ने मृतक के सौतेले बच्चों को उसकी मेहर संपत्ति में संपत्ति का अधिकार प्रदान किया था. मेहर विलेख को नाममात्र होने के कारण अप्रवर्तनीय घोषित किया था.
  • एक रुपये का जुर्माना लगाया थाः प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट्स के लिए एक रुपये का जुर्माना लगाया गया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और मौजूदा तथा पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट किए थे. उन्होंने कहा, "अगर हम इस तरह के आचरण का संज्ञान नहीं लेंगे तो इससे पूरे देश में वकीलों और वादियों में गलत संदेश जाएगा.
  • परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धिः परिस्थितिजन्य साक्ष्य, अंतिम बार देखे गए साक्ष्य और अभियुक्त द्वारा आपत्तिजनक साक्ष्य का स्पष्टीकरण न दिए जाने के आधार पर अभियुक्त को दोषी करार दिया गया, अभियुक्त की दोषसिद्धि की पुष्टि की गई.
  • चंडीगढ़ में आवासीय परियोजना पर रोकः चंडीगढ़ में टाटा की आवासीय परियोजना को सुखना झील और वन्यजीव अभयारण्य के ‘बहुत करीब’ होने के कारण रोक दिया गया. तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वन्यजीव अभयारण्य से इतनी कम दूरी के भीतर ऐसी परियोजनाओं को आने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
  • ‘भावनात्मक रूप से मृत’ विवाह को भंग किया जा सकता हैः एल. नागेश्वर राव और बी.आर. गवई की खंडपीठ ने सुभ्रांसु सरकार बनाम इंद्राणी सरकार, 2021 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया क्योंकि विवाह भावनात्मक रूप से मृत था.
  • मतदाताओं के सूचना के अधिकार को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निर्देश जारी किए गए. डिवीजन बेंच ने कई राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन न करने के लिए अदालत की अवमानना ​​का दोषी पाया.
  • उन सभी को झूठा नहीं माना जा सकता: 3 न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 के एससी/एसटी अधिनियम के फैसले को आंशिक रूप से अलग रखते हुए अनुच्छेद 15(4) के तहत दलित वर्गों के पक्ष में सुरक्षात्मक भेदभाव की अवधारणा में 2 न्यायाधीशों के फैसले को आंशिक रूप से अलग रखा.

जस्टिस खन्ना ने की सिफारिशः न्यायमूर्ति बीआर गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं. 14 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद की शपथ दिलाएंगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के नाम की सिफारिश अगले सीजेआई के रूप में की है. सीजेआई खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. परंपरा के अनुसार, मौजूदा सीजेआई अपने उत्तराधिकारी के रूप में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश की सिफारिश करते हैं.

इसे भी पढ़ेंः

हैदराबादः जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई यानी कि बी.आर गवई 14 मई, 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. वे सर्वोच्च न्यायालय की कमान संभालने वाले दूसरे दलित न्यायाधीश होंगे. अपने अब तक के न्यायिक जीवन में उन्होंने कई अहम और दूरगामी प्रभाव वाले फैसले सुनाए हैं. जस्टिस गवई ने नागपुर से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का यह लंबा और प्रेरक सफर कैसे तय किया, आइए जानते हैं उनके सफरनामे की पूरी कहानी.

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. 1985 में वकालत शुरू करने के बाद उन्होंने राजा एस. भोंसले जैसे वरिष्ठ कानूनविद् के साथ काम किया. जल्द ही स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में विशेषज्ञता हासिल की और कई नगर निगमों, विश्वविद्यालयों व निगमों के लिए स्थायी वकील रहे.

वे सहायक सरकारी वकील, अतिरिक्त लोक अभियोजक और फिर 2000 में नागपुर पीठ के सरकारी वकील बने. 2003 में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए. 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने और अब 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा.

ETV GFX
ETV GFX (ETV Bharat)

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के उल्लेखनीय निर्णयः

  • संपत्ति पर बुलडोजर की कार्रवाईः खंडपीठ ने बुलडोजर की कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति/घरों को राज्य मशीनरी द्वारा केवल इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि वे किसी अपराध के आरोपी या दोषी हैं.
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य हैः सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से माना कि अनुसूचित जातियों का आरक्षित श्रेणियों में उप-वर्गीकरण, अनुसूचित जाति श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग कोटा देने के लिए स्वीकार्य है.
  • दिल्ली आबकारी शराब नीति घोटालाः खंडपीठ ने मनीष सिसोदिया को केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा क्रमशः भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (‘पीसी एक्ट’) और धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002, (‘पीएमएलए’) के तहत दर्ज दोनों मामलों में जमानत दे दी.
  • अनुच्छेद 370 पर फैसलाः पांच जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा. इसने राज्य का दर्जा बहाल करने का भी निर्देश दिया. तत्कालीन सीजेआई डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने विशेष रूप से भारत के चुनाव आयोग को 30-9-2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने का निर्देश दिया.
  • चुनावी बॉन्ड योजना को खारिज कियाः 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. इस प्रकार, चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक होने के कारण खारिज कर दिया गया.
  • बिना स्टाम्प वाले मध्यस्थता समझौते की वैधताः 7 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि बिना स्टाम्प वाला समझौता स्टाम्प अधिनियम के तहत अस्वीकार्य है, लेकिन इसे शुरू से ही अमान्य नहीं किया जा सकता. इस प्रकार, बिना स्टाम्प वाले या अपर्याप्त रूप से स्टाम्प वाले समझौतों में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य हैं.
  • नोटबंदी पर फैसला: संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केंद्र की 2016 की विमुद्रीकरण योजना (नोटबंदी) को बरकरार रखा और माना कि विमुद्रीकरण केंद्र के घोषित उद्देश्यों के अनुरूप था और इसे उचित तरीके से लागू किया गया था.
  • 'आहत करने वाले' बयान देने की स्वतंत्रता: संविधान पीठ ने सार्वजनिक पदाधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे पर फैसला सुनाया. पूछा कि क्या नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार इसमें बाधा डालता है और मंत्रियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर और अधिक प्रतिबंध लगाने के खिलाफ फैसला सुनाया.
  • मृत्युपूर्व बयान ही दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता हैः पीठ ने अपीलकर्ता को इस बात पर ‘गंभीर संदेह’ व्यक्त करते हुए बरी कर दिया कि क्या कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया मृत्युपूर्व बयान स्वैच्छिक था या किसी अन्य के कहने पर उसे पढ़ाया गया था.
  • तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानतः सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत दी. 3 न्यायाधीशों की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता अतुल सीतलवाड़ को दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर के संबंध में नियमित जमानत दी.
  • मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलाः सर्वोच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. पूर्ण पीठ ने उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. पीठ ने यह विचार किया कि उच्च न्यायालय के साथ-साथ निचली अदालत ने भी वर्तमान मामले को 'दुर्लभतम' मामलों में शामिल करके आरोपी को मृत्युदंड देने में गलती की थी.
  • मेहर में संपत्ति के अधिकार का दावाः क्या सौतेले बच्चे, मां की मृत्यु के बाद उसकी मेहर में संपत्ति के अधिकार का दावा कर सकते हैं? डिवीजन बेंच ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उच्च न्यायालय ने मृतक के सौतेले बच्चों को उसकी मेहर संपत्ति में संपत्ति का अधिकार प्रदान किया था. मेहर विलेख को नाममात्र होने के कारण अप्रवर्तनीय घोषित किया था.
  • एक रुपये का जुर्माना लगाया थाः प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट्स के लिए एक रुपये का जुर्माना लगाया गया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और मौजूदा तथा पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट किए थे. उन्होंने कहा, "अगर हम इस तरह के आचरण का संज्ञान नहीं लेंगे तो इससे पूरे देश में वकीलों और वादियों में गलत संदेश जाएगा.
  • परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धिः परिस्थितिजन्य साक्ष्य, अंतिम बार देखे गए साक्ष्य और अभियुक्त द्वारा आपत्तिजनक साक्ष्य का स्पष्टीकरण न दिए जाने के आधार पर अभियुक्त को दोषी करार दिया गया, अभियुक्त की दोषसिद्धि की पुष्टि की गई.
  • चंडीगढ़ में आवासीय परियोजना पर रोकः चंडीगढ़ में टाटा की आवासीय परियोजना को सुखना झील और वन्यजीव अभयारण्य के ‘बहुत करीब’ होने के कारण रोक दिया गया. तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वन्यजीव अभयारण्य से इतनी कम दूरी के भीतर ऐसी परियोजनाओं को आने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
  • ‘भावनात्मक रूप से मृत’ विवाह को भंग किया जा सकता हैः एल. नागेश्वर राव और बी.आर. गवई की खंडपीठ ने सुभ्रांसु सरकार बनाम इंद्राणी सरकार, 2021 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया क्योंकि विवाह भावनात्मक रूप से मृत था.
  • मतदाताओं के सूचना के अधिकार को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निर्देश जारी किए गए. डिवीजन बेंच ने कई राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन न करने के लिए अदालत की अवमानना ​​का दोषी पाया.
  • उन सभी को झूठा नहीं माना जा सकता: 3 न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 के एससी/एसटी अधिनियम के फैसले को आंशिक रूप से अलग रखते हुए अनुच्छेद 15(4) के तहत दलित वर्गों के पक्ष में सुरक्षात्मक भेदभाव की अवधारणा में 2 न्यायाधीशों के फैसले को आंशिक रूप से अलग रखा.

जस्टिस खन्ना ने की सिफारिशः न्यायमूर्ति बीआर गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं. 14 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद की शपथ दिलाएंगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के नाम की सिफारिश अगले सीजेआई के रूप में की है. सीजेआई खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. परंपरा के अनुसार, मौजूदा सीजेआई अपने उत्तराधिकारी के रूप में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश की सिफारिश करते हैं.

इसे भी पढ़ेंः

Last Updated : May 12, 2025 at 1:11 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.