औरंगाबाद : ज्यादातर बीमा कंपनियां उपभोक्ताओं को लुभावने वादे और दावे दिखाकर पॉलिसी थमा देते हैं. पॉलिसी लेते समय उन शर्तों का ध्यान नहीं रखते जितना क्लेम के वक्त ये सतर्कता दिखाते हैं. इनकी हर जांच और क्वैरी का उद्देश्य क्लेम को रिजेक्ट करने पर रहता है. ऐसे में बेचारे पॉलिसी धारक को जब सहारे की जरूरत होती है तो उन्हें पॉलिसी के रिजेक्शन से गुजरना पड़ता है. ऐसा ही कुछ हुआ औरंगाबाद के किसान महेन्द्र प्रसाद के साथ.
गाय का बीमा लेने के लिए घिस गई चप्पल : किसान महेन्द्र प्रसाद ने पशुधन के लिए बीमा कराया था. लेकिन जब उनकी गाय की मौत हो गई और बीमा का भुगतान करने की बारी आई तब कंपनी ने भुगतान करने से इनकार कर दिया. 5 साल की लंबी सुनवाई के बाद जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश पर राशि का भुगतान किया गया.

बीमा के लिए जिद पर अड़ गया किसान : महेन्द्र प्रसाद ने बैंक से 45 हजार रुपए लोन लेकर गाय खरीदी. उसी वक्त उन्होंने उस गाय का एक इंश्योरेंस कंपनी से बीमा कराया. बीमा की अवधि के बीच ही गाय मर गई जिसकी सूचना उन्होंने बीमा कंपनी को दो लेकिन कंपनी ने कोई संज्ञान नहीं लिया.
बीमा कंपनी ने कई बार नोटिस की अनदेखी की : इस पर सूचक ने मृत गाय का पोस्टमार्टम कराया जिसकी रिपोर्ट, गाय के कान पर लगे बीमा कंपनी के टैग के साथ अपने अधिवक्ता के माध्यम से बीमा कंपनी को वकालत के जरिए नोटिस भिजवाया. फिर भी बीमा कंपनी ने उस नोटिस की भी अनदेखी की.
5 साल बाद कोर्ट ने दिलवाया इंसाफ : जब कहीं कोई सुनवाई नहीं होती देख थक हारकर किसान उपभोक्ता ने अदालत की शरण ली और वाद दाखिल किया. वाद के 6 महीने पूर्व उपभोक्ता अदालत ने किसान के पक्ष में फैसला सुनाया. मामले में मंगलवार को उपभोक्ता अदालत के अध्यक्ष संजय सिंह और सदस्य बद्रीनारायण सिंह ने बीमा कंपनी को क्लेम देने का आदेश दिया.
अदालत ने दुगुने कर दिलाए पैसे : इसके बाद अदालत को वाद संख्या 07/20 में इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम का चेक दिया. जिसके बाद उपभोक्ता अदालत ने किसान महेन्द्र प्रसाद को क्लेम का पैसा 83,833 रूपये का चेक सौंपा. अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि किसान महेन्द्र प्रसाद ने बैंक से लोन लेकर शिवगंज बाजार से 45 हजार रूपये में एक गाय खरीदा था और गाय का बीमा भी कराया था.
''बीमा अवधि के बीच गाय के मर जाने पर इसका सूचना बीमा कंपनी को दी लेकिन कंपनी ने संज्ञान नहीं लिया. इस पर सूचक ने मृत गाय का पोस्टमार्टम कराया. दस्तावेज के साथ क्लेम के लिए वकालतन नोटिस भिजवाया. फिर भी बीमा कंपनी ने संज्ञान नहीं लिया. थक हारकर उपभोक्ता अदालत में वाद दाखिल किया जिससे 6 महीने में ही 83833 रुपये के क्लेम भुगतान का आदेश मिल गया.'' - सतीश कुमार स्नेही, अधिवक्ता
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— Panchayati Raj Department, GoB (@PRD_Bihar) April 3, 2025
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