चेन्नई: सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक मामले में सुनवाई करते हुए सलाह दी थी कि राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर फैसला लेना चाहिए. SC की इस टिप्पणी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपत्ति जताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी. सवाल उठाया कि, सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति का आदेश कैसे दे सकता है. साथ ही संविधान का अनुच्छेद 142 को न्यायपालिका का परमाणु मिसाइल बताया.
उपराष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद राजनीतिक बहस छिड़ गयी. तमाम विपक्षी दल इसकी निंदा करने लगे. तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके ने भी उपराष्ट्रपति के बयान पर हमला बोला. डीएमके के मुखपत्र 'मुरासोली' ने सवाल किया है कि क्या उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ चुपचाप देखते रहेंगे अगर राष्ट्रपति केंद्र सरकार के विधेयकों को रोक दें, जैसे राज्यपाल राज्य सरकार के विधेयकों को एक साल तक रोक देते हैं?
'मुरासोली' ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की इस टिप्पणी का कड़ा विरोध किया है कि 'सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकता, भारतीय लोकतंत्र में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.' मुरासोली ने कहा कि धनखड़ की टिप्पणी भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ है और न्यायपालिका का अपमान है. उपराष्ट्रपति ने किस आधार पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकता? दैनिक ने उनसे पूछा है कि भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में इसका उल्लेख है?

'मुरासोली' ने 21 अप्रैल को अपने संपादकीय में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की जांच करने और उसमें कोई कमी होने पर स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार है. 'मुरासोली' ने यह भी सवाल उठाया कि यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव मामले की सुनवाई करने का अधिकार रखने वाला सुप्रीम कोर्ट संविधान के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को आदेश जारी नहीं कर सकता.
दैनिक ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति के तहत दिए गए निर्णय की आलोचना करना भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ है और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार दिया गया एक निष्पक्ष आदेश है. जहां अन्य विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति की टिप्पणी की आलोचना की, वहीं डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने उपराष्ट्रपति धनखड़ की निंदा करते हुए कहा कि नियुक्त पदों पर बैठे लोग जनता द्वारा चुने गए लोगों का नेतृत्व नहीं कर सकते.
क्यों मचा है राजनीति बवालः
बता दें कि जिस मामले की सुनवाई के बाद राजनीतिक बवाल मचा हुआ है उसे तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था. तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को कई महीनों तक बिना मंजूरी दिए रोके रखा था. राज्यपाल ने कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी भेजा था, जबकि कानूनी प्रक्रिया के तहत विधेयकों को दोबारा पारित करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत होती है.
तमिलनाडु सरकार इस बात से बेहद असंतुष्ट है और उसने राज्य के राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्यपाल और राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयकों को मंजूरी देने का आदेश दिया है. आजादी के इतिहास से ही विधेयकों को मंजूरी देना राष्ट्रपति और राज्यपाल का विशेषाधिकार रहा है, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने भारत में काफी बहस छेड़ दी है.
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