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आजादी विशेष: जब छत्तीसगढ़ के इस स्कूल में अंग्रेजों ने फहराया था तिरंगा, जानिए पूरी कहानी - British hoisted tiranga in Korba

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का ज्योति मिशन स्कूल साल 1916 से संचालित है. इस स्कूल में अंग्रेजों ने साल 1947 में तिरंगा फहराया था.इस स्कूल से पढ़े बच्चे बड़े-बड़े पदों पर आज देश में सेवा दे रहे हैं.

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 14, 2024, 9:41 PM IST

Updated : Aug 14, 2024, 10:11 PM IST

BRITISH HOISTED TIRANGA IN KORBA
यहां अंग्रेजों ने फहराया था तिरंगा (ETV Bharat)
छत्तीसगढ़ का वो स्कूल जिसमें अंग्रेजों ने फहराया तिरंगा (ETV Bharat)

कोरबा: ऊर्जाधानी कोरबा में एक ऐसा स्कूल है, जहां 100 सालों का इतिहास सिमटा हुआ है. यहां के दीवारें आजादी के पहले और आजादी मिलने के बाद की कहानी बयां करती हैं. साल 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब संचार के माध्यमों का उतना विकास नहीं हुआ था. इस कारण इसकी सूचना कुछ देर से लोगों को मिली, लेकिन जब आजादी का पता चला तब अगले दिन अंग्रेजों के साथ मिलकर यहां पढ़ने वाले 8 बच्चों ने स्कूल की छत पर तिरंगा फहराया. संख्या कम थी, लेकिन जश्न बड़ा था.

कोरबा का ज्योति मिशन स्कूल: दरअसल, हम बात कर रहे हैं कोरबा के ज्योति मिशन स्कूल की. इस स्कूल ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. स्कूल से जुड़े शिक्षकों की मानें तो आसपास के क्षेत्र में यह इकलौता स्कूल था, जहां से इस क्षेत्र के 80 फीसद लोगों ने अध्ययन किया है. एक समय ऐसा था जब शहर और इसके आसपास रहने वाले हर शिक्षित व्यक्ति ने यहीं से क, ख, ग सीखा. आजादी से पहले और अब वर्तमान में भी पुराने शहर के मिशन रोड में संचालित ज्योति मिशन स्कूल छात्रों को अशिक्षा से आजादी दिला रहा है.

यहां पढ़े लोग बड़े पदों पर पहुंचे: ज्योति मिशन स्कूल की स्थापना साल 1916 में मिशनरियों ने की थी. यहां से पढ़कर बड़ी तादाद में लोगों ने अपने जीवन को संवारा. राजनीतिक क्षेत्र हो या फिर सरकारी नौकरियां, स्कूल ने एक से एक होनहार नागरिक समाज को दिए. यहां से जो छात्र पढ़कर निकला, वो ने सिर्फ आसपास के इलाकों में बल्कि देश के अलग-अलग भागों में अच्छे पदों पर पहुंचा. स्कूल से जुड़े लोग और जानकार कहते हैं कि यहां से पढ़ने वाले लोग विधायक भी बने. एसईसीएल के जीएम जैसे पदों पर पहुंचे. साथ ही समाज और सरकार के साथ मिलजुल कर बड़े कामों को अंजाम दिया.

"स्कूल की स्थापना 1916 में हुई थी. इसकी स्थापना अंग्रेजी शासन काल में हुई थी. जब देश आजाद हुआ, उस समय स्कूल में 8 ही बच्चे पढ़ रहे थे. आजादी मिल जाने की सूचना थोड़ी देर से पहुंची. इसके बाद यहां झंडा फहराकर जश्न मनाया. साल 1947 के बाद स्कूल की व्यवस्था में परिवर्तन हुआ. इस स्कूल को अंग्रेजी शासन काल में मिशनरियों द्वारा ही चलाया जाता था. नियंत्रण अंग्रेज सरकार का था. आगे चलकर जिसके बाद इसका पूरा नियंत्रण मेनो क्रिश्चियन एजुकेशन सोसाइटी को सौंप दिया गया. इसके बाद 1984 से सरकारी अनुदान भी हमें प्राप्त होने लगा. तब से स्कूल की व्यवस्था और सुदृढ़ हुई." -आशीष स्टीफन जेकब, प्राचार्य, ज्योति मिशन स्कूल

बता दें कि वर्तमान में स्कूल का काफी विस्तार हो चुका है. प्राथमिक कक्षा से शुरू हुआ सफर आज उच्चतर माध्यमिक तक पहुंच चुका है. बड़ी तादात में बच्चे यहां पढ़ रहे हैं. स्कूल की स्थिति काफी अच्छी है. इस स्कूल ने कई नेता, जीएम और बड़े अधिकारी दिए हैं.

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कोरबा का ज्योति मिशन स्कूल: दरअसल, हम बात कर रहे हैं कोरबा के ज्योति मिशन स्कूल की. इस स्कूल ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. स्कूल से जुड़े शिक्षकों की मानें तो आसपास के क्षेत्र में यह इकलौता स्कूल था, जहां से इस क्षेत्र के 80 फीसद लोगों ने अध्ययन किया है. एक समय ऐसा था जब शहर और इसके आसपास रहने वाले हर शिक्षित व्यक्ति ने यहीं से क, ख, ग सीखा. आजादी से पहले और अब वर्तमान में भी पुराने शहर के मिशन रोड में संचालित ज्योति मिशन स्कूल छात्रों को अशिक्षा से आजादी दिला रहा है.

यहां पढ़े लोग बड़े पदों पर पहुंचे: ज्योति मिशन स्कूल की स्थापना साल 1916 में मिशनरियों ने की थी. यहां से पढ़कर बड़ी तादाद में लोगों ने अपने जीवन को संवारा. राजनीतिक क्षेत्र हो या फिर सरकारी नौकरियां, स्कूल ने एक से एक होनहार नागरिक समाज को दिए. यहां से जो छात्र पढ़कर निकला, वो ने सिर्फ आसपास के इलाकों में बल्कि देश के अलग-अलग भागों में अच्छे पदों पर पहुंचा. स्कूल से जुड़े लोग और जानकार कहते हैं कि यहां से पढ़ने वाले लोग विधायक भी बने. एसईसीएल के जीएम जैसे पदों पर पहुंचे. साथ ही समाज और सरकार के साथ मिलजुल कर बड़े कामों को अंजाम दिया.

"स्कूल की स्थापना 1916 में हुई थी. इसकी स्थापना अंग्रेजी शासन काल में हुई थी. जब देश आजाद हुआ, उस समय स्कूल में 8 ही बच्चे पढ़ रहे थे. आजादी मिल जाने की सूचना थोड़ी देर से पहुंची. इसके बाद यहां झंडा फहराकर जश्न मनाया. साल 1947 के बाद स्कूल की व्यवस्था में परिवर्तन हुआ. इस स्कूल को अंग्रेजी शासन काल में मिशनरियों द्वारा ही चलाया जाता था. नियंत्रण अंग्रेज सरकार का था. आगे चलकर जिसके बाद इसका पूरा नियंत्रण मेनो क्रिश्चियन एजुकेशन सोसाइटी को सौंप दिया गया. इसके बाद 1984 से सरकारी अनुदान भी हमें प्राप्त होने लगा. तब से स्कूल की व्यवस्था और सुदृढ़ हुई." -आशीष स्टीफन जेकब, प्राचार्य, ज्योति मिशन स्कूल

बता दें कि वर्तमान में स्कूल का काफी विस्तार हो चुका है. प्राथमिक कक्षा से शुरू हुआ सफर आज उच्चतर माध्यमिक तक पहुंच चुका है. बड़ी तादात में बच्चे यहां पढ़ रहे हैं. स्कूल की स्थिति काफी अच्छी है. इस स्कूल ने कई नेता, जीएम और बड़े अधिकारी दिए हैं.

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Last Updated : Aug 14, 2024, 10:11 PM IST
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