ETV Bharat / bharat

क्या दामाद को मिल सकता है ससुर की प्रॉपर्टी में हिस्सा? जानें क्या कहता है कानून?

भारत में उत्तराधिकार कानून धर्म-विशिष्ट हैं और सभी प्रमुख समुदायों में दामाद को अपने ससुर की संपत्ति पर सीधा अधिकार नहीं होता.

Property
क्या दामाद को मिल सकता है ससुर की प्रॉपर्टी में हिस्सा? जानें क्या कहता है कानून? (सांकेतिक तस्वीर)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : October 12, 2025 at 1:00 PM IST

4 Min Read
Choose ETV Bharat

नई दिल्ली: भारतीय संस्कृति में ससुर और दामाद के रिश्ते को अक्सर पिता-पुत्र के रिश्ते जैसा ही माना जाता है. यह रिश्ता न केवल सामाजिक है, बल्कि कानूनी मान्यता भी रखता है. यही वजह है कि ससुर और दामाद जैसे शब्दों का औपचारिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, यह निकटता खुद ही कानूनी अधिकारों में तब्दील नहीं हो जाती, खासकर जब बात संपत्ति की हो.

अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या दामाद का अपने ससुर की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार है. यह समझना जरूरी है कि धर्म के आधार पर नियम अलग-अलग हो सकते हैं, जो नियम हिंदू ससुर पर लागू होते हैं, वे मुस्लिम ससुर पर लागू नहीं हो सकते.

ऐसे में सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि एक दामाद का अपने ससुर की संपत्ति पर कोई सीधा कानूनी दावा नहीं होता, चाहे परिवार हिंदू, मुस्लिम या ईसाई हो. भारतीय उत्तराधिकार कानूनों के तहत, एक दामाद का अपने ससुराल वालों की संपत्ति पर कोई ऑटोमैटिक या स्वतंत्र अधिकार नहीं होता.

हिंदुओं के लिए कानून क्या कहता है?
हिंदुओं के लिए उत्तराधिकार का अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत आता है. यह अधिनियम हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों पर लागू होता है. कानून के अनुसार दामाद कानूनी उत्तराधिकारियों की सूची में शामिल नहीं है. इसलिए, वह अपने ससुर की संपत्ति में सीधे तौर पर हिस्सा नहीं ले सकता.

हालांकि, अगर पत्नी को अपने पिता से संपत्ति विरासत में मिलती है, तो दामाद अपनी पत्नी के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से उस संपत्ति पर अधिकार प्राप्त कर सकता है. यह पैतृक संपत्ति के मामलों में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां बेटी का वैध दावा होता है. एक बार जब बेटी को संपत्ति विरासत में मिल जाती है, तो दामाद उसके जीवनसाथी के रूप में लाभ प्राप्त कर सकता है, लेकिन अपनी हैसियत से नहीं.

दामाद को संपत्ति का अधिकार प्राप्त करने का एक और तरीका यह है कि ससुर उसके पक्ष में वसीयत बनाए या पंजीकृत उपहार विलेख के माध्यम से संपत्ति ट्रांसफर करे. ऐसे मामलों में दामाद कानूनी रूप से स्वामित्व का दावा कर सकता है. यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह पूरी तरह से ससुर के विवेक पर निर्भर है. ऐसी वसीयत या उपहार के बिना,दामाद के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं होता.

मुसलमानों के लिए शरिया कानून क्या कहता है?
मुसलमानों के मामले में उत्तराधिकार इस्लामी शरिया कानून द्वारा शासित होता है. यह कानूनी ढांचा दामाद को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में भी मान्यता नहीं देता. एक मुस्लिम ससुर अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही वसीयत के माध्यम से अपने कानूनी उत्तराधिकारियों की सूची से बाहर के किसी व्यक्ति, जिसमें दामाद भी शामिल है, को दे सकता है. बाकी दो-तिहाई हिस्सा इस्लामी कानून के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों को मिलना चाहिए. इसलिए, हिंदू कानून के विपरीत, जहां संपत्ति का 100 प्रतिशत हिस्सा दामाद को वसीयत के माध्यम से दिया जा सकता है, एक मुस्लिम ससुर को वसीयत के माध्यम से एक-तिहाई तक ही सीमित रखा गया है.

ईसाई कानूनों के बारे में क्या?
ईसाइयों के लिए भी इसी तरह के उत्तराधिकार कानून लागू होते हैं. एक ईसाई दामाद का अपने ससुर की संपत्ति पर कोई ऑटोमैटिक कानूनी दावा नहीं होता. उसके अधिकार तभी जनरेट होंगे जब उसकी पत्नी को अपने पिता से संपत्ति विरासत में मिले, या ससुर वसीयत लिखे या संपत्ति सीधे उसे उपहार में दे. अन्य धर्मों की तरह, दान-पत्र का पंजीकरण होना आवश्यक है और स्थानीय कानून भी इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें- दुर्गापुर गैंगरेप केस में बंगाल पुलिस का बड़ा एक्शन, 3 आरोपी गिरफ्तार