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विकास के नाम पर खनिज खनन और सड़क के नाम पर पेड़ काटना है आम बात, खत्म हुए जंगल झील तो मिट जाएगी धरती-कुणाल शुक्ला - ENVIRONMENTALIST KUNAL SHUKLA

विश्व पर्यावरण दिवस पर ईटीवी भारत ने पर्यावरणविद कुणाल शुक्ला से खास बातचीत की.

KUNAL SHUKLA
कुणाल शुक्ला ने जंगल बचाने का दिया संदेश (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : June 4, 2025 at 7:39 PM IST

4 Min Read

रायपुर(भूपेंद्र दुबे, ब्यूरो चीफ): विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण बचाने को लेकर कई चर्चा हो रही है. ग्लोबल वार्मिंग जहां धरती का तापमान बढ़ा रहा है, वहीं नदी और झीलों की हालत भी बद से बदतर हो रही है. बदलते पर्यावरण की कहानी में पेड़ भारत में कटेगा तो इंपैक्ट पूरे विश्व में होगा. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इस बात की जानकारी देते हुए पर्यावरणविद कुणाल शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि पेड़ का कटना कोई सामान्य बात नहीं है. ऐसा नहीं है अगर एक पेड़ आप छत्तीसगढ़ में भले ही काटते हैं, उसका इंपैक्ट पूरे भारत में होगा.

ग्लोबल वार्मिंग का असर: कुणाल शुक्ला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हम इंडोनेशिया की बात करें तो जकार्ता में समुद्री जलस्तर बढ़ने के कारण पानी जकार्ता के अंदर आ रहा है. स्विट्जरलैंड जो शहर समुद्र के किनारे बसा हुआ था, उसमें दो-तीन दिन पहले ऐसी घटना हुई तो उसमें पानी अंदर आया है. कई लोग प्रभावित हुए हैं. यह पर्यावरण के बिगड़ते हालात के कारण ही है.

विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरणविद कुणाल शुक्ला का संदेश (ETV BHARAT)

"1.5% बढ़ा सूर्य का तापमान": कुणाल शुक्ला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में मैंग्रोव फॉरेस्ट काटने के कारण समुद्र का जलस्तर ऊपर आ रहा है. छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों में काटे गए पेड़ की बात करें या फिर मणिपुर में काटे गए चार लाख 72 हजार पेड़ों के काटने की. असर की बात करें तो उसका असर सिर्फ छत्तीसगढ़ हसदेव में नहीं पड़ेगा. इसका असर हमारे मदर अर्थ पर पड़ता है. पूरे सूर्य का तापमान 1.5% बढ़ गया है और लगातार समुद्र का पानी गर्म हो रहा है तो अगर इसे नहीं रोका गया तो निश्चित तौर पर यह बहुत खतरे की स्थिति है.

"जीवित पेड़ बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण": पर्यावरण दिवस मनाना महत्वपूर्ण नहीं है. एक पेड़ लगा देना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि एक जीवित पेड़ को बचा लेना अधिक महत्वपूर्ण है. कुणाल शुक्ला ने बताया कि हिमालय के ग्लेशियर और बर्फ बहुत तेजी से पिघल रहे हैं. यह पूरे मनुष्य जाति के लिए खतरे की घंटी है. सिर्फ पर्यावरण दिवस को मनाना उचित नहीं है बल्कि कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए हम कुछ करें तभी यह पृथ्वी बच पाएगी, तभी धरती बच पाएगी.

"जंगल बचाना जरूरी": कुणाल शुक्ला ने बताया कि हसदेव में चार लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए हैं. बस्तर में पेड़ काटे जा रहे हैं. सरगुजा में बड़े स्तर पर पेड़ काटे जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ उन राज्यों में है, जहां से 44 से 45 फीसदी हिस्सा जंगल से घिरा हुआ है. जब जंगल ही नहीं रहेगा तो छत्तीसगढ़ की कल्पना बहुत भयावह होगी.

"बढ़ता तापमान चिंता का विषय": ग्लोबल वार्मिंग हमारे लिए चिंता का विषय है. कार्बन उत्सर्जन हमारे लिए चिंता का विषय है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान हमारे लिए चिंता का विषय है. ग्लेशियर की पिघलती बर्फ हमारे लिए चिंता का विषय है. इस पर अगर काम नहीं किया गया तो आने वाले समय में निश्चित तौर पर स्थित खतरनाक होगी.

"पर्यावरण दिवस की कल्पना कैसे साकार होगी": कुणाल शुक्ला ने बताया कि विकास के नाम पर खनिजों का उत्सर्जन यह विकास हो गया है. सड़क के विकास के नाम पर पेड़ का काटा जाना विकास हो गया है. विकास के नाम पर नदियों झीलों को उजाड़ना विकास का नाम हो गया है. जिस विकास को किया जा रहा है, आने वाले समय में जब पृथ्वी की संरचना ही बिगड़ जाएगी, तो फिर इस विषय को लेकर क्या करेंगे. कटते जंगल, उजड़ती झीलों और खत्म होती नदियों को बचाना हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए, तभी पर्यावरण के सही मायने तय होंगे. कम से कम पर्यावरण दिवस की एक कल्पना साकार होगी.

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रायपुर(भूपेंद्र दुबे, ब्यूरो चीफ): विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण बचाने को लेकर कई चर्चा हो रही है. ग्लोबल वार्मिंग जहां धरती का तापमान बढ़ा रहा है, वहीं नदी और झीलों की हालत भी बद से बदतर हो रही है. बदलते पर्यावरण की कहानी में पेड़ भारत में कटेगा तो इंपैक्ट पूरे विश्व में होगा. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर इस बात की जानकारी देते हुए पर्यावरणविद कुणाल शुक्ला ने ईटीवी भारत को बताया कि पेड़ का कटना कोई सामान्य बात नहीं है. ऐसा नहीं है अगर एक पेड़ आप छत्तीसगढ़ में भले ही काटते हैं, उसका इंपैक्ट पूरे भारत में होगा.

ग्लोबल वार्मिंग का असर: कुणाल शुक्ला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हम इंडोनेशिया की बात करें तो जकार्ता में समुद्री जलस्तर बढ़ने के कारण पानी जकार्ता के अंदर आ रहा है. स्विट्जरलैंड जो शहर समुद्र के किनारे बसा हुआ था, उसमें दो-तीन दिन पहले ऐसी घटना हुई तो उसमें पानी अंदर आया है. कई लोग प्रभावित हुए हैं. यह पर्यावरण के बिगड़ते हालात के कारण ही है.

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"1.5% बढ़ा सूर्य का तापमान": कुणाल शुक्ला ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में मैंग्रोव फॉरेस्ट काटने के कारण समुद्र का जलस्तर ऊपर आ रहा है. छत्तीसगढ़ में हसदेव के जंगलों में काटे गए पेड़ की बात करें या फिर मणिपुर में काटे गए चार लाख 72 हजार पेड़ों के काटने की. असर की बात करें तो उसका असर सिर्फ छत्तीसगढ़ हसदेव में नहीं पड़ेगा. इसका असर हमारे मदर अर्थ पर पड़ता है. पूरे सूर्य का तापमान 1.5% बढ़ गया है और लगातार समुद्र का पानी गर्म हो रहा है तो अगर इसे नहीं रोका गया तो निश्चित तौर पर यह बहुत खतरे की स्थिति है.

"जीवित पेड़ बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण": पर्यावरण दिवस मनाना महत्वपूर्ण नहीं है. एक पेड़ लगा देना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि एक जीवित पेड़ को बचा लेना अधिक महत्वपूर्ण है. कुणाल शुक्ला ने बताया कि हिमालय के ग्लेशियर और बर्फ बहुत तेजी से पिघल रहे हैं. यह पूरे मनुष्य जाति के लिए खतरे की घंटी है. सिर्फ पर्यावरण दिवस को मनाना उचित नहीं है बल्कि कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए हम कुछ करें तभी यह पृथ्वी बच पाएगी, तभी धरती बच पाएगी.

"जंगल बचाना जरूरी": कुणाल शुक्ला ने बताया कि हसदेव में चार लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए हैं. बस्तर में पेड़ काटे जा रहे हैं. सरगुजा में बड़े स्तर पर पेड़ काटे जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ उन राज्यों में है, जहां से 44 से 45 फीसदी हिस्सा जंगल से घिरा हुआ है. जब जंगल ही नहीं रहेगा तो छत्तीसगढ़ की कल्पना बहुत भयावह होगी.

"बढ़ता तापमान चिंता का विषय": ग्लोबल वार्मिंग हमारे लिए चिंता का विषय है. कार्बन उत्सर्जन हमारे लिए चिंता का विषय है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान हमारे लिए चिंता का विषय है. ग्लेशियर की पिघलती बर्फ हमारे लिए चिंता का विषय है. इस पर अगर काम नहीं किया गया तो आने वाले समय में निश्चित तौर पर स्थित खतरनाक होगी.

"पर्यावरण दिवस की कल्पना कैसे साकार होगी": कुणाल शुक्ला ने बताया कि विकास के नाम पर खनिजों का उत्सर्जन यह विकास हो गया है. सड़क के विकास के नाम पर पेड़ का काटा जाना विकास हो गया है. विकास के नाम पर नदियों झीलों को उजाड़ना विकास का नाम हो गया है. जिस विकास को किया जा रहा है, आने वाले समय में जब पृथ्वी की संरचना ही बिगड़ जाएगी, तो फिर इस विषय को लेकर क्या करेंगे. कटते जंगल, उजड़ती झीलों और खत्म होती नदियों को बचाना हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए, तभी पर्यावरण के सही मायने तय होंगे. कम से कम पर्यावरण दिवस की एक कल्पना साकार होगी.

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