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मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति ने ऑपरेशन निलंबन के विस्तार का विरोध किया

मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति ने KNO और UPF के साथ ऑपरेशन निलंबन के विस्तार का विरोध किया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर (AFP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : September 5, 2025 at 9:28 PM IST

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नई दिल्ली: केंद्र द्वारा कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) के साथ ऑपरेशन निलंबन (SoO) को एक और वर्ष के लिए बढ़ाए जाने के एक दिन बाद, मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति (COCOMI) ने शुक्रवार को इस तरह के फैसले का कड़ा विरोध किया है.

सीओसीओएमआई के संयोजक लाईखुराम जयंत ने कहा कि, इन समूहों द्वारा किए गए आतंकवादी और आपराधिक कृत्यों की श्रृंखला के बावजूद एसओओ समझौते का विस्तार एक ऐसा निर्णय है जो मणिपुर के मूल निवासियों के हितों के पूरी तरह विरुद्ध है. लाईखुराम जयंत ने कहा कि, सीओसीओएमआई भारत सरकार के इस जनविरोधी कदम का दृढ़ता से विरोध करने के अपने रुख की पुष्टि करता है.

उन्होंने कहा कि मणिपुर की लोकप्रिय रूप से निर्वाचित सरकार ने 10 मार्च, 2023 को कैबिनेट के निर्णय के माध्यम से सर्वसम्मति से एसओओ समझौते को रद्द करने का संकल्प लिया था. लगातार कई बैठकों के बाद, केंद्र ने गुरुवार को कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) के साथ संचालन निलंबन समझौते को आगे बढ़ा दिया.

इस समझौते पर फिर से बातचीत की गई शर्तों और नियमों (आधारभूत नियमों) के आधार पर हस्ताक्षर किए गए. केएनओ और यूपीएफ ने संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्रों से दूर सात निर्दिष्ट शिविरों को स्थानांतरित करने पर भी सहमति व्यक्त की है.

समझौते के मुताबिक, विद्रोही समूह अपने निर्धारित शिविरों की संख्या भी कम करेंगे तथा अपने हथियारों को निकटतम सीआरपीएफ और बीएसएफ शिविरों में स्थानांतरित करेंगे. समझौते के मुताबिक, विद्रोही समूह अपने निर्धारित शिविरों की संख्या भी कम करेंगे तथा अपने हथियारों को निकटतम सीआरपीएफ और बीएसएफ शिविरों में स्थानांतरित करेंगे.

उन्होंने कहा कि, मौजूदा राष्ट्रपति शासन के तहत, प्रशासन नई दिल्ली से नियुक्त एक अधिकारी द्वारा चलाया जा रहा है, जिसके पास मणिपुर के लोगों का वास्तविक प्रतिनिधित्व करने की वैधता का अभाव है. उन्होंने कहा कि, ऐसी परिस्थितियों में एसओओ की अवधि बढ़ाने का निर्णय जायज नहीं है और मणिपुर के मूल निवासियों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों पर एक अलोकतांत्रिक और आधिपत्यपूर्ण थोपने को दर्शाता है.

एसओओ के भ्रामक समझौते के तहत सशस्त्र चिन-कूकी नार्को-आतंकवादी समूहों को भारी वैधता और मान्यता प्रदान करके, भारत सरकार ने इस क्षेत्र में नार्को-आतंकवाद से निपटने में अपनी भूमिका और ज़िम्मेदारी पर गंभीर संदेह पैदा कर दिया है. उन्होंने कहा कि 2005 और 2008 में एसओओ की शुरुआत के बाद से, ऐसे समझौतों ने केवल नार्को-आतंकवादी सशस्त्र समूहों को संरक्षण दिया है और लोगों की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति को कमज़ोर किया है.

जयंत ने कहा कि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी नार्को-आतंकवाद से निपटने में भारत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाएगा, जब उसे ऐसे समूहों को सुरक्षित मार्ग और दंडमुक्ति प्रदान करते हुए देखा जाएगा। भारत सरकार ने 29 फरवरी 2024 को मणिपुर विधानसभा द्वारा पारित उस सर्वसम्मत प्रस्ताव की जानबूझकर अवहेलना की है जिसमें भारत सरकार से एसओओ को रद्द करने का आग्रह किया गया था. इसके बजाय, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन प्रशासन को जनता के किसी जनादेश के बिना त्रिपक्षीय वार्ता में पक्षकार बना दिया गया है. उन्होंने कहा कि, यह कृत्य लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के साथ पूर्ण समझौता दर्शाता है.

जयंत ने कहा कि भारत का संविधान देश भर में प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार के रूप में स्वतंत्र आवागमन की गारंटी देता है. उन्होंने कहा, "सशस्त्र नार्को-आतंकवादी समूहों के साथ सौदेबाजी के लिए इसे एक हथियार बनाकर, भारत सरकार ने अपने संवैधानिक दायित्वों को कमजोर किया है. इस तरह की कार्रवाइयां सरकार को नार्को-आतंकवादियों के प्रभाव में मैतेई आबादी को बंदूक की नोक पर बंधक बनाने के रूप में दर्शाती हैं. यह मणिपुर के लोगों को पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

उन्होंने दावा किया कि भारत सरकार द्वारा एसओओ समझौते के विस्तार को हमेशा नार्को-आतंकवादी गतिविधियों को वैध बनाने, उन्हें एक भ्रामक समझौते के तहत दंड से मुक्ति प्रदान करने, और साथ ही मणिपुर और समग्र रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के मूल निवासियों के अधिकारों, सुरक्षा और भविष्य को कमज़ोर करने के रूप में देखा जाएगा.

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