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'ऑपरेशन सिंदूर' में चमका ब्रह्मोस: जानिए कितनी दूर तक मार करती है ये मिसाइल और क्यों है गेमचेंजर - BRAHMOS MISSILE

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' अभियान में ब्रह्मोस ने पाकिस्तान के होश उड़ा दिये. इस मिसाइल को तैयार करने की पूरी कहानी, पढ़िये.

BRAHMOS MISSILE
ब्रह्मोस मिसाइल. (ETV bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 12, 2025 at 5:38 PM IST

7 Min Read

हैदराबादः ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के वायुसैनिक ठिकानों पर भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस ने ऐसा कहर बरपाया कि दुश्मन संभल भी नहीं सका. इस सफलता ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया, बल्कि ब्रह्मोस को 'गेमचेंजर मिसाइल' के रूप में भी स्थापित कर दिया. जानिए, ब्रह्मोस की पूरी ताकत- इसकी रेंज, स्पीड, लॉन्च सिस्टम से लेकर अब तक के सभी मिशन तक की A to Z जानकारी.

ब्रह्मोस की प्रमुख विशेषताऐंः

ब्रह्मोस एक दो-चरणीय मिसाइल है. जिसका पहला चरण ठोस प्रणोदक बूस्टर इंजन है जो इसे सुपरसोनिक गति तक ले जाता है. फिर अलग हो जाता है. लिक्विड रैमजेट या दूसरा चरण मिसाइल को क्रूज चरण में 3 मैक गति के करीब ले जाता है. उन्नत एम्बेडेड सॉफ़्टवेयर के साथ स्टील्थ तकनीक और मार्गदर्शन प्रणाली मिसाइल को विशेष सुविधाएं प्रदान करती है.

यह 'फायर एंड फॉरगेट सिद्धांत' पर काम करता है. लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई तरह की उड़ानें अपनाता है. प्रभाव पर बड़ी गतिज ऊर्जा के कारण इसकी विनाशकारी शक्ति बढ़ जाती है. इसकी क्रूज़िंग ऊंचाई 15 किमी तक हो सकती है और टर्मिनल ऊंचाई 10 मीटर जितनी कम है. यह 200 से 300 किलोग्राम वजन का पारंपरिक वारहेड ले जाता है.

BRAHMOS MISSILE
ETV GFX (ETV Bharat)

मौजूदा सबसोनिक क्रूज मिसाइलों से ब्रह्मोस अलग कैसे हैः

  • 3 गुना अधिक वेग
  • 2.5 से 3 गुना अधिक उड़ान रेंज
  • 3 से 4 गुना अधिक साधक रेंज
  • 9 गुना अधिक गतिज ऊर्जा

बड़ा हिस्सा भारत में बन रहाः भारतीय ब्रह्मोस, मिसाइल में स्वदेशी सामग्री के बारे में बात करें तो 1998 के शुरुआती दौर में स्वदेशीकरण का स्तर 13% था. अब यह 80% तक स्वदेशी है. भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास ब्रह्मोस कैलिबर की मिसाइल है. इसका मतलब यह है कि रूस से आने वाले ई-इंजन को छोड़कर, मिसाइल का एक बड़ा हिस्सा भारत में बना है.

BRAHMOS MISSILE
ETV GFX (ETV Bharat)

इसकी लागत: मिसाइल की लागत के संबंध में, रिपोर्ट में कहा गया है कि मिसाइल के सतह से प्रक्षेपित संस्करण की अनुमानित लागत लगभग 3.2- 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर है. हवा से प्रक्षेपित संस्करण की लागत लगभग 5.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर और विस्तारित-सीमा वाली सतह से प्रक्षेपित संस्करण की लागत लगभग 4.85 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रविवार, 11 मई, 2025 को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस एकीकरण और परीक्षण सुविधा का वर्चुअल उद्घाटन करते हुए. (File Photo) (IANS)

कैसे शामिल किया गया

  • ब्रह्मोस पहली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जो सेवा में है. भारतीय नौसेना में ब्रह्मोस हथियार कॉम्प्लेक्स के पहले संस्करण को शामिल करने की शुरुआत 2005 में हुई थी.
  • भारतीय सेना ने भी 2007 से कई ब्रह्मोस रेजिमेंटों को शामिल किया है. भारत ने पहले ही लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ वास्तविक सीमा पर कई रणनीतिक स्थानों पर मूल ब्रह्मोस मिसाइलों और अन्य प्रमुख परिसंपत्तियों की एक बड़ी संख्या तैनात कर दी है.
  • भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमान से लैस ब्रह्मोस वायु प्रक्षेपित क्रूज मिसाइल प्रणाली को सफलतापूर्वक अपने बेड़े में शामिल कर लिया है.

कहां-कहां काम कर रहा है

  • जहाज आधारित हथियार परिसर (झुका हुआ और ऊर्ध्वाधर विन्यास)
  • भूमि आधारित हथियार परिसर (मोबाइल स्वायत्त लांचर से ऊर्ध्वाधर प्रक्षेपण विन्यास)
  • हवा से प्रक्षेपित संस्करण (Su-30MKI लड़ाकू विमान पर एकीकृत)

ब्रह्मोस का संयुक्त उद्यम

ब्रह्मोस एयरोस्पेस का गठन भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और संयुक्त स्टॉक कंपनी 'सैन्य औद्योगिक संघ' 'एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया' (जिसे पहले रूस के संघीय राज्य एकात्मक उद्यम एनपीओएम के रूप में जाना जाता था) के बीच एक संयुक्त उद्यम के रूप में किया गया था. कंपनी की स्थापना भारत में 12 फरवरी, 1998 को भारत गणराज्य और रूसी संघ के बीच हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के माध्यम से की गई थी.

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नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड 2025 के लिए रिहर्सल के दौरान ब्रह्मोस मिसाइल का प्रदर्शन. (File Photo) (IANS)

भारत के लिए सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विकास की क्या आवश्यकता थी

  • वर्ष 1983 में भारत के रक्षा इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ, जब निर्णयकर्ताओं ने वैज्ञानिक समुदाय के साथ मिलकर देश की रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत की। इससे एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) का मार्ग प्रशस्त हुआ.
  • इस परियोजना का उद्देश्य मध्यम दूरी और छोटी दूरी सहित मिसाइलों की एक व्यापक श्रृंखला का विकास और उत्पादन करके मिसाइल कार्यक्रम में आत्मनिर्भरता हासिल करना था.
  • 1990 के दशक के खाड़ी युद्ध के बाद, देश को क्रूज मिसाइल प्रणाली से लैस करना आवश्यक हो गया.
  • यह वह समय था जब रूस के साथ भारत की दशकों पुरानी मित्रता, गुटनिरपेक्ष नीति में अद्वितीय संतुलन को बिगाड़े बिना, नई मिसाइल प्रणाली विकसित करने में सबसे आगे आई.
  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और रूस के प्रथम उप रक्षा मंत्री एन.वी. मिखाइलोव ने 12 फरवरी, 1998 को मास्को में एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसने ब्रह्मोस एयरोस्पेस के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (एनपीओएम) के बीच एक संयुक्त उद्यम इकाई थी.
  • इस साझेदारी का उद्देश्य दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली- ब्रह्मोस का डिजाइन, विकास, निर्माण और विपणन करना था.
  • ब्रह्मोस का पहला सफल प्रक्षेपण 12 जून, 2001 को हुआ था. मिसाइल का परीक्षण उड़ीसा के चांदीपुर तट के निकट अंतरिम परीक्षण रेंज में भूमि आधारित लांचर से किया गया था.
  • इसके बाद, संयुक्त उद्यम कंपनी सुर्खियों में आई और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू कर दिया. वैश्विक बाजार में कदम रखते हुए, ब्रह्मोस को 2001 में पहली बार मास्को में MAKS-1 प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया.

ब्रह्मोस की अगली पीढ़ी

अगली पीढ़ी की ब्रह्मोस, मौजूदा मिसाइल का एक छोटा और हल्का संस्करण है जो ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक 2.8 मैक की गति से उड़ता है, इसे मिग-29, मिराज-2000 और तेजस हल्के लड़ाकू विमानों जैसे छोटे लड़ाकू विमानों पर भी लगाया जाएगा. दिसंबर 2022 में भारतीय वायु सेना ने सुखोई-30MKI लड़ाकू जेट से बंगाल की खाड़ी में एक जहाज के लक्ष्य के खिलाफ ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विस्तारित रेंज संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. मिसाइल की रेंज 450 किलोमीटर है.

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ब्रह्मोस मिसाइल. (IANS)

अन्य देशों को ब्रह्मोस का निर्यात

2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था कि मिसाइल के विपणन का समय आ गया है. भारत ने 19 अप्रैल 2024 को फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें सौंपीं. जनवरी 2022 में, दोनों देशों ने 375 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसने ब्रह्मोस और अन्य रक्षा सहयोग पर सरकार-से-सरकार सौदों का मार्ग प्रशस्त किया.

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लखनऊ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस एकीकरण और परीक्षण सुविधा का उद्घाटन. (IANS)

ब्रह्मोस और रूसी सशस्त्र बलों में शामिल होना

भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस मिसाइल को आश्चर्यजनक रूप से कभी भी रूसी सशस्त्र बलों में शामिल नहीं किया गया. 1980 के दशक से, सोवियत संघ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के लिए रैमजेट तकनीक विकसित करने पर काम कर रहा था. 1993 तक, उन्होंने दुनिया में किसी से भी आगे एक व्यवहार्य तरल प्रणोदक-आधारित रैमजेट इंजन-आधारित सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, पी-800 ओनिक्स विकसित कर लिया था. इस मिसाइल को 2002 में रूस में शामिल किया गया. ब्रह्मोस मिसाइल, पी-800 ओनिक्स से बहुत अलग नहीं है. संभावना है कि उन्हें अपने बलों के लिए ब्रह्मोस की आवश्यकता नहीं पड़ी.

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हैदराबादः ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के वायुसैनिक ठिकानों पर भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस ने ऐसा कहर बरपाया कि दुश्मन संभल भी नहीं सका. इस सफलता ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया, बल्कि ब्रह्मोस को 'गेमचेंजर मिसाइल' के रूप में भी स्थापित कर दिया. जानिए, ब्रह्मोस की पूरी ताकत- इसकी रेंज, स्पीड, लॉन्च सिस्टम से लेकर अब तक के सभी मिशन तक की A to Z जानकारी.

ब्रह्मोस की प्रमुख विशेषताऐंः

ब्रह्मोस एक दो-चरणीय मिसाइल है. जिसका पहला चरण ठोस प्रणोदक बूस्टर इंजन है जो इसे सुपरसोनिक गति तक ले जाता है. फिर अलग हो जाता है. लिक्विड रैमजेट या दूसरा चरण मिसाइल को क्रूज चरण में 3 मैक गति के करीब ले जाता है. उन्नत एम्बेडेड सॉफ़्टवेयर के साथ स्टील्थ तकनीक और मार्गदर्शन प्रणाली मिसाइल को विशेष सुविधाएं प्रदान करती है.

यह 'फायर एंड फॉरगेट सिद्धांत' पर काम करता है. लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई तरह की उड़ानें अपनाता है. प्रभाव पर बड़ी गतिज ऊर्जा के कारण इसकी विनाशकारी शक्ति बढ़ जाती है. इसकी क्रूज़िंग ऊंचाई 15 किमी तक हो सकती है और टर्मिनल ऊंचाई 10 मीटर जितनी कम है. यह 200 से 300 किलोग्राम वजन का पारंपरिक वारहेड ले जाता है.

BRAHMOS MISSILE
ETV GFX (ETV Bharat)

मौजूदा सबसोनिक क्रूज मिसाइलों से ब्रह्मोस अलग कैसे हैः

  • 3 गुना अधिक वेग
  • 2.5 से 3 गुना अधिक उड़ान रेंज
  • 3 से 4 गुना अधिक साधक रेंज
  • 9 गुना अधिक गतिज ऊर्जा

बड़ा हिस्सा भारत में बन रहाः भारतीय ब्रह्मोस, मिसाइल में स्वदेशी सामग्री के बारे में बात करें तो 1998 के शुरुआती दौर में स्वदेशीकरण का स्तर 13% था. अब यह 80% तक स्वदेशी है. भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास ब्रह्मोस कैलिबर की मिसाइल है. इसका मतलब यह है कि रूस से आने वाले ई-इंजन को छोड़कर, मिसाइल का एक बड़ा हिस्सा भारत में बना है.

BRAHMOS MISSILE
ETV GFX (ETV Bharat)

इसकी लागत: मिसाइल की लागत के संबंध में, रिपोर्ट में कहा गया है कि मिसाइल के सतह से प्रक्षेपित संस्करण की अनुमानित लागत लगभग 3.2- 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर है. हवा से प्रक्षेपित संस्करण की लागत लगभग 5.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर और विस्तारित-सीमा वाली सतह से प्रक्षेपित संस्करण की लागत लगभग 4.85 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रविवार, 11 मई, 2025 को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस एकीकरण और परीक्षण सुविधा का वर्चुअल उद्घाटन करते हुए. (File Photo) (IANS)

कैसे शामिल किया गया

  • ब्रह्मोस पहली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जो सेवा में है. भारतीय नौसेना में ब्रह्मोस हथियार कॉम्प्लेक्स के पहले संस्करण को शामिल करने की शुरुआत 2005 में हुई थी.
  • भारतीय सेना ने भी 2007 से कई ब्रह्मोस रेजिमेंटों को शामिल किया है. भारत ने पहले ही लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ वास्तविक सीमा पर कई रणनीतिक स्थानों पर मूल ब्रह्मोस मिसाइलों और अन्य प्रमुख परिसंपत्तियों की एक बड़ी संख्या तैनात कर दी है.
  • भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमान से लैस ब्रह्मोस वायु प्रक्षेपित क्रूज मिसाइल प्रणाली को सफलतापूर्वक अपने बेड़े में शामिल कर लिया है.

कहां-कहां काम कर रहा है

  • जहाज आधारित हथियार परिसर (झुका हुआ और ऊर्ध्वाधर विन्यास)
  • भूमि आधारित हथियार परिसर (मोबाइल स्वायत्त लांचर से ऊर्ध्वाधर प्रक्षेपण विन्यास)
  • हवा से प्रक्षेपित संस्करण (Su-30MKI लड़ाकू विमान पर एकीकृत)

ब्रह्मोस का संयुक्त उद्यम

ब्रह्मोस एयरोस्पेस का गठन भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और संयुक्त स्टॉक कंपनी 'सैन्य औद्योगिक संघ' 'एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया' (जिसे पहले रूस के संघीय राज्य एकात्मक उद्यम एनपीओएम के रूप में जाना जाता था) के बीच एक संयुक्त उद्यम के रूप में किया गया था. कंपनी की स्थापना भारत में 12 फरवरी, 1998 को भारत गणराज्य और रूसी संघ के बीच हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के माध्यम से की गई थी.

BRAHMOS MISSILE
नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड 2025 के लिए रिहर्सल के दौरान ब्रह्मोस मिसाइल का प्रदर्शन. (File Photo) (IANS)

भारत के लिए सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विकास की क्या आवश्यकता थी

  • वर्ष 1983 में भारत के रक्षा इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ, जब निर्णयकर्ताओं ने वैज्ञानिक समुदाय के साथ मिलकर देश की रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत की। इससे एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) का मार्ग प्रशस्त हुआ.
  • इस परियोजना का उद्देश्य मध्यम दूरी और छोटी दूरी सहित मिसाइलों की एक व्यापक श्रृंखला का विकास और उत्पादन करके मिसाइल कार्यक्रम में आत्मनिर्भरता हासिल करना था.
  • 1990 के दशक के खाड़ी युद्ध के बाद, देश को क्रूज मिसाइल प्रणाली से लैस करना आवश्यक हो गया.
  • यह वह समय था जब रूस के साथ भारत की दशकों पुरानी मित्रता, गुटनिरपेक्ष नीति में अद्वितीय संतुलन को बिगाड़े बिना, नई मिसाइल प्रणाली विकसित करने में सबसे आगे आई.
  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और रूस के प्रथम उप रक्षा मंत्री एन.वी. मिखाइलोव ने 12 फरवरी, 1998 को मास्को में एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसने ब्रह्मोस एयरोस्पेस के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (एनपीओएम) के बीच एक संयुक्त उद्यम इकाई थी.
  • इस साझेदारी का उद्देश्य दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली- ब्रह्मोस का डिजाइन, विकास, निर्माण और विपणन करना था.
  • ब्रह्मोस का पहला सफल प्रक्षेपण 12 जून, 2001 को हुआ था. मिसाइल का परीक्षण उड़ीसा के चांदीपुर तट के निकट अंतरिम परीक्षण रेंज में भूमि आधारित लांचर से किया गया था.
  • इसके बाद, संयुक्त उद्यम कंपनी सुर्खियों में आई और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू कर दिया. वैश्विक बाजार में कदम रखते हुए, ब्रह्मोस को 2001 में पहली बार मास्को में MAKS-1 प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया.

ब्रह्मोस की अगली पीढ़ी

अगली पीढ़ी की ब्रह्मोस, मौजूदा मिसाइल का एक छोटा और हल्का संस्करण है जो ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक 2.8 मैक की गति से उड़ता है, इसे मिग-29, मिराज-2000 और तेजस हल्के लड़ाकू विमानों जैसे छोटे लड़ाकू विमानों पर भी लगाया जाएगा. दिसंबर 2022 में भारतीय वायु सेना ने सुखोई-30MKI लड़ाकू जेट से बंगाल की खाड़ी में एक जहाज के लक्ष्य के खिलाफ ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विस्तारित रेंज संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. मिसाइल की रेंज 450 किलोमीटर है.

BRAHMOS MISSILE
ब्रह्मोस मिसाइल. (IANS)

अन्य देशों को ब्रह्मोस का निर्यात

2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था कि मिसाइल के विपणन का समय आ गया है. भारत ने 19 अप्रैल 2024 को फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें सौंपीं. जनवरी 2022 में, दोनों देशों ने 375 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसने ब्रह्मोस और अन्य रक्षा सहयोग पर सरकार-से-सरकार सौदों का मार्ग प्रशस्त किया.

BRAHMOS MISSILE
लखनऊ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस एकीकरण और परीक्षण सुविधा का उद्घाटन. (IANS)

ब्रह्मोस और रूसी सशस्त्र बलों में शामिल होना

भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस मिसाइल को आश्चर्यजनक रूप से कभी भी रूसी सशस्त्र बलों में शामिल नहीं किया गया. 1980 के दशक से, सोवियत संघ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के लिए रैमजेट तकनीक विकसित करने पर काम कर रहा था. 1993 तक, उन्होंने दुनिया में किसी से भी आगे एक व्यवहार्य तरल प्रणोदक-आधारित रैमजेट इंजन-आधारित सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, पी-800 ओनिक्स विकसित कर लिया था. इस मिसाइल को 2002 में रूस में शामिल किया गया. ब्रह्मोस मिसाइल, पी-800 ओनिक्स से बहुत अलग नहीं है. संभावना है कि उन्हें अपने बलों के लिए ब्रह्मोस की आवश्यकता नहीं पड़ी.

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