कौन होंगे मगध के मसीहा? ओवैसी या PK, एनडीए और महागठबंधन से टिकट नहीं मिलने से मुस्लिमों में नाराजगी
इसबार भी मगध में एनडीए और महागठबंधन मुस्लिम को टिकट नहीं देता है तो ओवैसी और पीके के लिए दरवाजे खुले हैं.

Published : October 8, 2025 at 10:16 AM IST
गयाजी: मगध सत्ता का केंद्र रहा है. सत्ता में पहुंचने के लिए इस क्षेत्र के 26 विधानसभा सीटों पर जीत बेहद जरूरी है. इसलिए दोनों महागठबंधन और एनडीए की नजर मगध क्षेत्रों पर रही है. यहां MY समीकरण की बदौलत दोनों गठबंधन सीटें हासिल करती रही है. यादव को छोड़ दें तो मुस्लिम को लेकर मगध में असदुद्दीन ओवैसी की नजर है. यहां के लोग भी कहते हैं कि अगर एनडीए या महागठबंधन ने टिकट नहीं दिया तो उनके पास कई विकल्प हैं.
टिकट बंटवारे पर सवाल: AIMIM मुस्लिम प्रत्याशियों को लेकर जोर लगाए हुए हैं. हालांकि अन्य गठबंधन को लेकर संशय है. टिकट बंटवारे से पहले सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस बार महागठबंधन में शामिल पार्टियों का रवैया वही होगा? खास कर मगध क्षेत्र में जितनी जनसंख्या है उसके अनुसार मुस्लिम नेता प्रत्याशी बनाए जाएंगे या नहीं, ये सवाल राजद से ही नहीं बल्कि कांग्रेस से भी हो रहा है.
जितनी आबादी उतनी हिस्सेदारी: बिहार में मुसलमानों की आबादी लगभग 17.70 प्रतिशत है. लोकसभा चुनाव 2024 की तरह विधानसभा में भी मुस्लिम नेताओं को महागठबंधन से डर सताने लगा है. इस बार भी मगध में मुस्लिम समुदाय की हिस्से में मायूसी हाथ नहीं लगे, इसीलिए मांग हो रही है कि महागठबंधन अपने वादे के तहत 'जितनी जिसकी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी' के अनुसार टिकट दें,
राजद में जातिवाद: लोकसभा चुनाव में राजद ने महागठबंधन में अपने हिस्से की 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें नौ यादव जाती से थे, जबकि मुस्लिम एवं अति पिछड़ा से सिर्फ दो दो प्रत्याशी थे, तीन आरक्षित सीटों को हटा दिया जाए तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी के 20 अनारक्षित सीटों में लगभग आधी सीट अपनी बिरादरी में ही बांट दी थी.

क्यों नहीं मिलता बराबरी का हक: असल में बिहार में दोनों गठबंधन के दलों की ओर से मुस्लिम नेताओं को सीमांचल कोसी के क्षेत्र में ही ज्यादा संख्या में टिकट दी जाती है, दक्षिणी बिहार में मुस्लिम प्रत्याशी की संख्या बहुत कम होती है. विधानसभा चुनाव 2020 में मगध की 26 सीटों पर राजद ने सिर्फ 2 मुस्लिम नेता को टिकट दी थी.
कांग्रेस से नाराजगी: नवादा से मो कामरान विधायक बने थे, जबकि दूसरे सीट रफीगंज से नेहाल अहम ने जीत दर्ज की थी. मगध मुख्यालय गयाजी की दस सीटों में एक भी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं मिली थी. पिछले कई चुनावों से कांग्रेस और अन्य दलों ने एक भी मुस्लिम समुदाय से प्रत्याशी नहीं बनाया.

जदयू से भी निराशा: इसी तरह एनडीए गठबंधन में जेडीयू , हम पार्टी ने भी 2020 के चुनाव में एक भी टिकट नहीं दिया था. ऐसे में मुस्लिम समाज ने सवाल करना शुरू कर दिया है. उर्दू साहित्य के वरिष्ठ लेखक सैयद अहमद कादरी कहते हैं कि जब पूरी हिस्सेदारी देनी ही नहीं है तो बिहार में जाति गणना कराई ही क्यों?
वोट के लिए इस्तेमाल: सैयद अहमद कादरी राहुल गांधी से भी पूछते हैं कि आबादी के अनुपात में जब हिस्सेदारी नहीं देनी है तो फिर इतना शोर क्यों मचा रहे हैं, सिर्फ वोट के लिए ही मुसलमान याद आते हैं. 17.70 प्रतिशत मुसलमानों में उम्मीद जगी थी की सियासत में उनकी भी हिस्सेदारी बढ़ने वाली है ,खास कर वैसे दलों से ज्यादा उम्मीद थी जो उनके वोटों पर अपना अधिकार समझते हैं.

"पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों पर अपना अधिकार समझने वाली पार्टियां सिर्फ दिखावा करती हैं. जब अधिकार की बात होती है तो वो चुपके से डर फैला देते हैं. मुसलमानों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर पहुंचा देते हैं." -सैयद अहमद कादरी, लेखक
क्या कहते हैं नेता: अजहर इमाम का संबंध कांग्रेस से भी है. वे जिला में कांग्रेस के सक्रिय नेता है, वर्तमान में टिकारी नगर परिषद के अध्यक्ष हैं. कहते हैं कि मुस्लिम समाज के लोग जिस पार्टी में रहकर मेहनत करें, पार्टी पकड़ मजबूत करें, लेकिन जब चुनाव का समय आए तो उन्हें दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया जाता है. खास कर बिहार में दक्षिण बिहार के मुसलमानों के लिए राजनीति में अब कुछ नहीं बचा है. गया जिला जैसे एतिहासिक जगह में 2010 के बाद कांग्रेस राजद ने एक बार भी मुस्लिम समुदाय के नेता को टिकट नहीं दी है.
"मुसलमानों को सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अब पार्टियों को समझना होगा कि मुसलमानों के पास विकल्प खुला है. अगर मुस्लिम समुदाय का मोहभंग हुआ तो बेलागंज में जैसे 34 सालों का राजद का गढ़ ध्वस्त हुआ है, उसी तरह अन्य विधानसभा में भी हो सकता है." -अजहर इमाम, अध्यक्ष, टिकारी नगर परिषद
टिकारी और शेरघाटी से मांग बढ़ी: असल में कांग्रेस से टिकारी और राजद से शेरघाटी की सीटों पर मुस्लिम नेता को प्रत्याशी बनाने की मांग हो रही है. पिछले कई चुनाव से मगध प्रमंडल की 26 सीटों में जितनी सीटें कांग्रेस के खाते में आती हैं, उस में एक सीट पर भी मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस ने टिकट नहीं दी है
इसलिए हार जाती है कांग्रेस: आरोप लगाता रहा है की कांग्रेस उन्हीं नेताओं को प्रत्याशी बनाती है, जिनके समाज का वोट कांग्रेस का नहीं है वह समाज एनडीए के कैडर वोट माना जाते हैं, जिसकी वजह से अधिकतर कांग्रेस प्रत्याशी की हार हो जाती है. जबकि जो समाज कांग्रेस और महागठबंधन के नाम पर बढ़ चढ़ कर वोट करता है, उस के समाज के लोगों को टिकट नहीं दी जाती है.
मुस्लिम प्रत्याशी की मांग: इस बार टिकारी विधानसभा से मुस्लिम प्रत्याशी बनाए जाने की मांग बढ़ी है. यहां पिछले चुनाव 2020 में एनडीए से हम प्रत्याशी अनिल कुमार शर्मा के सामने कांग्रेस ने स्वजातीय प्रत्याशी सुमित कुमार को उम्मीदवार बना दिया था, टेकारी से इस बार मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की मांग की गई है.
10 साल शकील खान रहे थे विधायक: गया जिला की एक विधानसभा सीट गुरुआ से 10 साल तक राजद की टिकट पर शकील अहमद खान विधायक रहे थे. पहली बार शकील अहमद खान 1990 में भाजपा प्रत्याशी प्रेम कुमार के खिलाफ गया टाउन से चुनाव लड़ा था, तब उनकी हार करीब 500 वोटों से हुई थी.
2010 में अंतिम प्रत्याशी: शकील खान ने फिर साल 2000 में गुरुआ विधानसभा से लड़ा और जीते. यहां से लगातार तीन बार चुनाव लड़े और जीते. शकील खान ने 2010 में अंतिम बार शेरघाटी विधानसभा से चुनाव लड़े, लेकिन यहां से उनकी हार हुई. शकील खान की मौत के बाद राजद और कांग्रेस ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को गया की 3 आरक्षित सीटों को छोड़ 7 सीटों में किसी भी सीट से खड़ा नहीं किया.
कांग्रेस टिकारी से बनाए प्रत्याशी: अजहर इमाम कहते हैं कि भाजपा तो पहले ही मुस्लिम समुदाय के लोगों को टिकट नहीं देती है. 2015 के बाद हम पार्टी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं बनाया. पहली बार हम पार्टी ने बेलागंज से शारिम अली को प्रत्याशी बनाया था, जहां से वो राजद प्रत्याशी सुरेंद्र यादव से हार गए थे.
"यही हाल लोजपा में भी हाल है. जेडीयू ने 2010 के बाद गया जिला में मुस्लिम समुदाय से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया है. ऐसे में अगर कांग्रेस भी अपने कोर वोटर वाले समाज को टिकट नहीं देगी तो फिर मुस्लिम समुदाय के लिए राजनीति में बचेगा ही क्या?" -अजहर इमाम, अध्यक्ष, टेकारी नगर परिषद
शीर्ष नेतृत्व से मांग: अजहर इमाम कहते हैं कि उन्होंने पार्टी की मीटिंग में भी शीर्ष नृत्य को इस संबंध में जानकारी दे चुके हैं कि टिकारी विधानसभा क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी होने से जीत भी हो सकती है. यहां के समीकरण के अनुसार सबसे अधिक वोट लगभग 72 हजार यादव समुदाय का है, जबकि 32 हजार से अधिक वोट मुस्लिम समाज का है.
38 हजार भूमिहार वोटर: इसी तरह भूमिहार जाति का वोट लगभग 38 हजार है. पार्टी टिकट देने से पहले ही हार जीत का समीकरण बैठाने लगती है, अजहर इमाम खुद अपना उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वह टेकारी नगर परिषद के अध्यक्ष हैं. उन्हें सीधे वार्ड सदस्यों ने नहीं चुना है, बल्कि उन्हें टिकारी नगर परिषद के सभी वार्डों की जनता चुना है.
"मुझे अध्यक्ष बनाने में हर समाज के लोग शामिल हैं तो यह मानना बिल्कुल गलत है कि टिकट मिलने पर हार ही होगी. खुद कांग्रेस की टिकट पर अपनी दावेदारी पेश किए हुए हैं." -अजहर इमाम, अध्यक्ष, टेकारी नगर परिषद
क्या ओवैसी और प्रशांत किशोर होंगे विकल्प: इस संबंध में शब्बीर रजा कहते हैं कि मुस्लिम नेता की उम्मीदवारी को लेकर हमेशा मामला उठाता रहा है. खासकर 2010 के विधानसभा चुनाव से यह देखने को मिला है कि मगध ही नहीं बल्कि उसके मुख्यालय गया जिले में मुस्लिम समाज को नजर अंदाज किया जा रहा है, लेकिन यह कहना कि विकल्प के रूप में ओवैसी और प्रशांत किशोर होंगे ये भी जरूरी नहीं है.
"2005 के बाद पैटर्न बदला है. मुसलमानों की एक बड़ी संख्या एनडीए के साथ गई है. खास कर मुस्लिम समाज का वोट जदयू को भी जाता है. हां ये जरूर होगा कि इस बार मुस्लिम प्रत्याशी नहीं आते हैं तो ओवैसी और प्रशांत किशोर भी जदयू के साथ विकल्प होंगे." -शब्बीर रजा
उतरी नहीं दक्षिणी बिहार पर भी करें फोकस: डॉ सैयद अहमद कादरी कहते हैं कि कांग्रेस और राजद को उत्तरी बिहार के साथ दक्षिणी बिहार में भी मुसलमानों की भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहिए. यह देखा गया है कि जहां मुस्लिम प्रत्याशी होते हैं, वहां दूसरी पार्टियां भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करती हैं, जिसके कारण उनकी हार हो जाती है. अगर आप वोट लेने का हक रखते हैं तो टिकट भी देनी होगी.
मुसलमान के सामने कई विकल्प: डॉ सैयद अहमद पिछले राज्यसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहते हैं कि राजद से एक मुस्लिम प्रत्याशी की सीट खाली हुई थी, लेकिन राजद ने अपनी जाति के एक बाहरी व्यक्ति को राज्यसभा भेजा है. अगर इस बार कांग्रेस और राजद ने संख्या के अनुसार टिकट नहीं दी तो मुसलमान के सामने कई विकल्प खुले हैं.
ओवैसी साधेंगे मगध: एएमआईएम के नगर अध्यक्ष आसिफ कहते हैं कि मगध में मुसलमान की राजनीतिक रूप से कोई भागीदारी बची नहीं है. अब तो राजनीतिक रूप पहचान के लिए यहां मुसलमान दौड़ रहे हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के आने से मुसलमान के लिए एक विकल्प हो सकता है.
"महागठबंधन को सालों से वोट दिए जा रहे हैं. बावजूद कि वे मुसलमान को हाशिए पर डालने में जरा सी हिचकिचाहट नहीं करते. ऐसे में इनमें और दूसरे गठबंधन की पार्टियों में क्या अंतर होगा? मुसलमानों को विचार करने की जरूरत है." -आसिफ, नगर अध्यक्ष, AIMIM
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