गुवाहाटी: भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी से उपजे विवाद के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पार्टी पर पलटवार किया है. कांग्रेस पार्टी द्वारा बीजेपी पर हमलों के बीच हिमंत बिस्वा सरमा उन मौकों को गिनाए जब कांग्रेस द्वारा न्यायपालिका का अपमान किया गया.
सरमा ने एक्स पर लिखा, 'सभी राजनीतिक संस्थाओं के लिए न्यायिक निर्णयों को निरंतरता और ईमानदारी के साथ लेना अनिवार्य है. न्यायपालिका का सम्मान उसके निर्णयों की अनुकूलता पर निर्भर नहीं होना चाहिए. चुनिंदा समर्थन से जनता का विश्वास और हमारे लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत नष्ट होते हैं.'
उन्होंने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का हवाला दिया, जिसके बारे में असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि इसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 'बिना किसी ठोस सबूत के कदाचार' का आरोप लगाते हुए शुरू किया था.
सरमा ने एक्स पर लिखा, 'न्यायमूर्ति रंजन गोगोई: अयोध्या फैसले सहित ऐतिहासिक निर्णयों के बाद गंभीर आलोचना का सामना कर रहे हैं.' उन्होंने आगे कहा कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को उनके निर्णयों और कार्यपालिका से कथित निकटता के लिए कथित तौर पर 'निशाना' बनाया गया.
सरमा ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के बारे में कहा कि उनके ऊपर भी टिप्पणी की गई जब राजनीतिक अपेक्षाओं के अनुरूप फैसले नहीं आए. न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर को उनकी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किए जाने की आलोचना करने के लिए कांग्रेस के खिलाफ अपना हमला तेज करते हुए सरमा ने कहा कि ऐसी नियुक्तियां पहले भी की गई हैं.
उन्होंने कहा, 'सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति के लिए कांग्रेस ने उनकी आलोचना की है और आरोप लगाया है कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा है, जबकि पूर्व में भी ऐसी ही नियुक्तियां हुई हैं.' इस बीच सरमा ने भाजपा का बचाव करते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी न्यायपालिका की भूमिका का 'निष्पक्ष' सम्मान करती है और वह निशिकांत दुबे की टिप्पणी से खुद को अलग करती है.
उन्होंने कहा, 'जेपी नड्डा ने इस बात पर जोर दिया कि ये व्यक्तिगत राय है और पार्टी के रुख को नहीं दर्शाते हैं, उन्होंने न्यायिक संस्थाओं के प्रति भाजपा के गहरे सम्मान को दोहराया.'
यह तब हुआ जब कांग्रेस ने झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट को लेकर की गई टिप्पणी का मुद्दा उठाया, जिसने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट 'धार्मिक युद्धों को भड़का रहा है' और इसके अधिकार पर सवाल उठाते हुए सुझाव दिया कि अगर न्यायिक संस्था को कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए.