रांची: जब दुनिया कंक्रीट के जंगलों की ओर दौड़ रही है, तब रांची के एक साधारण व्यक्ति सह प्रकृति-प्रेमी अखिलेश कुमार अंबष्ट ने अपने घर को प्रकृति का अभयारण्य बना दिया है. एक ऐसा घर जो अब नर्सरी भी है, पार्क भी है और हजारों पेड़-पौधों की आश्रयस्थली भी. रिटायर्ड सरकारी अफसर होने के बावजूद उनका समर्पण, उनका जुनून और उनका जीवन आज हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा बन गया है, जो पर्यावरण संरक्षण को सिर्फ एक मुद्दा नहीं, जिम्मेदारी मानता है.
25 वर्षों की साधना और एक हरियाली की दुनिया
श्रीकृष्ण लोक प्रशासन संस्थान में आप्त सचिव पद से सितंबर 2024 में सेवानिवृत्त हुए अखिलेश अंबष्ट पिछले 25 वर्षों से अपने इस जुनून को जीते आ रहे हैं. रांची के रातू रोड के पास उनके आवास संख्या B-13 में उन्होंने 8000 से अधिक दुर्लभ और औषधीय पौधों को संरक्षित किया है. घर के आंगन से लेकर छत तक, दीवारों से लेकर कोनों तक, हर दिशा में हरियाली की ऐसी परतें चढ़ा रखी हैं कि कोई भी पहली नजर में इसे व्यावसायिक नर्सरी या हर्बल गार्डन समझ ले.
400 से अधिक प्रजातियां, एक हरियाली का म्यूजियम
इनके पौधों की सूची किसी बॉटनिकल रिसर्च सेंटर को भी चौंका सकती है. रक्तचंदन, ब्रह्मकमल, रुद्राक्ष, तेजपत्ता, कपूर, सिंदूर, पान जैसे अनेक दुर्लभ पौधे यहां फल-फूल रहे हैं. इन पेड़-पौधों की देखरेख खुद अखिलेश, उनकी पत्नी और भाई करते हैं. वे पौधों को बच्चों की तरह पालते हैं. घर के जैविक कचरे से खाद तैयार कर उन्हें पोषण देते हैं. समय पर पानी देते हैं और खुद उनके साथ वक्त बिताते हैं.
निस्वार्थ सेवा और निशुल्क पौधा
अखिलेश न केवल अपने घर में पौधे लगाते हैं, बल्कि रांची के कई क्लब, पहाड़ी मंदिर, पुलिस थाने, आईएएस क्लब, सांसद-विधायकों के घरों, यहां तक कि हाई कोर्ट के जजों को भी अपने हाथों से तैयार पौधे निशुल्क भेंट करते हैं. वे यह कार्य केवल पौधे देकर नहीं करते, बल्कि हर व्यक्ति से वचन भी लेते हैं कि वे कम से कम पांच पौधों को संरक्षित करेंगे. उनका मानना है कि 'पौधे सिर्फ लगाना नहीं, बचाना भी उतना ही जरूरी है'.

परिवार और पड़ोसियों की एकजुट भागीदारी
अखिलेश के इस मिशन में उनका पूरा परिवार साथ खड़ा है. शुरुआत में घर में कीड़े-मकोड़ों की समस्या आई, लेकिन परिवार ने इसे स्वीकार किया और धीरे-धीरे एक व्यवस्थित प्रणाली बना ली. उनके पड़ोसी कहते हैं कि अखिलेश जिस तरह से पेड़ों को पालते हैं, वैसा प्रेम उन्होंने किसी में नहीं देखा. उनके अनुसार, 'यह कोई शौक नहीं, एक समर्पण है, एक तपस्या है'.
प्राकृतिक वातावरण में जीता जागता स्वर्ग
अखिलेश के घर का वातावरण इतना सौम्य और सुंदर है कि कई लोग सिर्फ वहां कुछ वक्त बिताने आते हैं। उनके मित्र बताते हैं कि वहां बैठना मानसिक शांति का अनुभव कराता है। मॉर्निंग वॉक तक की जरूरत नहीं पड़ती—घर के भीतर ही प्रकृति की गोद में भ्रमण हो जाता है.

प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं अखिलेश
सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार यादव कहते हैं कि अखिलेश जी का कार्य केवल पौधारोपण ही नहीं है, यह एक सामाजिक आंदोलन भी है. उन्होंने हजारों लोगों को पौधों से जोड़ने का कार्य किया है. रांची के कई इलाकों में उनके लगाए पौधे अब पेड़ बन चुके हैं. यह पहल प्रेरणादायक ही नहीं, अनुकरणीय है.
वहीं, उनके मित्र रविन्द्र कुमार कहते हैं कि शुरुआत से ही अखिलेश सर प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहे हैं. उनका घर एक जीवंत बॉटनिकल गार्डन है. वे हर पेड़ को संतान की तरह पालते हैं और हर आगंतुक को पेड़ लगाने की प्रेरणा देते हैं.

प्रकृति से प्रेम पागलपन नहीं, आवश्यकता है
अखिलेश का कहना है कि 1990 से पौधों को संरक्षित कर रहा हूं. मेरी नर्सरी में ऐसे पौधे हैं, जो राजभवन के उद्यान में भी नहीं मिलते. सरकारी नौकरी के दौरान भी इस कार्य से कभी दूरी नहीं बनाई. अब रिटायर होकर भी मेरा मिशन जारी है. अब रेरा संस्थान से भी जुड़े हुए हैं और लगातार पौधारोपण अभियानों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
ये घर नहीं जन्नत है
अखिलेश अंबष्ट का घर सिर्फ ईंट-पत्थर की चारदीवारी नहीं, बल्कि एक जीवंत उदाहरण है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो एक व्यक्ति अकेले भी समाज और पर्यावरण की दिशा बदल सकता है. जहां आज पेड़ों की कटाई आम बात हो गई है, वहीं अखिलेश जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति से प्रेम केवल भाषणों में नहीं, कर्मों में दिखना चाहिए. वाकई, अखिलेश अंबष्ट का यह हरियाली से भरा संसार आज की दुनिया में किसी स्वर्ग से कम नहीं.