NDA के गढ़ वाले क्षेत्रों में पहले चरण की वोटिंग, 2020 का दिखेगा असर या रचा जाएगा नया इतिहास?
बिहार में पहले चरण में लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच जबरदस्त होगी, क्योंकि 2020 में आधे-आधे पर दोनों गठबंधन ने कब्जा जमाया था.

Published : October 8, 2025 at 9:04 PM IST
रिपोर्ट : अविनाश
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तारीखों की घोषणा हो चुकी है. 6 नवंबर को पहले चरण में 18 जिलों के 121 विधानसभा सीटों पर चुनाव होगा. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि अगर पिछले चुनाव को आधार बनाया जाए तो कांटे की टक्कर होने वाली है.
NDA और इंडिया गठबंधन में 60/61 का रेशियो : दरअसल, 2020 के आकड़ों को देखें तो पिछली बार 59 सीटों पर एनडीए का कब्जा रहा, जबकि 61 सीटों पर महागठबंधन ने जीत हासिल की थी. वहीं बेगूसराय की मटिहानी सीट पर लोजपा को जीत हासिल हुई थी जो बाद में जदयू में चला गया. इस तरह से 60 और 61 का रेशियो 2020 के चुनाव में हो गया था.
2020 विधानसभा चुनाव में तीन चरणों में हुए चुनाव में से पहले चरण में 71 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे, लेकिन इस बार 121 विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है. सीटों के हिसाब से देखें तो एनडीए और महागठबंधन का करीब-करीब पलड़ा बराबर का है.

NDA के मजबूत गढ़ में चुनाव : अगर गौर से देखें तो, पहले चरण की 121 सीटों में से 70 सीटें तिरहुत और मिथिलांचल क्षेत्रों से आती हैं. जहां NDA का पलड़ा भारी दिखाई देता रहा है. इस बार पहले चरण में उत्तर बिहार के क्षेत्रों, जैसे तिरहुत, मिथिलांचल और कोसी की सीटें शामिल हैं, जहां बीजेपी का NDA गठबंधन मजबूत है.
किस जिले में किसने दिखाया था दम ? : 2020 के आंकड़ों को देखें तो महागठबंधन का पटना, भोजपुर, बक्सर, सिवान, समस्तीपुर, बेगूसराय जैसे जिलों में पलड़ा भारी रहा. इन 6 जिलों में विधानसभा की 50 सीटों में से 33 सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा जमाया था, तो वहीं वैशाली, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा, खगड़िया में महागठबंधन ने बराबर का टक्कर दिया था.
एनडीए की बात करें तो नालंदा, दरभंगा, गोपालगंज और मुजफ्फरपुर में शानदार प्रदर्शन रहा. दरभंगा और नालंदा में तो अधिकांश सीट एनडीए ने जीता है. इन दोनों जिलों को मिलाकर 16 विधानसभा की सीटें हैं, जिसमें से 14 पर एनडीए ने कब्जा किया, लेकिन इसके अलावे सभी जिलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा. कुछ जिलों में जरूर महागठबंधन के बराबर रिजल्ट आया.
'कंफ्यूजन का पड़ा था असर' : पटना कॉलेज के राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर चंद्रभूषण राय का कहना है कि 2020 में हुए चुनाव में एनडीए में कई तरह का कंफ्यूजन था. घटक दलों पर अविश्वास की स्थिति थी, इसका खामियाजा उठाना पड़ा. शाहाबाद के कई जिलों में तो सुपड़ा साफ हो गया, जदयू का खाता तक नहीं खुला. कई अन्य जिलों में भी बहुत बेहतर प्रदर्शन नहीं हुआ.
चंद्रभूषण राय आगे बताते हैं कि तीन चरण के चुनाव में से दो चरण एनडीए के खिलाफ गया. जब एनडीए के वरिष्ठ नेताओं ने मोर्चा संभाला तब जाकर तीसरे चरण में स्थिति एनडीए के पक्ष में आया. लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई है. एनडीए में इस बार एकजुटता दिख रही है. काम भी एनडीए की सरकार ने काफी किया है, तो इन सब का लाभ एनडीए को मिलेगा.
''पहले चरण में पलड़ा एनडीए का भारी हो सकता है. वैसे हर चुनाव में कांटे की लड़ाई होती है. प्रशांत किशोर के आने से बहुत ज्यादा असर पड़ेगा ऐसी बात नहीं है. लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच ही होगा.''- चंद्र भूषण राय, प्रोफेसर, पटना कॉलेज, राजनीतिक विज्ञान
ओवैसी और PK कर सकते हैं खेला! : राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है कि इस बार भी लड़ाई कांटे की होगी. नीतीश कुमार ने कई लोक लुभावन फैसले लिए हैं उसका असर तो होगा लेकिन बिहार में वोटिंग जातीय समीकरण, सामाजिक समीकरण और उम्मीदवारों के चयन पर भी निर्भर करेगा. एआईएमआईएम और प्रशांत किशोर की पार्टी भी कई सीटों पर खेल कर सकती है.
''यह जरूर है कि 2020 के मुकाबले एनडीए की स्थिति इस बार बेहतर है, लेकिन दोनों तरफ से जब उम्मीदवारों का चयन हो जाएगा तभी बेहतर ढंग से आंकलन किया जा सकेगा. युवा वोटर, महिला वोटर को लुभाने की कोशिश भी नीतीश कुमार की तरफ से हुई है.''- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ
प्रिय रंजन भारती आगे कहते हैं कि नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चर्चा जरूर होती है, लेकिन सरकार के खिलाफ बहुत ज्यादा इस बार नाराजगी नहीं है. यह महागठबंधन के लिए परेशानी का कारण बन सकता है. इन सबके बावजूद महागठबंधन को कमजोर समझना एनडीए के लिए भारी पड़ सकता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में शाहाबाद के इलाके में सभी लोकसभा की सीटें एनडीए हार गया था. यह जरूर है कि चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार की कमान खुद संभालेंगे तो दूसरी तरफ राहुल गांधी और तेजस्वी भी रहेंगे, इसलिए लड़ाई कांटे की होना तय है.
दोनों ओर से अपने-अपने दावे : जेडीयू और आरजेडी नेताओं का अपना-अपना दावा है कि उनके गठबंधन के पक्ष में ही इस बार रिजल्ट आएगा. जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद का कहना है कि नीतीश कुमार ने इतना काम किया है. एनडीए इस बार एकजुट है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत पहले चरण के चुनाव में ही नहीं दूसरे चरण के चुनाव में भी आएगा.
''तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार की जनता इस बार सरकार बदलना चाहती है. इसलिए शाहाबाद का क्षेत्र हो, सारण का क्षेत्र हो, पटना का क्षेत्र हो या तिरहुत-मिथिला का क्षेत्र ही क्यों ना हो. हर जगह स्थिति 2020 से भी बेहतर होगी.''- मृत्युंजय तिवारी, आरजेडी प्रवक्ता
2020 के आंकड़ों को देखें तो बीजेपी के पास अभी 32 सीटें हैं, जबकि जदयू के पास 23 विधानसभा की सीटें हैं. 2020 में वीआईपी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें से 3 विधायक बीजेपी में शामिल हो गये थे. वहीं 2020 में राजद ने 42 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि कांग्रेस ने 8 सीटों पर, माले ने 7 सीटों पर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने दो सीटों पर और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी दो सीटों पर कब्जा जमाया था.

NDA को कहां-कहां जीत मिली? : 6 नवंबर को पहले चरण में जिन सीटों पर चुनाव होने हैं उसमें से कौन सी सीट पर किस पार्टी ने कब्जा जमाया था आइये उसके बारे में बताते हैं. बीजेपी के उम्मीदवारों ने सहरसा, दरभंगा, हायाघाट, केवटी, जाले, औराई, बरूराज, पारू, बरौली, गोपालगंज, दरौंदा, तरैया, गोरिया कोठी, छपरा, अमनौर, हाजीपुर, लालगंज, पातेपुर, मोहद्दीनगर, रोसड़ा, बछवारा, बेगूसराय, मुंगेर, लखीसराय, बिहार शरीफ, बाढ़, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, बड़हरा और आरा में कब्जा जमाया था.
इसके अलावा जेडीयू ने आलमनगर, बिहारीगंज, सोनबरसा (सुरक्षित), कुशेश्वरस्थान (सुरक्षित), बेनीपुर, बहादुरपुर, सकरा (सुरक्षित), कुचायकोट, भोरे (सुरक्षित), वैशाली, कल्याणपुर (सुरक्षित), वारिस नगर, सराय रंजन, बेलदौर, परबत्ता, तारापुर, बरबीघा, अस्थावां, राजगीर (सुरक्षित), हिलसा, नालंदा और हरनौत सीट पर कब्जा जमाया था.
गौड़ाबौराम, अलीनगर, बोचहां (सुरक्षित) और साहिबगंज से वीआईपी के विधायक चुनकर आए थे. इसमें से बोचहां को छोड़कर तीन विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गये थे. बोचहां में उपचुनाव हुआ था, जिसपर आरजेडी के उम्मीदवार की जीत हुई थी. इस बार वीआईपी महागठबंधन में है.
महागठबंधन का कहां-कहां हुआ था कब्जा? : अब बात महागठबंधन की करें तो आरजेडी ने सिंघेश्वर (सुरक्षित), हथुआ, मधेपुरा, सिमरी बख्तियारपुर, दरभंगा ग्रामीण, गायघाट, कुढ़नी, मीनापुर, कांटी, बैकुंठपुर, सिवान, रघुनाथपुर, बड़हरिया, एकमा, बनियापुर, मढ़ौरा, गड़खा (सुरक्षित), परसा, सोनपुर, महुआ, राघोपुर, महनार, चेरिया बरियारपुर, साहिबपुर कमाल, अलौली (सुरक्षित), सूर्यगढ़ा, शेखपुरा, इस्लामपुर, मोकामा, बख्तियारपुर, फतुहा, दानापुर, मनेर, मसौढ़ी (सुरक्षित), संदेश, जगदीशपुर, ब्रह्मपुर, शाहपुर, समस्तीपुर, उजियारपुर, मोरवा और हसनपुर में जीत हासिल की थी.
कांग्रेस के खाते में मुजफ्फरपुर, महाराजगंज, राजापाकर (सुरक्षित), खगड़िया, जमालपुर, बिक्रम, बक्सर और राजपुर (सुरक्षित) सीट आयी थी. इसके अलावा माले को दरौली, फुलवारी शरीफ (सुरक्षित) पालीगंज, अगियांव (सुरक्षित), डुमरांव में जीत हासिल हुई थी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को तेघरा और बखरी में जीत मिली थी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने मांझी और बिभूतिपुर में कब्जा जमाया था. जबकि लोजपा ने एक मात्र सीट मटिहानी में जीत दर्ज की. (बाद में लोजपा के विधायक जेडीयू में शामिल हो गये.
छोटे खिलाड़ियों से लड़ाई बनी दिलचस्प : अगर आंकड़े की बाजीगरी को छोड़ दें तो बिहार विधानसभा के उपचुनाव में एनडीए ने शाहाबाद के इलाके में सीट जीती है, उससे एनडीए के नेताओं का उत्साह बढ़ा हुआ है, लेकिन लोकसभा चुनाव में शाहाबाद में एनडीए का प्रदर्शन बहुत खराब रहा. सभी सीटें एनडीए हार गया. इससे महागठबंधन का मनोबल बढ़ा हुआ है. ऐसे में इस बार लड़ाई दिलचस्प बन गई है. आमने-सामने की लड़ाई एनडीए और महागठबंधन की बीच है लेकिन कई छोटे खिलाड़ियों के मैदान में होने से यह देखना दिलचस्प हो गया है कि पहले चरण के 121 विधानसभा सीटों में पलड़ा किसका भारी रहता है.
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