ETV Bharat / bharat

बिहार में छोटी पार्टियां करेंगी बड़ा 'खेला', क्या नीतीश कुमार का 20 साल का दुर्ग होगा ध्वस्त? - BIHAR POLITICS

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नए राजनीतिक दलों का उदय एक महत्वपूर्ण मोड़ है. बिहार की सियासत पर पटना से अनिनाश की रिपोर्ट.

बिहार विधानसभा चुनाव
बिहार विधानसभा चुनाव (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 15, 2025 at 8:40 PM IST

14 Min Read

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश गर्म है. आपातकाल के विरोध की सियासत से निकले लालू प्रसाद यादव से लेकर रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के इर्द-गिर्द ही पांच दशक तक सिमटी रही बिहार की राजनीति में इस बार नया प्रयोग होता दिख रहा. बड़े दल सीटों के बंटवारे में उलझे हुए हैं तो वहीं छोटी पार्टियों के तरफ से 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान होने लगा है.

नई पार्टियां बिगाड़ेगी खेल: बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने वाला है. सभी बड़ी पार्टियां अपने गठबंधन के साथ चुनावी बिसात बिछाने में जुट गई है. वहीं मायावती की बसपा, प्रशांत किशोर की जन सुराज, पशुपति पारस की आरएलजेपी, आरसीपी सिंह की आप सबकी आवाज, शिवदीप लांडे की हिन्द सेना ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. इसके अलावे एआईएमआईएम और कई छोटे दल जो चुनाव में बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारेंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव (ETV Bharat)

उपचुनाव में पीके को मिली शिकस्त: बात करें जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की तो उन्होंने राज्य में दो साल से ज़्यादा लंबी पदयात्रा करने के बाद जन सुराज पार्टी बनाई है. चार सीटों पर उप चुनाव भी लड़ा और 10% वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की. जन सुराज को जीत तो नहीं मिली लेकिन चारों सीट का खेल बिगाड़ दिया. एनडीए को चारों सीट पर जीत हासिल हो गई महागठबंधन को नुकसान हुआ.

जन सुराज पार्टी के सूत्रधार
जन सुराज पार्टी के सूत्रधार (ETV Bharat)

विधान पार्षद की जीत से खुला खाता: जन सुराज के समर्थन से एक विधान पार्षद की जीत हुई थी लेकिन वह पार्टी के गठन से पहले कामयाबी मिली थी. अभी हाल ही में गांधी मैदान में प्रशांत किशोर ने बिहार बदलाव रैली की है. रैली को लेकर जो दावा किया गया था इतनी भीड़ नहीं आई और आने वाले समय में बिहार बदलाव यात्रा शुरू करने वाले हैं. 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की उनकी तैयारी है.

"प्रशांत किशोर बड़े चुनावी रणनीतिकार हैं नरेंद्र मोदी से लेकर कई राज्यों में कई दलों के लिए काम किया है. बिहार में नीतीश कुमार के लिए भी काम किया है. अब अपनी सरकार बनना चाहते हैं. बिहार बदलना चाहते हैं. बिहार को विकसित बनाना चाहते हैं. बिहार में विधानसभा उपचुनाव में असर डाला है. अब विधानसभा चुनाव में भी कई सीटों पर असर डालेंगे यह तय है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

पीके जीते नहीं हराने में निभाई भूमिका: राजनीतिक विशेषज्ञ का कहा कि अभी प्रशांत किशोर की जन सुराज को ही लीजिए तो पिछले साल विधानसभा उपचुनाव में चार सीटों पर इन्होंने असर डाला था खुद जीते तो नहीं लेकिन हराने में उनकी भूमिका रही. छोटे दल टिकट भी बेचते हैं और इसलिए 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं और इसके अलावा भी कई वजह होती है. दूसरे दलों को चंदा देने की जगह अपनी पार्टी को खड़ा कर एक अलग पहचान बनाने की कोशिश भी इसी का एक हिस्सा होता है.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

जिताऊ कैंडिडेट खोजना मुश्किल: राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि बड़े दलों को 243 सीटों पर जीतने वाला उम्मीदवार खोजना मुश्किल होता है. ऐसे में जिनका बहुत जनाधार ना हो संगठन भी मजबूत ना हो इसके लिए सभी सीटों पर उम्मीदवार का चयन आसान नहीं होगा. कुछ छोटे दल जो कई सालों से कम कर रहे हैं चुनाव में उनका असर जरूर होता है.

बिहार में बसपा की डगर मुश्किल: मायावती की बसपा भी बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बिहार में बसपा का अब तक का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा है. 2020 में बसपा को एक सीट पर जीत मिली. बाद में पार्टी के विधायक जमा खान जदयू में शामिल हो गए जो अभी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. बसपा विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ती रही है.

बिहार में मायावती की बसपा पार्टी के कार्यकर्ता
बिहार में मायावती की बसपा पार्टी के कार्यकर्ता (ETV Bharat)

2005 में 228 कंडिडेट की जमानत जब्त: मायावती की बसपा फरवरी 2005 में 238 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें 228 की जमानत नहीं बची केवल दो सीट पर ही जीत हासिल कर 4.41% वोट हासिल हुआ. नवंबर में 2005 में चुनाव में बसपा ने फिर 212 सीटों पर चुनाव लड़ी और 201 की जमानत नहीं बची 4.7 फीसदी के साथ चार सीट जीतने में कामयाब रही.

2020 में जमा खान को मिली जीत: 2010 में 239 सीटों पर बसपा ने उम्मीदवार उतारा इसमें से 236 की जमानत जब्त हो गई. 2015 में 228 प्रत्याशी चुनाव मैदान में बसपा ने उतारा और 225 की जमानत जब्त हो गई पार्टी नेताओं के अनुसार 2020 में 80 सीटों पर तालमेल के तहत उम्मीदवार उतारा गया था. कुछ सीटों पर जमानत बची एक सीट जीते.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"यूपी से सटे बिहार के इलाकों में बसपा का प्रभाव रहा है. जिसमें चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, फारबिसगंज, भभुआ , दिनारा, बक्सर, कटैया नौतन, रामगढ़ जैसे विधानसभा क्षेत्र है और इन सीटों पर बसपा को जीत भी मिली है. यदि बसपा की जीत नहीं हुई है तो जीत हार में बसपा की प्रमुख भूमिका रही है. इस बार भी इन सीटों पर असर डाल सकती है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

पशुपति पारस का एनडीए से टूटी नाता: चिराग पासवान से विवाद के बाद पशुपति पारस ने अपनी पार्टी बनाई है और अब एनडीए से भी नाता टूट चुका है. ऐसे में पशुपति पारस ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ?:राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि पशुपति पारस का अकेले यह पहला चुनाव होगा लेकिन रामविलास पासवान का जो वोट बैंक है वह चिराग पासवान के साथ है ऐसे में पशुपति पारस बहुत कुछ कर पाएंगे इसकी संभावना कम है.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"पशुपति पारस को सब जगह से जब निराशा हाथ लगी तब उन्होंने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है, लेकिन जब बड़े दलों को ही जिताउ उम्मीदवार सभी सीटों पर खोजना मुश्किल होता है. 243 सीटों पर पशुपति पारस उम्मीदवार कहां से लाएंगे एक बड़ा सवाल है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

नीतीश ने आरसीपी सिंह को नहीं दिया मौका: कभी नीतीश कुमार के खासमखास माने जाने वाले और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका निभाने वाले आरसीपी जदयू से नाता तोड़ने के बाद अक्टूबर 2024 अपनी पार्टी बनाई है. 2022 में राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें दोबारा पार्टी ने मौका नहीं दिया.

एनडीए में गए तो जेडीयू से बढ़ने लगी दूरियां: राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ बताते हैं कि मतभेद के बाद आरसीपी सिंह को मंत्री पद छोड़ना पड़ा. मतभेदों के चलते अगस्त 2022 में जदयू से इस्तीफा दे दिया था. मई 2023 में वे बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, बाद में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ा और एनडीए में वापसी की तो आरसीपी की बीजेपी से दूरियां बढ़ने लगीं.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"आरसीपी सिंह कुर्मी जाति से आते हैं. बिहार में कुर्मी समाज को प्रभावशाली माना जाता है. वे नालंदा जिले से आते हैं. जहां से नीतीश कुमार भी हैं. पार्टी का यह पहला चुनाव होगा पूरे बिहार में पार्टी असर डालेगी इसकी संभावना कम है लेकिन नालंदा के कुछ सीटों पर असर आरसीपी सिंह डाल सकते हैं." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

शिवदीप लांडे की राजनीतिक पारी: आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे पिछले साल सितंबर में आईजी (पूर्णिया) के पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद नए राजनीतिक संगठन 'हिंद सेना' गठन की और विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी. शिवदीप लांडे ने पार्टी गठन के समय ही कहा था कि लोगों का ध्यान खींचने के लिए राष्ट्रवाद, सेवा और समर्पण के सिद्धांतों पर पार्टी काम करेगा.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"शिवदीप लांडे आईपीएस अधिकारी के रूप में युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं, लेकिन अभी संगठन पर काम करने की जरूरत पड़ेगी. इसलिए विधानसभा चुनाव में बहुत असर डालेंगे इसकी संभावना कम है."-भोलानाथ,राजनीतिक विशेषज्ञ

ओवैसी को 5 सीटों पर मिली जीत: 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. 5 सीटों पर जीत मिली और 4 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर आए. जिन सीटों पर जीत मिली उनमें अमौर से अख्तरुल इमान, जोकीहाट से शाहनवाज आलम, बहादुरगंज से अनजार नईमी, कोचाधामन से मुश्ताक आलम और बायसी से अब्दुल सुब्हान का नाम शामिल हैं.

सीमांचल क्षेत्र एआईएमआईएम का मजबूत किला: ओवैसी का राजनीतिक किला सीमांचल क्षेत्र कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया में थीं. जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. हालांकि जून 2022 में ओवैसी की पार्टी को झटका लगा और चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए. अभी पूर्णिया जिले की अमौर सीट से अख्तरुल इमान पार्टी के विधायक हैं. इमान पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

ओवैसी ने अब तक नहीं खोला पत्ता: ओवैसी की पार्टी लोकसभा चुनाव में भी एक दर्जन से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है लेकिन सफलता नहीं मिली. विधानसभा उपचुनाव में पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी इसकी घोषणा तो नहीं की है लेकिन तय है कि सीमांचल में सभी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार होंगे और मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर भी पार्टी उम्मीदवार देगी.

"असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम बहुल इलाकों में पॉलिटिक्स करते हैं तो बिहार का सीमांचल इलाका उनके लिए सबसे बेहतर रहा है. इस बार भी 35 से अधिक मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम खेल बिगाड़ सकती है."-भोलानाथ,राजनीतिक विशेषज्ञ

पुष्पम प्रिया को दोनों सीट पर मिली हार: 2020 में पुष्पम प्रिया चौधरी ने प्लूरल्स पार्टी की स्थापना की. पुष्पम प्रिया लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं. पुष्पम प्रिया स्वयं बांकीपुर और बिस्फी सीट से उम्मीदवार थीं. हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली. पुष्पम प्रिया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खासी एक्टिव रही. 2020 के चुनाव में पुष्पम प्रिया की पार्टी ने 102 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. सिर्फ तीन सीटों पर यह पार्टी तीसरे स्थान पर आई.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

दूसरे स्थान पर कांग्रेस: बात करें वोट की तो बांकीपुर से पुष्पम प्रिया को 5,189 वोट मिले. जबकि बीजेपी के नितिन नवीन को 83,068 वोट मिले. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के लव सिन्हा को 44,032 वोट मिले थे. प्लूरल्स पार्टी को बेतिया सीट पर 1,559 और मुजफ्फरपुर सीट पर 3522 वोट मिले थे. इस बार पुष्पम प्रिया विधानसभा चुनाव में कितने सीटों पर उम्मीदवार उतरेंगे अभी तक ऐलान नहीं किया है.

छोटे दल अभी से देने लगे हैं टेंशन: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है अधिकांश छोटे दलों का बहुत जनाधार बिहार में नहीं है. गठबंधन के साथ चुनाव लड़ते हैं तो कुछ सीटों पर उन्हें फायदा हो जाता है, लेकिन कई छोटे दलों का कुछ जगहों पर अपनी पकड़ है और वहां बड़े राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ते हैं इस बार भी कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

छोटी पार्टियों की हो गई थी जमानत जब्त: बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 212 पार्टियों ने हिस्सा लिया था. अधिकांश छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों की जमानत 2020 में जब्त हो गई थी और उससे पहले भी जो चुनाव हुए हैं उसमें उम्मीदवारों के जमानत जब्त होते रहे हैं, लेकिन छोटे दल कई सीटों पर जीत हार में अपनी बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं. प्रत्येक दल का कुछ सीटों पर अपना दबदबा जरूर होता है जहां यदि जीत नहीं पाए तो खेल जरूर बिगाड़ देते हैं.

छोटे दलों को कम आंकना ठीक नहीं: पटना विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर चंद्र भूषण राय का कहना है की छोटे दलों को भी कम नहीं आंकना चाहिए. छोटे दलों में से निकले दल आज सत्ता में अपनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. 1995 में नीतीश कुमार की समता पार्टी ने 324 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत केवल 6 सीट पर हुई और अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जीत भी नालंदा के इलाके में ही हुई थी.

एनडीए और महागठबंधन में लड़ाई: बिहार में ऐसे तो लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच ही होना है, लेकिन कई विधानसभा सीट पर चुनाव आयोग के पिछले आंकड़ों को देखें तो जीत हार का अंतर बहुत काम कर रहा है. ऐसे में छोटे दलों की भूमिका खेल को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार भी कई छोटे दल जो मजबूती से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं कई सीटों पर खेल बिगाड़ सकते हैं.

"छोटे दलों के चुनाव मैदान में आने से जदयू, भाजपा, राजद, कांग्रेस दल जैसे दलों के नेताओं की मुश्किलें भी बढ़ा दी है.बिहार में लड़ाई तो एनडीए और महागठबंधन के बीच ही होता है. जब एनडीए के मुकाबले महागठबंधन ही कहीं नहीं ठहर रहा है. वहीं छोटे दलों को तो हम लोग कोई नोटिस ही नहीं ले रहे हैं."

जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन (ETV Bharat)
-राजीव रंजन, राष्ट्रीय प्रवक्ता जदयू

85% से अधिक उम्मीदवारों के जमानत जब्त: बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 212 पार्टियों ने हिस्सा लिया था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो विधानसभा चुनाव को देखें तो 85% से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में कुल उम्मीदवारों में से 3,205 उम्मीदवारों यानी 85.8% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या 2,935 थी. जो कुल उम्मीदवार का 85% रहा.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

हर साल छोटे दलों में हो रहा इजाफा: चुनाव आयोग के आंकड़ों से साफ है कि अधिकांश छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार की जमानत नहीं बचती है.इसके बावजूद हर साल छोटे दलों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस साल विधानसभा चुनाव के लिए भी कई छोटे दलों ने 243 सीटों पर अभी से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. पिछले साल गठित प्रशांत किशोर की जनसुराज और इस साल बनी शिवदीप लांडे की हिंद सेना उसमें शामिल है.

ये भी पढ़ें

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश गर्म है. आपातकाल के विरोध की सियासत से निकले लालू प्रसाद यादव से लेकर रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के इर्द-गिर्द ही पांच दशक तक सिमटी रही बिहार की राजनीति में इस बार नया प्रयोग होता दिख रहा. बड़े दल सीटों के बंटवारे में उलझे हुए हैं तो वहीं छोटी पार्टियों के तरफ से 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान होने लगा है.

नई पार्टियां बिगाड़ेगी खेल: बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने वाला है. सभी बड़ी पार्टियां अपने गठबंधन के साथ चुनावी बिसात बिछाने में जुट गई है. वहीं मायावती की बसपा, प्रशांत किशोर की जन सुराज, पशुपति पारस की आरएलजेपी, आरसीपी सिंह की आप सबकी आवाज, शिवदीप लांडे की हिन्द सेना ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. इसके अलावे एआईएमआईएम और कई छोटे दल जो चुनाव में बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारेंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव (ETV Bharat)

उपचुनाव में पीके को मिली शिकस्त: बात करें जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की तो उन्होंने राज्य में दो साल से ज़्यादा लंबी पदयात्रा करने के बाद जन सुराज पार्टी बनाई है. चार सीटों पर उप चुनाव भी लड़ा और 10% वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल की. जन सुराज को जीत तो नहीं मिली लेकिन चारों सीट का खेल बिगाड़ दिया. एनडीए को चारों सीट पर जीत हासिल हो गई महागठबंधन को नुकसान हुआ.

जन सुराज पार्टी के सूत्रधार
जन सुराज पार्टी के सूत्रधार (ETV Bharat)

विधान पार्षद की जीत से खुला खाता: जन सुराज के समर्थन से एक विधान पार्षद की जीत हुई थी लेकिन वह पार्टी के गठन से पहले कामयाबी मिली थी. अभी हाल ही में गांधी मैदान में प्रशांत किशोर ने बिहार बदलाव रैली की है. रैली को लेकर जो दावा किया गया था इतनी भीड़ नहीं आई और आने वाले समय में बिहार बदलाव यात्रा शुरू करने वाले हैं. 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की उनकी तैयारी है.

"प्रशांत किशोर बड़े चुनावी रणनीतिकार हैं नरेंद्र मोदी से लेकर कई राज्यों में कई दलों के लिए काम किया है. बिहार में नीतीश कुमार के लिए भी काम किया है. अब अपनी सरकार बनना चाहते हैं. बिहार बदलना चाहते हैं. बिहार को विकसित बनाना चाहते हैं. बिहार में विधानसभा उपचुनाव में असर डाला है. अब विधानसभा चुनाव में भी कई सीटों पर असर डालेंगे यह तय है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

पीके जीते नहीं हराने में निभाई भूमिका: राजनीतिक विशेषज्ञ का कहा कि अभी प्रशांत किशोर की जन सुराज को ही लीजिए तो पिछले साल विधानसभा उपचुनाव में चार सीटों पर इन्होंने असर डाला था खुद जीते तो नहीं लेकिन हराने में उनकी भूमिका रही. छोटे दल टिकट भी बेचते हैं और इसलिए 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं और इसके अलावा भी कई वजह होती है. दूसरे दलों को चंदा देने की जगह अपनी पार्टी को खड़ा कर एक अलग पहचान बनाने की कोशिश भी इसी का एक हिस्सा होता है.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

जिताऊ कैंडिडेट खोजना मुश्किल: राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि बड़े दलों को 243 सीटों पर जीतने वाला उम्मीदवार खोजना मुश्किल होता है. ऐसे में जिनका बहुत जनाधार ना हो संगठन भी मजबूत ना हो इसके लिए सभी सीटों पर उम्मीदवार का चयन आसान नहीं होगा. कुछ छोटे दल जो कई सालों से कम कर रहे हैं चुनाव में उनका असर जरूर होता है.

बिहार में बसपा की डगर मुश्किल: मायावती की बसपा भी बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बिहार में बसपा का अब तक का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा है. 2020 में बसपा को एक सीट पर जीत मिली. बाद में पार्टी के विधायक जमा खान जदयू में शामिल हो गए जो अभी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. बसपा विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ती रही है.

बिहार में मायावती की बसपा पार्टी के कार्यकर्ता
बिहार में मायावती की बसपा पार्टी के कार्यकर्ता (ETV Bharat)

2005 में 228 कंडिडेट की जमानत जब्त: मायावती की बसपा फरवरी 2005 में 238 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें 228 की जमानत नहीं बची केवल दो सीट पर ही जीत हासिल कर 4.41% वोट हासिल हुआ. नवंबर में 2005 में चुनाव में बसपा ने फिर 212 सीटों पर चुनाव लड़ी और 201 की जमानत नहीं बची 4.7 फीसदी के साथ चार सीट जीतने में कामयाब रही.

2020 में जमा खान को मिली जीत: 2010 में 239 सीटों पर बसपा ने उम्मीदवार उतारा इसमें से 236 की जमानत जब्त हो गई. 2015 में 228 प्रत्याशी चुनाव मैदान में बसपा ने उतारा और 225 की जमानत जब्त हो गई पार्टी नेताओं के अनुसार 2020 में 80 सीटों पर तालमेल के तहत उम्मीदवार उतारा गया था. कुछ सीटों पर जमानत बची एक सीट जीते.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"यूपी से सटे बिहार के इलाकों में बसपा का प्रभाव रहा है. जिसमें चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, फारबिसगंज, भभुआ , दिनारा, बक्सर, कटैया नौतन, रामगढ़ जैसे विधानसभा क्षेत्र है और इन सीटों पर बसपा को जीत भी मिली है. यदि बसपा की जीत नहीं हुई है तो जीत हार में बसपा की प्रमुख भूमिका रही है. इस बार भी इन सीटों पर असर डाल सकती है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

पशुपति पारस का एनडीए से टूटी नाता: चिराग पासवान से विवाद के बाद पशुपति पारस ने अपनी पार्टी बनाई है और अब एनडीए से भी नाता टूट चुका है. ऐसे में पशुपति पारस ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ?:राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि पशुपति पारस का अकेले यह पहला चुनाव होगा लेकिन रामविलास पासवान का जो वोट बैंक है वह चिराग पासवान के साथ है ऐसे में पशुपति पारस बहुत कुछ कर पाएंगे इसकी संभावना कम है.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"पशुपति पारस को सब जगह से जब निराशा हाथ लगी तब उन्होंने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है, लेकिन जब बड़े दलों को ही जिताउ उम्मीदवार सभी सीटों पर खोजना मुश्किल होता है. 243 सीटों पर पशुपति पारस उम्मीदवार कहां से लाएंगे एक बड़ा सवाल है." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

नीतीश ने आरसीपी सिंह को नहीं दिया मौका: कभी नीतीश कुमार के खासमखास माने जाने वाले और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका निभाने वाले आरसीपी जदयू से नाता तोड़ने के बाद अक्टूबर 2024 अपनी पार्टी बनाई है. 2022 में राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें दोबारा पार्टी ने मौका नहीं दिया.

एनडीए में गए तो जेडीयू से बढ़ने लगी दूरियां: राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ बताते हैं कि मतभेद के बाद आरसीपी सिंह को मंत्री पद छोड़ना पड़ा. मतभेदों के चलते अगस्त 2022 में जदयू से इस्तीफा दे दिया था. मई 2023 में वे बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, बाद में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ा और एनडीए में वापसी की तो आरसीपी की बीजेपी से दूरियां बढ़ने लगीं.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"आरसीपी सिंह कुर्मी जाति से आते हैं. बिहार में कुर्मी समाज को प्रभावशाली माना जाता है. वे नालंदा जिले से आते हैं. जहां से नीतीश कुमार भी हैं. पार्टी का यह पहला चुनाव होगा पूरे बिहार में पार्टी असर डालेगी इसकी संभावना कम है लेकिन नालंदा के कुछ सीटों पर असर आरसीपी सिंह डाल सकते हैं." -भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ

शिवदीप लांडे की राजनीतिक पारी: आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे पिछले साल सितंबर में आईजी (पूर्णिया) के पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद नए राजनीतिक संगठन 'हिंद सेना' गठन की और विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी. शिवदीप लांडे ने पार्टी गठन के समय ही कहा था कि लोगों का ध्यान खींचने के लिए राष्ट्रवाद, सेवा और समर्पण के सिद्धांतों पर पार्टी काम करेगा.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

"शिवदीप लांडे आईपीएस अधिकारी के रूप में युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं, लेकिन अभी संगठन पर काम करने की जरूरत पड़ेगी. इसलिए विधानसभा चुनाव में बहुत असर डालेंगे इसकी संभावना कम है."-भोलानाथ,राजनीतिक विशेषज्ञ

ओवैसी को 5 सीटों पर मिली जीत: 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. 5 सीटों पर जीत मिली और 4 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर आए. जिन सीटों पर जीत मिली उनमें अमौर से अख्तरुल इमान, जोकीहाट से शाहनवाज आलम, बहादुरगंज से अनजार नईमी, कोचाधामन से मुश्ताक आलम और बायसी से अब्दुल सुब्हान का नाम शामिल हैं.

सीमांचल क्षेत्र एआईएमआईएम का मजबूत किला: ओवैसी का राजनीतिक किला सीमांचल क्षेत्र कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया में थीं. जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. हालांकि जून 2022 में ओवैसी की पार्टी को झटका लगा और चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए. अभी पूर्णिया जिले की अमौर सीट से अख्तरुल इमान पार्टी के विधायक हैं. इमान पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

ओवैसी ने अब तक नहीं खोला पत्ता: ओवैसी की पार्टी लोकसभा चुनाव में भी एक दर्जन से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है लेकिन सफलता नहीं मिली. विधानसभा उपचुनाव में पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी इसकी घोषणा तो नहीं की है लेकिन तय है कि सीमांचल में सभी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार होंगे और मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर भी पार्टी उम्मीदवार देगी.

"असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम बहुल इलाकों में पॉलिटिक्स करते हैं तो बिहार का सीमांचल इलाका उनके लिए सबसे बेहतर रहा है. इस बार भी 35 से अधिक मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम खेल बिगाड़ सकती है."-भोलानाथ,राजनीतिक विशेषज्ञ

पुष्पम प्रिया को दोनों सीट पर मिली हार: 2020 में पुष्पम प्रिया चौधरी ने प्लूरल्स पार्टी की स्थापना की. पुष्पम प्रिया लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं. पुष्पम प्रिया स्वयं बांकीपुर और बिस्फी सीट से उम्मीदवार थीं. हालांकि, उन्हें सफलता नहीं मिली. पुष्पम प्रिया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खासी एक्टिव रही. 2020 के चुनाव में पुष्पम प्रिया की पार्टी ने 102 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. सिर्फ तीन सीटों पर यह पार्टी तीसरे स्थान पर आई.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

दूसरे स्थान पर कांग्रेस: बात करें वोट की तो बांकीपुर से पुष्पम प्रिया को 5,189 वोट मिले. जबकि बीजेपी के नितिन नवीन को 83,068 वोट मिले. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के लव सिन्हा को 44,032 वोट मिले थे. प्लूरल्स पार्टी को बेतिया सीट पर 1,559 और मुजफ्फरपुर सीट पर 3522 वोट मिले थे. इस बार पुष्पम प्रिया विधानसभा चुनाव में कितने सीटों पर उम्मीदवार उतरेंगे अभी तक ऐलान नहीं किया है.

छोटे दल अभी से देने लगे हैं टेंशन: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है अधिकांश छोटे दलों का बहुत जनाधार बिहार में नहीं है. गठबंधन के साथ चुनाव लड़ते हैं तो कुछ सीटों पर उन्हें फायदा हो जाता है, लेकिन कई छोटे दलों का कुछ जगहों पर अपनी पकड़ है और वहां बड़े राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ते हैं इस बार भी कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

छोटी पार्टियों की हो गई थी जमानत जब्त: बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 212 पार्टियों ने हिस्सा लिया था. अधिकांश छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों की जमानत 2020 में जब्त हो गई थी और उससे पहले भी जो चुनाव हुए हैं उसमें उम्मीदवारों के जमानत जब्त होते रहे हैं, लेकिन छोटे दल कई सीटों पर जीत हार में अपनी बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं. प्रत्येक दल का कुछ सीटों पर अपना दबदबा जरूर होता है जहां यदि जीत नहीं पाए तो खेल जरूर बिगाड़ देते हैं.

छोटे दलों को कम आंकना ठीक नहीं: पटना विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर चंद्र भूषण राय का कहना है की छोटे दलों को भी कम नहीं आंकना चाहिए. छोटे दलों में से निकले दल आज सत्ता में अपनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. 1995 में नीतीश कुमार की समता पार्टी ने 324 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत केवल 6 सीट पर हुई और अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जीत भी नालंदा के इलाके में ही हुई थी.

एनडीए और महागठबंधन में लड़ाई: बिहार में ऐसे तो लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच ही होना है, लेकिन कई विधानसभा सीट पर चुनाव आयोग के पिछले आंकड़ों को देखें तो जीत हार का अंतर बहुत काम कर रहा है. ऐसे में छोटे दलों की भूमिका खेल को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार भी कई छोटे दल जो मजबूती से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं कई सीटों पर खेल बिगाड़ सकते हैं.

"छोटे दलों के चुनाव मैदान में आने से जदयू, भाजपा, राजद, कांग्रेस दल जैसे दलों के नेताओं की मुश्किलें भी बढ़ा दी है.बिहार में लड़ाई तो एनडीए और महागठबंधन के बीच ही होता है. जब एनडीए के मुकाबले महागठबंधन ही कहीं नहीं ठहर रहा है. वहीं छोटे दलों को तो हम लोग कोई नोटिस ही नहीं ले रहे हैं."

जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन (ETV Bharat)
-राजीव रंजन, राष्ट्रीय प्रवक्ता जदयू

85% से अधिक उम्मीदवारों के जमानत जब्त: बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 212 पार्टियों ने हिस्सा लिया था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो विधानसभा चुनाव को देखें तो 85% से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में कुल उम्मीदवारों में से 3,205 उम्मीदवारों यानी 85.8% उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या 2,935 थी. जो कुल उम्मीदवार का 85% रहा.

ETV Bharat GFX
ETV Bharat GFX (ETV Bharat)

हर साल छोटे दलों में हो रहा इजाफा: चुनाव आयोग के आंकड़ों से साफ है कि अधिकांश छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार की जमानत नहीं बचती है.इसके बावजूद हर साल छोटे दलों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस साल विधानसभा चुनाव के लिए भी कई छोटे दलों ने 243 सीटों पर अभी से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. पिछले साल गठित प्रशांत किशोर की जनसुराज और इस साल बनी शिवदीप लांडे की हिंद सेना उसमें शामिल है.

ये भी पढ़ें

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.