फरीदाबाद: इन दिनों भीषण गर्मी के बीच लोग पहाड़ों और जंगलों का रूख कर रहे हैं. कई लोग ठंडक पाने के लिए ठंडे प्रदेश राहत पाने के लिए जा रहे हैं. इस बीच हरियाणा के फरीदाबाद जिले में एक सोसाइटी में रहने वाले लोगों ने अपनी सोसाइटी को ठंडा रखने के लिए पूरे सोसाइटी को मिनी फॉरेस्ट में ही तब्दील कर दिया है. यहां के लोगों को भीषण गर्मी में भी कूल-कूल फील हो रहा है.
जापानी तकनीक से बनाया मिनी फॉरेस्ट: दरअसल, हम बात कर रहे हैं फरीदाबाद के समर पाम सोसाइटी की. यहां रह रहे लोगों ने मिलकर सोसाइटी के अंदर ही मियावाकी तकनीक से सोसाइटी को मिनी फॉरेस्ट बना दिया है. समर पाम सोसायटी में रहने वाले लोगों ने 500 स्क्वायर यार्ड में 1200 से भी अधिक पौधे लगाए हैं, इनमें मुख्य रूप से नीम, पीपल, जामुन के पौधे शामिल हैं. 4 साल पहले लगाए गए पौधे अब पेड़ में तब्दील हो चुके हैं. इसके अलावा गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करके सोसायटी के अंदर ही खाद तैयार किया जा रहा है. इस खाद का उपयोग पेड़-पौधों में किया जा रहा है.

क्या कहते हैं सोसाइटी के लोग: ईटीवी भारत की टीम समर पाम सोसाइटी पहुंची. ईटीवी भारत के संवाददाता ने सोसाइटी में रहने वाली बबीता सिंह, प्रभदीप आनंद और पीवी वर्मा से बातचीत की. बातचीत के दौरान बबीता सिंह ने कहा, "फरीदाबाद की जितनी भी सोसाइटी है, उन सब सोसाइटियों में हमारी सोसाइटी में ग्रीनरी ज्यादा है. 4 साल पहले हम लोगों ने मिलकर फैसला लिया था कि क्यों ना अपनी सोसाइटी के अंदर ही मिनी फॉरेस्ट बनाया जाए. इस पर हम सबने मिलकर काफी रिसर्च किया. कई लोगों से हम मिले. इसके बाद हमने मियावाकी तकनीक से लगभग 1200 से अधिक पौधे लगाए. ये पौधे अब पेड़ में तब्दील हो चुके हैं."
क्या है जापानी मियावाकी तकनीक: बबीता सिंह ने आगे बताया कि, "मियावाकी तकनीक जापानी तकनीक है. इस तकनीक में कम जगह में, छोटे बड़े पौधों को लगाकर एक जंगल तैयार किया जाता है. इस तकनीक के सहारे हमने अपनी सोसाइटी के अंदर ही मिनी फॉरेस्ट बनाया है. अक्सर देखा जाता है कि पेड़-पौधे लगाने के बाद कुछ दिनों बाद वह पेड़ पौधे सूख जाते हैं, लेकिन हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमारा सक्सेस रेट हंड्रेड परसेंट है. ये सब मियावाकी तकनीक से संभव हो पाया है."

सोसाइटी के कचरे से तैयार करते हैं खाद: बबीता सिंह ने कहा, "हमारी सोसाइटी में 700 से अधिक घर हैं. इन घरों से जितना भी कूड़ा इकट्ठा होता है, उस कूड़े को हम अलग-अलग करके एक मशीन में डालते हैं. वह मशीन सोलर सिस्टम से चलता है और 40 दिन के अंदर वह मशीन उस कूड़े को खाद में तब्दील कर देता है, जिसके बाद उस खाद को बाहर निकाल कर, उसे सुखाकर हम पेड़ पौधों में डालते हैं. यानी हमारे यहां कूड़ा भी वेस्ट नहीं जाता. इसके अलावा आजकल जो कागज के थैले हैं. उन थैली को भी हम फेंकते नहीं हैं, बल्कि उसे थैले से भी हम खाद बना रहे हैं."

पहले सोसाइटी वालों ने किया था रिसर्च: समर पाम सोसायटी में रहने वाले प्रभदीप आनंद ने कहा, "मैं पिछले 8 सालों से हर साल 100 पेड़ लगाता हूं. यही वजह है कि हमने अपनी सोसाइटी के अंदर ही मिनी फॉरेस्ट बनाने का प्लान किया, जिसको लेकर मैंने सोसाइटी में रहने वाले लोगों से बातचीत की और लोग इस मुहीम से जुड़ने के लिए तैयार हो गए. जिसके बाद मैं मिनी फॉरेस्ट बनाने को लेकर रिसर्च करने लगा. हमने फॉरेस्ट दफ्तर के चक्कर भी काटे. जहां से जानकारी मिली, वहां से जानकारी इकट्ठा की और इस दौरान मुझे मियावाकी तकनीक के बारे में पता चला. इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हमने सोसाइटी के अंदर ही मिनी फॉरेस्ट बनाया है."
"पॉल्यूशन ज्यादा है. हीट वेव है. टेंपरेचर ज्यादा है. ऐसे में अगर पेड़-पौधे रहेंगे तो टेंपरेचर को कंट्रोल किया जा सकता है, क्योंकि दिन-ब-दिन जंगल खत्म होता जा रहा है.अगर जंगल खत्म हो जाएगा तो धरती पर इंसान का रहना भी मुश्किल हो जाएगा. हम सब को चाहिए कि अपने आस-पास पेड़ जरूर लगाएं." -प्रभदीप आनंद, सोसाइटी के निवासी
4 साल में 1200 से अधिक पौधे लगाए गए: प्रभदीप आनंद ने आगे कहा, " मियावाकी तकनीक से हमने ये मिनी फॉरेस्ट तैयार किया है. इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हमने अपनी सोसाइटी में मिनी फॉरेस्ट बनाया है. 4 साल पहले हमने यहां पर लगभग 1200 से ज्यादा पौधे लगाए थे, जो अब पेड़ में तब्दील हो चुके हैं. अगर बाहर के टेंपरेचर की बात करें, तो टेंपरेचर ज्यादा रहता है, लेकिन हमारे मिनी फॉरेस्ट का टेंपरेचर बाहर की टेंपरेचर से बहुत कम रहता है. मैं सरकार से भी अपील करूंगा कि वह हमें और भी जगह उपलब्ध करवाए, जहां पर हम इसी तरह का फॉरेस्ट का निर्माण कर सके."

गर्मी से मिलती है राहत: वहीं, सोसाइटी में रहने वाले पीवी वर्मा ने आगे कहा, "हमने मियावाकी तकनीक से जो पौधे लगाए हैं. उस पर विदेश में रिसर्च की गई. उससे प्रूफ हुआ है कि मियावाकी तकनीक से पौधे लगाने में पर्यावरण में बदलाव आता है. बाहर के टेंपरेचर की बात करें तो बाहर के टेंपरेचर 42 डिग्री है. जब आप मिनी फॉरेस्ट में आएंगे तो टेंपरेचर बाहर के टेंपरेचर से कम मिलेगा. यही वजह है कि मियावाकी तकनीक सक्सेसफुल है. इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विदेश में भी फॉरेस्ट तैयार किया जाता है. मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हमने अपने सोसायटी के अंदर ही मिनी फॉरेस्ट लगाया है. इससे वातावरण अनुकूल रहेगा. आने वाले दिनों में जब यह पेड़ और बड़ा हो जाएगा तो ये मिनी फॉरेस्ट और घने जंगल में तब्दील हो जाएगा."
यानी कि भीषण गर्मी के प्रकोप के बीच समर पाम सोसाइटी के लोगों ने नेचुरल तरीके से अपने आस-पास के माहौल को ठंडा रखा है. साथ ही ये अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा बनकर उभरे हैं. जिले में इस मिनी फॉरेस्ट की काफी चर्चा हो रही है.