नई दिल्ली: मिशन सिंदूर के बाद राजनयिक आउटरीच के तहत विदेश भेजे जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में कांग्रेस की ओर से सुझाए गए चार नामों में से केवल एक को ही शामिल किया गया. सरकार ने अपनी तरफ से कांग्रेस के तीन अन्य सांसदों को चुना है. केंद्र के इस फैसले से कांग्रेस नाराज थी. फिर भी उसने राष्ट्रीय एकता के लिए संयम दिखाने और कूटनीतिक प्रयास का समर्थन करने का निर्णय लिया है.
हालांकि, कांग्रेस ने कहा कि वह 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद घटनाक्रमों पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करती रहेगी. साथ ही कांग्रेस ने सरकार को याद दिलाया कि उसका कूटनीतिक मिशन आतंकवाद पर केंद्रित होनी चाहिए, कश्मीर पर नहीं.
संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से बातचीत के बाद शुक्रवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने उन्हें लिखकर डेलिगेशन के लिए कांग्रेस की तरफ से चार नाम सुझाए थे, जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, लोकसभा में उपनेता गौरव गोगोई, राज्यसभा सांसद सैयद नसीर हुसैन और लोकसभा सांसद अमरिंदर सिंह राजा वारिंग के नाम थे.
लेकिन शनिवार को जब सरकार की तरफ से विदेश जाने वाले सांसदों की पूरी सूची जारी की गई तो उसमे केवल आनंद शर्मा का नाम शामिल किया गया था. कांग्रेस की ओर से सुझाए गए गौरव गोगोई, अमरिंदर सिंह वारिंग और सैयद नसीर हुसैन के नामों को खारिज कर दिया गया और सरकार ने खुद से कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं के नाम शामिल किए- पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, लोकसभा सांसद मनीष तिवारी और लोकसभा सांसद अमर सिंह.
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, खुर्शीद ने पार्टी हाईकमान को बताया था कि उन्हें सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया है, लेकिन थरूर ने पार्टी के फैसले के विपरीत जाकर उनके नाम को डेलिगेशन में शामिल करने का स्वागत किया था. तिवारी की भी राय थी कि वह राष्ट्रीय हित के लिए पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए एक मिशन पर जाना चाहेंगे.
पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस हाईकमान केंद्र के कदमों से नाराज था, लेकिन उसने राष्ट्रीय भावना को ध्यान में रखते हुए संयम बरतने और कूटनीतिक पहल का समर्थन करने का फैसला किया.
प्रासंगिक सवाल पूछने से पीछे नहीं हटेंगे...
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिव चंदन यादव ने ईटीवी भारत से कहा, कांग्रेस हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखती है. हमने ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार को पूरा समर्थन दिया है, लेकिन प्रासंगिक सवाल पूछने से पीछे नहीं हटेंगे.
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के मुद्दे पर तुच्छ राजनीति कर रही है. इसने पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से चार नाम मांगे, लेकिन उनमें से तीन को खारिज कर दिया. इसके अलावा, उन्होंने खुद से कुछ नाम शामिल किए. अगर ऐसा करना ही था तो विपक्ष के नेता से सलाह लेने की कोई जरूरत नहीं थी. उनके द्वारा सुझाए गए नामों को खारिज करके सरकार ने नेता प्रतिपक्ष के पद का अपमान किया है.
उन्होंने कहा, "सरकार ने लंबे समय से चले आ रहे संसदीय मानदंड का भी उल्लंघन किया है, जिसके तहत संबंधित पार्टियां बहस के दौरान अपने सांसदों के नाम तय करती हैं. न तो सरकार और न ही संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष विपक्षी बेंच से वक्ता के नाम तय करते हैं. फिर पाकिस्तान के खिलाफ जनमत बनाने के लिए विदेश भेजे जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में ऐसा क्यों किया गया. मुझे नहीं लगता कि सरकार को ऐसे मुद्दे पर राजनीति करनी चाहिए थी, क्योंकि पूरे विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने के लिए केंद्र का समर्थन किया था. जब जरूरत थी, तब हम सरकार के साथ खड़े रहे, लेकिन अभी भी कई मुद्दे हैं जिन्हें स्पष्ट करने की जरूरत है."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित के अनुसार, सरकार को कांग्रेस नेताओं के नाम को अस्वीकार करने या शामिल करने की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का प्रत्येक सदस्य सिर्फ सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए जाएगा.
दीक्षित ने ईटीवी भारत से कहा, "आदर्श रूप से, सरकार को पार्टी द्वारा सुझाए गए नामों को ही तरजीह देनी चाहिए. इससे आगे जाना एक संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने जैसा है और विभाजनकारी है. मैं भी ऐसे प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा रहा हूं. इस तरह की यात्राओं के दौरान सभी सांसदों को सरकार की ओर से जानकारी दी जाती है और जो भी मुद्दा हो, वे केवल वही स्थिति बताते हैं. हालांकि विदेश में जनमत बनाने का अधिकांश काम अनुभवी नौकरशाहों द्वारा किया जाता है, लेकिन सांसदों की मौजूदगी कूटनीतिक प्रयास को बढ़ाती है और आउटरीच को अधिक प्रभावी बनाती है. इसलिए, जो भी गया होगा, उसने आधिकारिक लाइन का पालन किया होगा."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के अनुसार, ऐसे में जब केंद्र सरकार को देश की सबसे पुरानी पार्टी का समर्थन प्राप्त है, तो सरकार को पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि कश्मीर पर, जिसे इस्लामाबाद मुद्दा बनाना चाहता है.
संदीप दीक्षित ने कहा, "कांग्रेस ने संयम दिखाया है और कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन किया है क्योंकि यह राष्ट्र के लिए अच्छा है. हम सरकार का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि पहलगाम आतंकी हमले के बाद पहली बार ऐसी अभूतपूर्व राष्ट्रीय भावना बनी है. लेकिन हम पहलगाम में 26 निर्दोष नागरिकों के हत्यारों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने तथा अमेरिकी हस्तक्षेप के कारण ऑपरेशन सिंदूर के शुरू होने के बाद अचानक हुए युद्ध विराम सहित प्रासंगिक प्रश्न पूछना जारी रखेंगे. सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने के अलावा हमें इन मुद्दों को सार्वजनिक रूप से भी उठाना चाहिए. मुख्य चिंता यह है कि भविष्य में पाकिस्तान द्वारा इस तरह के दुस्साहस को कैसे दोहराया जाए.
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