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हरियाणा में चल रही अंग्रेज़ों के जमाने की पनचक्की, "न्यूट्रिशन" से भरपूर आटा लेने के लिए लोगों में होड़

हरियाणा में अंग्रेजों के जमाने की पनचक्की है जो पिछले 135 सालों से लगातार काम कर रही है.

British era watermill in Kaithal Haryana operating since 1890 People remain healthy by eating the flour here
हरियाणा में चल रही अंग्रेज़ों के जमाने की पनचक्की (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : September 23, 2025 at 7:05 PM IST

10 Min Read
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कैथल : हरियाणा में वैसे तो गेहूं पिसवाने के लिए हर जिले में कई चक्कियां हैं लेकिन कैथल जिले के पुंडरी में एक पनचक्की ऐसी है जिसे ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था और वो आज भी 135 साल बीतने के बावजूद भी अच्छे से काम कर रही है. यहां आटा पिसवाने के लिए लोगों के बीच होड़ लगी रहती है और कई-कई घंटों तक लोग इसके लिए इंतज़ार भी करते हैं.

नहर के पानी से चलती है पनचक्की : इस पनचक्की पर आटा पिसवाने के लिए कैथल ही नहीं आसपास के जिले के हजारों लोग आते हैं और इस चक्की का पिसा हुआ आटा ही खाते हैं, क्योंकि इसका पिसा हुआ आटा काफी अच्छा माना जाता है. अगर आज के वक्त की बात करें तो जो भी आटा निकाला जाता है, वो बिजली से चलने वाली गेहूं की चक्की के जरिए निकाला जाता है. ये हरियाणा की एकमात्र अकेली पनचक्की है जो नहर के पानी से चल रही है.

हरियाणा में चल रही अंग्रेज़ों के जमाने की पनचक्की (Etv Bharat)

"1890 में हुआ था पनचक्की का निर्माण" : पनचक्की को ठेके पर चलाने वाले रामकुमार ने बताया कि "ये अंग्रेजों के समय की बनाई हुई है. इसका निर्माण 1890 में ब्रिटिश काल में किया गया था. ये पनचक्की सिरसा ब्रांच नहर पर पुंडरी के फतेहपुर गांव में बनी हुई है. पिछले 135 सालों से ये पनचक्की अब भी चल रही है. इस इमारत के निर्माण में लाल और सफेद चूने का इस्तेमाल किया गया है जो आज भी ज्यों की त्यों है. ये पनचक्की हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में काफी मशहूर है और इसको देखने के लिए लोग दूर दराज से यहां पर आते हैं."

British era watermill in Kaithal Haryana operating since 1890 People remain healthy by eating the flour here
अंग्रेज़ों के जमाने की पनचक्की को जानिए (Etv Bharat)

"कई पीढ़ियों से एक ही परिवार चला रहा पनचक्की" : अपने परिवार के बताते हुए रामकुमार ने कहा कि "उनका परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से इसको चला रहा है. ये नहर विभाग के अंतर्गत आता है और नहर विभाग ही इसको ठेके पर देता है. पहले उनके दादा इसको चलाते थे, उसके बाद उनके पिता और अब वे खुद इसको चला रहे हैं. अब उनकी चौथी पीढ़ी भी इसमें शामिल हो गई है. उनका परिवार पिछले 50 सालों से इस पनचक्की को चला रहा हैं. रामकुमार का बेटा भी वक्त निकालकर यहां पर काम करने के लिए आता है और वो भी इसका पूरा काम सीख चुका है."

British era watermill in Kaithal Haryana operating since 1890 People remain healthy by eating the flour here
कैथल जिले के पुंडरी में स्थित है पनचक्की (Etv Bharat)

"1 घंटे में 40 किलो गेहूं पिस जाता है " : इस चक्की के बारे में बताते हुए रामकुमार ने कहा कि "ये हरियाणा की एकमात्र पनचक्की है जो नहर के पानी से ही चल रही है. ऊपर चक्की लगी हुई है और नीचे नहर का पानी निकलता है, जो चक्की के पाट में लगे हुए नीचे के हिस्से को घुमा देता है और उस से चक्की चलती रहती है. यहां पर कुल पांच चक्की लगी हुई है और एक चक्की 1 घंटे में 40 किलोग्राम गेहूं पीस कर निकालती है. पांच चक्की मिलकर 1 घंटे में 2 क्विंटल गेहूं का आटा पीस देती है."

British era watermill in Kaithal Haryana operating since 1890 People remain healthy by eating the flour here
1890 में अंग्रेजों ने बनाई थी (Etv Bharat)

"2 रुपए किलो के हिसाब से पीसते हैं आटा" : आटे की पिसाई की कीमत के बारे में बोलते हुए रामकुमार ने बताया कि "वे 40 किलोग्राम गेहूं के 80 रुपए लेते हैं जो कि प्रति किलो 2 रुपए के हिसाब से पड़ता है. हालांकि वे यहां पर वजन नहीं करते और अपने अनुभव के आधार पर ही पिसा हुआ आटा निकाल देते हैं. थोड़ा कम ज्यादा होने पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. उनका परिवार पिछले करीब पांच दशक से ये काम कर रहा है."

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135 सालों से चल रही पनचक्की (Etv Bharat)

"2 महीने तक खराब नहीं होता आटा" : उन्होंने कहा कि "इस पनचक्की से निकाले गए आटे की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. यहां पर कैथल में पुंडरी से लगते हुए करीब 20-25 गांव ऐसे हैं, जो यहीं का पिसा हुआ आटा खाते हैं और जो एक बार इस चक्की का आटा खा लेता है, वो फिर से यहीं का आटा ही खाना चाहता है. यहां पर दूसरे जिलों से भी लोग आटा पिसवाने के लिए आते हैं क्योंकि इसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है."

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हरियाणा की एकमात्र पनचक्की (Etv Bharat)

"यहां से निकलने वाला आटा रहता है ठंडा" : इस पनचक्की से निकलने वाले आटे की गुणवत्ता के बारे में बताते हुए रामकुमार ने कहा कि "गेहूं के जो न्यूट्रिशन होते हैं वो बिजली से चलने वाली चक्की में तेज स्पीड के चलते कुछ हद तक नष्ट हो जाते हैं क्योंकि ज्यादा स्पीड होने के चलते आटा बहुत गर्म होता है. ये चक्की पानी से चलती है इसलिए इसकी स्पीड इतनी ज्यादा नहीं होती और इससे निकलने वाला आटा ठंडा रहता है और इससे गेहूं के न्यूट्रिशन बरकरार रहते हैं, इसलिए ये स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है. दूसरी चक्की से पिसवाया गया आटा ज्यादा वक्त तक अच्छा नहीं रह पाता और उसमें कीड़े दिखने लगते हैं लेकिन यहां की चक्की से पिसवाया गया आटा 2 महीने तक भी खराब नहीं होता और न्यूट्रिशन से भरपूर होता है. ये स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा है, इसी वजह से कैथल ही नहीं बल्कि आसपास के लोग भी यहां आटा पिसवाने के लिए आते हैं."

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यहां आटे को पीसा जाता है (Etv Bharat)

"बैलगाड़ी में गेहूं लेकर आते थे": फतेहपुर के स्थानीय निवासी हरपाल सिंह ने बताया कि "उनकी उम्र करीब 55 वर्ष हो चुकी है और जब वे छोटे थे, तब से वे इस पनचक्की को देखते आ रहे हैं. तब गांव के कई परिवार इकट्ठा होकर बैलगाड़ी में गेहूं लेकर आते थे और यहां पर आटा निकलवाते थे. ये हरियाणा की एक प्राचीन धरोहर है जिसके चलते उनके गांव का नाम पूरे हरियाणा के साथ-साथ भारत में भी जाना जाता है. उन्होंने कहा कि यहां पर जो आटा पिसवाया जाता है, उसकी गुणवत्ता काफी अच्छी होती है क्योंकि ये गेहूं को काफी कम स्पीड में पीसती है जिसके चलते आटा ठंडा रहता है और सेहत के लिए काफी लाभप्रद होता है. वे अपने परदादा के वक्त से ही इस चक्की का आटा खाते आ रहे हैं."

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पिसे आटे को बैग में भरता कर्मचारी (Etv Bharat)

"चार पीढ़ियां यहीं से पिसवा रही आटा" : आटा पिसवाने के लिए आए स्थानीय युवक गोल्डी ने बताया कि "अब उनकी चौथी पीढ़ी है जो यहां पर आटा पिसवा कर खा रही है और इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर दिख रहा है. हर घर में आज के समय में शुगर-बीपी जैसी समस्या बनी हुई है लेकिन इस चक्की का आटा खाने से छोटी-मोटी बीमारियां दूर रहती है और उनके घर में इस प्रकार की कोई बीमारी नहीं है. इसलिए वे आज भी यहीं पर पिसा हुआ आटा ही खाना पसंद करते हैं."

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पनचक्की से पिसा आटा है खास (Etv Bharat)

दूरदराज से देखने के लिए आते हैं लोग : यहां आने वाले दीपक ने बताया कि "वे हिसार के रहने वाले हैं और वे कैथल में कुछ काम करने के लिए आए थे और उन्होंने अपने साथी रामनिवास से कहा कि वे उनके जिले में बनी हुई पनचक्की को देखना चाहते हैं जिसको देखने के लिए वे यहां पर पहुंचे हैं. उन्होंने कहा कि इसका अद्भुत नजारा है और ये अपने आप में सबसे अलग है, इसलिए वे इसको देखने के लिए आए हैं. उन्होंने कहा कि उनको ये पनचक्की देखकर काफी अच्छा लगा और उन्हें इस बात का गर्व है कि अभी भी हरियाणा में इस प्रकार की प्राचीन धरोहर मौजूद है."

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पनचक्की से आटा ले जाते लोग (Etv Bharat)

"अजूबे की तरह है पनचक्की": पनचक्की को देखने पहुंचे रामनिवास ने बताया कि " वे कैथल जिले के रहने वाले हैं. वे अपने साथी दीपक के साथ यहां पर आए हैं. उन्होंने इसके बारे में सुना था और ऐसे में वे पहली बार अपनी आंखों से देखने के लिए इसे पहुंचे हैं. ये उनके लिए एक अजूबे की तरह है क्योंकि इतनी पुरानी होने के बावजूद भी ये पनचक्की आज भी बिना किसी समस्या के अच्छे से काम कर रही है जोकि हैरानी की बात है."

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पनचक्की से निकलता आटा (Etv Bharat)

आयुर्वेदिक डॉक्टर ने गिनाए फायदे : कुरुक्षेत्र जिले के दबखेड़ा गांव में स्थित आयुर्वेदिक (आयुष) चिकित्सालय की डॉक्टर मीनाक्षी ने बताया कि "पहले हरियाणा के घर-घर में रखे चक्की में गेहूं को पीस कर आटा निकाला जाता था लेकिन आजकल बिजली वाली आटा चक्की इस्तेमाल की जा रही है जिससे निकलने वाले आटे का स्वाद ही बदल गया है. बिजली से चलने वाली आटा चक्की के मुकाबले पनचक्की से निकलने वाला आटा काफी बेहतर होता है क्योंकि पनचक्की पानी से चलती है और ऐसे में उससे निकलने वाला आटा ठंडा होता है और इसी वजह से इसके पोषक तत्व पूरी तरह से बरकरार रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी साबित होते हैं. वैसे भी मार्केट में आजकल ज्यादातर चीजें मिलावटी मिल रही है, ऐसे में प्राकृतिक तौर पर पिसे आटे को अगर कोई खाएगा तो उसे स्वास्थ्य लाभ जरूर मिलेगा."

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2 रुपए किलो के हिसाब से पीसते हैं आटा (Etv Bharat)

पनचक्की को देखकर हर कोई हैरान : कैथल की ये पनचक्की सिर्फ एक प्राचीन विरासत ही नहीं, बल्कि कैथल और आसपास के गांव के लोगों के लिए एक जीवन औषधि का भी काम कर रही है क्योंकि जो भी इस चक्की का आटा खाता है, वो बीमारियों से दूर रहता है जिसका दावा लोग कर रहे हैं. इसी वजह से चार-चार पीढ़ियों से कई लोग यहां का पिसा हुआ आटा ही खाते हैं. फिलहाल अंग्रेजों के समय की ये एकमात्र पनचक्की है जो नहर के पानी के जरिए गेहूं की पिसाई कर रही है. वर्षों पुरानी इस टेक्नोलॉजी को देखकर यहां आने वाला हर कोई हैरान हुए बगैर नहीं रह पाता है.

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1890 में हुआ था पनचक्की का निर्माण (Etv Bharat)
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कई पीढ़ियों से एक ही परिवार चला रहा पनचक्की (Etv Bharat)
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पिसे हुए आटे को बैग में भरते रामकुमार (Etv Bharat)
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1 घंटे में 40 किलो गेहूं पिस जाता है (Etv Bharat)
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नहर के पानी से चलती है पनचक्की (Etv Bharat)
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रामकुमार का परिवार पिछले 50 सालों से चला रहा पनचक्की (Etv Bharat)

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