देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों में वन क्षेत्रों की मिट्टी के नमूने लिए जा रहे हैं. इस दौरान मिट्टी की सेहत को यहां मौजूद न्यूट्रिएंट्स के जरिए मापा जा रहा है. खास बात यह है कि इसी अध्ययन के दौरान उत्तराखंड के कई डिविजन में पोषक तत्वों को लेकर सामने आए आंकड़े चिंता पैदा कर रहे हैं. क्योंकि राज्य के कई क्षेत्रों में पोषक तत्वों का असंतुलन देखने को मिला है, जो सॉयल मैनेजमेंट में ज्यादा प्रभावी कार्य करने की तरफ इशारा कर रहा है.
वृक्षारोपण के लिए अनुकूल मौसम, बेहतर बीज और पर्याप्त पानी जितना जरूरी है, उतन ही जरूरी मिट्टी का स्वस्थ होना भी है. यानी जिस मिट्टी पर वृक्षों के फलने फूलने की पूरी जिम्मेदारी है, वो भी पोषक तत्वों से परिपूर्ण होनी चाहिए. तभी इस पर बेहतर खेती या वन क्षेत्र होने की कल्पना की जा सकती है. शायद इसी बात को समझते हुए देश भर के तमाम राज्यों में वन क्षेत्रों की मिट्टी के लिए अध्ययन करवाया जा रहा है, जिसमें उत्तराखंड के भी कई डिवीजन शामिल हैं.
pH मानक पर इन प्रभागों के हैं चिंताजनक आंकड़े: मिट्टी के अहम पोषक तत्वों में pH भी शामिल है. राज्य के तमाम वन क्षेत्रों की मिट्टी के नमूने लेने पर पता चला कि कहीं तो pH मानक स्टैंडर्ड वैल्यू से बेहद कम है, तो कहीं पर pH मानक स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी ज्यादा है.

आमतौर पर pH का स्टैंडर्ड वैल्यू 5.9 होता है, लेकिन मसूरी डिवीजन, टौंस, नैनीताल, हल्द्वानी, अपर यमुना, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, बदरीनाथ और पौड़ी गढ़वाल डिविजन में इसकी वैल्यू कम पाई गई है. इसी तरह देहरादून, चकराता, हरिद्वार, कालसी, रामनगर, नरेंद्र नगर, टिहरी, तराई वेस्ट, तराई सेंटर, चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर और लैंसडाउन डिवीजन में pH की वैल्यू स्टैंडर्ड वैल्यू से ज्यादा थी. हालांकि, नैनीताल डिवीजन में मानक से काफी कम 5.02 pH पाया गया. इसी तरह तराई वेस्ट डिवीजन में 7.32 pH पाया गया, जो स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी ज्यादा था.
ऑर्गेनिक कार्बन के मामले में इन प्रभागों में रहा असंतुलन: ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में मिलने वाले विभिन्न कंपोनेंट्स में से एक है, और मिट्टी की बेहतर सेहत के लिहाज से इसका अहम योगदान होता है. मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का स्टैंडर्ड वैल्यू 1.81 माना जाता है, लेकिन जब उत्तराखंड में विभिन्न प्रभागों की मिट्टी के नमूने लिए गए तो उनमें कुछ जगहों पर कार्बन की वैल्यू काफी कम रिकॉर्ड की गई तो वहीं कुछ स्थानों पर स्टैंडर्ड वैल्यू से ज्यादा कार्बन की मात्रा मिली.

राज्य के हल्द्वानी डिवीजन में स्टैंडर्ड कार्बन वैल्यू से काफी कम ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में पाया गया. इस डिवीजन में 0.38 प्रतिशत ऑर्गेनिक कार्बन मिला. इसी तरह बदरीनाथ फॉरेस्ट डिविजन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा काफी ज्यादा थी, यहां स्टैंडर्ड वैल्यू से बेहद ज्यादा 2.79% ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में मिला.
नाइट्रोजन के मामले में यह क्षेत्र चिंताजनक स्थिति में मिले: उत्तराखंड में मिट्टी के नमूने की जांच करने पर पाया गया कि हल्द्वानी वन प्रभाग की मिट्टी में स्टैंडर्ड वैल्यू की तुलना में काफी कम नाइट्रोजन मौजूद था. हल्द्वानी डिवीजन में 175.62 (kg/ha) नाइट्रोजन की मौजूदगी मिली, जबकि स्टैंडर्ड मानक के लिहाज से तराई वेस्ट फॉरेस्ट डिविजन में नाइट्रोजन की वैल्यू काफी ज्यादा थी. यहां पर 415.49 (kg/ha) नाइट्रोजन की मात्रा मिली. हालांकि नाइट्रोजन के मामले में स्टैंडर्ड वैल्यू 282.63 (kg/ha) है.

यहां kg/ha का मतलब kilograms per hectare है.
फास्फोरस की भी मिट्टी में उपलब्धता है बेहद जरूरी: प्रदेश में विभिन्न डिविजन से लिए गए मिट्टी के नमूनों में फास्फोरस की उपलब्धता को भी देखा गया. नमूनों की जांच के बाद पता चला कि पिथौरागढ़ में स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी कम फास्फोरस मिट्टी में उपलब्ध था.
पिथौरागढ़ डिवीजन के नमूने में फास्फोरस की मात्रा 23.55 (kg/ha) पाई गई, जबकि तराई ईस्ट फॉरेस्ट डिविजन की मिट्टी के नमूने फास्फोरस की उपलब्धता को लेकर काफी रिच दिखे. यहां पर फास्फोरस की वैल्यू 54.46 (kg/ha) थी, जोकि स्टैंडर्ड वैल्यू 40.93 kg/ha से काफी ज्यादा था.

पोटेशियम के मामले में भी हल्द्वानी डिवीजन चिंताजनक स्थिति में: हल्द्वानी डिवीजन की मिट्टी में पोटेशियम भी स्टैंडर्ड वैल्यू से कम पाया गया है. यहां पर 308.32 (kg/ha) वैल्यू मिली है, जबकि पोटेशियम के लिहाज से स्टैंडर्ड वैल्यू 418.18 kg/ha मानी जाती है. उधर राज्य में टौंस डिवीजन में मिट्टी के नमूनों की जांच के बाद यहां पोटेशियम की मात्रा बेहद ज्यादा मिली. यहां पोटेशियम वैल्यू 664.85 (kg/ha) थी.

मिट्टी के पोषक तत्व में शामिल सल्फर की यह स्थिति आई सामने: पौधे की बेहतर ग्रोथ के लिए मिट्टी में सल्फर की जरूरत बेहद ज्यादा होती है. इसके लिए एक स्टैंडर्ड वैल्यू भी तय है. मिट्टी में सल्फर की मौजूदगी का स्टैंडर्ड वैल्यू 3.98 है. लेकिन इस स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी कम सल्फर बागेश्वर डिविजन की मिट्टी में मिला है. यहां पर सल्फर की वैल्यू 2.56 ppm रही. इसी तरह स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी ज्यादा सल्फर की वैल्यू हल्द्वानी फॉरेस्ट डिविजन में मिली है. यहां पर 5.53 ppm वैल्यू पाई गई.

यहां ppmवैल्यू का मतलब parts per million है.
जिंक मानक में भी हल्द्वानी डिवीजन की मिट्टी रही कमजोर: मिट्टी में जिंक की उपलब्धता के लिहाज से भी हल्द्वानी डिवीजन काफी कमजोर दिखाई दिया. इस डिवीजन से नमूने के रूप में ली गई मिट्टी की उपलब्धता 0.09 ppm पाई गई, जो की स्टैंडर्ड वैल्यू 0.87 से काफी कम थी. हालांकि बदरीनाथ फॉरेस्ट डिविजन में जिंक मानक 3.78 ppm रहा, जो की स्टैंडर्ड वैल्यू से काफी ज्यादा था.

आयरन की भी हल्द्वानी डिवीजन की मिट्टी में कमी: आमतौर पर मिट्टी में आयरन की उपलब्धता सामान्य रहती है, लेकिन हल्द्वानी डिवीजन से लिए गए मिट्टी के नमूनों में आयरन की कमी देखी गई है. यहां पर आयरन वैल्यू 0.83 ppm थी, जो की स्टैंडर्ड वैल्यू 3.35 से काफी कम थी. हालांकि प्रदेश में पिथौरागढ़ डिवीजन से ली गई मिट्टी के नमूने में सबसे ज्यादा आयरन 5.07 ppm रिकॉर्ड किया गया है.

मैंगनीज के मामले में भी हल्द्वानी डिवीजन की मिट्टी चिंताजनक स्थिति में: हल्द्वानी फॉरेस्ट डिविजन मैंगनीज की उपलब्धता को लेकर भी चिंताजनक स्थिति में दिखाई दिया है. दरअसल यहां से लिए गए मिट्टी के नमूनों में 0.50 ppm मैंगनीज मिला. उधर, उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मैंगनीज चंपावत फॉरेस्ट डिविजन की मिट्टी में रिकॉर्ड किया गया, जहां 6.25 ppm मैंगनीज वैल्यू रही. मैंगनीज की स्टैंडर्ड वैल्यू 3.24 ppm मानी जाती है.

कॉपर वैल्यू की स्थिति: मिट्टी की जांच के दौरान पाया गया कि देहरादून डिवीजन की मिट्टी में कॉपर काफी कम था, जबकि नरेंद्र नगर फॉरेस्ट डिविजन में सबसे ज्यादा कॉपर की उपलब्धता दिखाई दी. देहरादून डिवीजन में 0.23ppm, जबकि नरेंद्र नगर डिवीजन में 3.58 ppm कॉपर उपलब्ध था. जबकि स्टैंडर्ड वैल्यू के रूप में 1.18 ppm कॉपर वैल्यू सही माना जाता है. मिट्टी में पोषक तत्वों की बेहतर स्थिति से ही वृक्षारोपण के लक्ष्यों को पाया जा सकता है.

वन क्षेत्र में पहली बार हुई मिट्टी की जांच: बता दें कि, कृषि क्षेत्र में काफी पहले से ही मिट्टी की सेहत का परीक्षण किया जाता है और इसके आधार पर हेल्थ कार्ड भी बनाए जाते हैं, ताकि किसानों को अपनी मिट्टी की सेहत का पता हो और इस आधार पर वह विभिन्न पोषक तत्वों के लिए मिट्टी पर काम कर सके, लेकिन यह पहला मौका है, जब वन क्षेत्र की मिट्टी की सेहत जांची गई है. प्रमुख वन संरक्षक हॉफ डॉ धनंजय मोहन बताते हैं कि Soil (मृदा) टेस्टिंग वृक्षारोपण से पहले की एक अहम प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से वृक्षारोपण को सफल बनाया जा सकता है.
उत्तराखंड वन विभाग और FRI ने तैयार की मिट्टी में पोषक तत्वों की रिपोर्ट: FRI (Forest Research Institute) देशभर के कई राज्यों में मिट्टी की सेहत का रिकॉर्ड तैयार कर रहा है. उत्तराखंड भी इन्हीं में से एक है, जहां पर प्रदेश के तमाम वन क्षेत्रों की मिट्टी के नमूने लिए गए हैं.
24 टेरिटोरियल डिवीजन की मिट्टी की सैंपलिंग की गई: फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में कुल 24 टेरिटोरियल डिवीजन की मिट्टी की सैंपलिंग की, और इसमें मौजूद पोषक तत्वों का रिकॉर्ड तैयार किया. मुख्य रूप से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जिंक, कार्बन, आयरन, कॉपर और मैंगनीज जैसे पोषक तत्व की लेबोरेटरी में जांच के दौरान मौजूदगी को देखा गया. इन विभिन्न पोषक तत्वों का अपना खास महत्व होता है और इसलिए इन सभी को स्टैंडर्ड वैल्यू से तुलनात्मक रूप से भी मापा गया है. खास बात यह है कि अलग-अलग पोषक तत्व अलग-अलग वन क्षेत्र में कहीं बेहद ज्यादा तो कहीं पर बेहद कम भी रिकॉर्ड किए गए.
केवल उत्तराखंड ही नहीं बल्कि फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देश के बाकी राज्यों में भी इसी तरह मिट्टी की सेहत को जांच रहा है. उत्तराखंड के अलावा देश में हिमाचल, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी मिट्टी के सैंपल लिए गए हैं, ताकि यहां पर मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की उपलब्धता को जांच जा सके.
मिट्टी सेहत के लिए ऑर्गेनिक खाद पर जोर: फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने न केवल मिट्टी में मौजूद तमाम पोषक तत्वों की जानकारी राज्यों को दी है, बल्कि इसके आधार पर भविष्य में कैसे मिट्टी की सेहत को बेहतर किया जा सकता है, इसके लिए भी सुझाव दिए हैं. इस दौरान वैज्ञानिक मुख्य तौर पर ऑर्गेनिक खाद का उपयोग करने की ही सलाह देते हुए नजर आते हैं. ताकि मिट्टी में जो पोषक तत्व कम है, उनकी उपलब्धता पुरी की जाए और जिससे वृक्षारोपण के दौरान पौधों को वह सभी पोषक तत्व मिल सके, जिसकी उन्हें मिट्टी से जरूरत है.
फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के लिए भी अलग-अलग कारण बताते हैं. इसमें खास तौर पर हल्द्वानी डिवीजन में विभिन्न पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी काफी चिंता पैदा करती है. वैज्ञानिक मानते हैं कि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के पीछे इंसानी गतिविधियों हो सकती हैं. मिट्टी में मौजूद पत्थरों की मौजूदगी और गुणवत्ता भी विभिन्न पोषक तत्वों के ज्यादा या कम होने की वजह बन सकती है. मिट्टी में समय-समय पर ऑर्गेनिक या प्राकृतिक खाद के रूप में पत्तियों का मौजूद न होना या छोटे जीवों की गैर मौजूदगी भी पोषक तत्वों में भिन्नता ला सकती है.
जरूरी प्वाइंट्स
- सॉइल टेस्टिंग की पूरी प्रक्रिया 2020 से 2025 तक चली.
- उत्तराखंड वन विभाग को इसी साल 2025 में सौंपी गई सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट.
- मिट्टी में पोषक तत्व कम होने वाली जगह पर गोबर खाद का उपयोग करने की सलाह.
- गोबर खाद 3.361 टन/हेक्टर या कृमि खाद 1.05 टन/हेक्टेयर उपयोग करने पर जोर.
- वनों का ह्रास होने से पहले इन क्षेत्रों में वनों के संरक्षण की सलाह.
- जैविक खाद का उपयोग करने को प्राथमिकता.
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