नई दिल्ली: विवादों से घिरे दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को केंद्र की मोदी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला करने पर मुहर लगा दी. केंद्र सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने को मंजूरी दे दी. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित घर में आग लगने के दौरान भारी मात्रा में नकदी मिलने पर ये मामला गर्माया हुआ है.
विधि एवं न्याय मंत्रालय, न्याय विभाग की अधिसूचना में कहा गया है कि "भारत के संविधान के अनुच्छेद 222 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित करते हैं. साथ ही उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपने कार्यालय का प्रभार संभालने का निर्देश देते हैं".
Centre notifies the transfer of Justice Yashwant Varma, currently serving as a Judge of the Delhi High Court, to the Allahabad High Court.
— ANI (@ANI) March 28, 2025
Justice Varma has been directed to assume his position and take charge at the Allahabad High Court. pic.twitter.com/dNgdMtdgeL
बता दें कि हाल ही में 24 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक प्रस्ताव जारी किया था, जिसमें केंद्र को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की गई थी. इसी कोर्ट से साल 2021 में जस्टिस वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया था.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान में कहा गया था: “सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च 2025 को आयोजित अपनी बैठकों में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की है.”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को घोषणा की थी कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, जिनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद कथित तौर पर बड़ी मात्रा में जले हुए रुपए मिले थे. इस कड़ी में वर्मा से उनके न्यायिक कार्य अगले आदेश तक "तत्काल प्रभाव" से वापस ले लिया गया है.
जस्टिस वर्मा के घर नकदी मिलने के बाद सीजेआई ने शनिवार को आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया था. इस विवाद की शुरुआत 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे तुगलक रोड स्थित जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास में कथित आग लगने से हुई थी.
न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ बनी आंतरिक जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं.
इसी दौरान एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 22 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से कथित रूप से भारी मात्रा में नकदी मिलने के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय की जांच रिपोर्ट फोटो और वीडियो सहित अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी.
न्यायमूर्ति उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई रिपोर्ट में आधिकारिक संचार के बारे में सामग्री शामिल है. इसके अनुसार न्यायाधीश के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास पर "भारतीय मुद्रा नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां" पाई गईं.
न्यायमूर्ति वर्मा ने मुद्रा-खोज विवाद में लगे आरोपों की निंदा करते हुए कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा उनके आवास के स्टोर रूम में कभी भी कोई नकदी नहीं रखी गई. दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिए गए अपने जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि उनके आवास से नकदी मिलने का आरोप "उन्हें फंसाने और बदनाम करने की साजिश" प्रतीत होता है.
गौर करें कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी. कॉलेजियम ने यह फैसला जस्टिस वर्मा के आवास पर नकदी जलाने का कथित वीडियो देखने के बाद लिया.
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उनके पैतृक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने विरोध किया है. बार निकाय ने कड़े शब्दों में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फैसले से एक गंभीर सवाल उठता है कि क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय एक कूड़ेदान है?
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