पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए और महागठबंधन की ओर से सियासी पिच पर चालें चलनी शुरू हो गई है. वहीं, गठबंधन की पॉलिटिक्स में वीआईपी चीफ मुकेश सहनी इन दिनों 'राजनीति के हॉट केक' बने हुए हैं. वैसे तो वह इंडिया गठबंधन यानी महागठबंधन के सहयोगी हैं लेकिन इसके बावजूद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने एनडीए में उनके शामिल होने की संभावना जताई है. उन्होंने नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारा 'सन ऑफ मल्लाह' की तरफ ही था. जिसके बाद फिर चर्चा का बाजार गर्म हो गया.
क्या बोले बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष?: असल में महागठबंधन की बैठक से एक दिन पहले बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने दावा किया था कि विपक्षी गठबंधन में टूट तय है. उन्होंने किसी का नाम लिए बैगर कहा, 'महागठबंधन में से एक दल एनडीए के संपर्क में है. सहमति बनी तो उस दल को एनडीए में एंट्री मिल सकती है'. वहीं उससे पहले मंगलवार को उन्होंने कहा था, 'वीआईपी को सम्मान नहीं मिला तो वह एनडीए में आ सकता है'. डॉ. जायसवाल ने ये भी कहा कि बिहार में सहनी समाज प्रभावी वोटर है.

क्या पाला बदलेंगे मुकेश सहनी?: विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी के फिर से बीजेपी के साथ जाने की चर्चा शुरू हो गई है. खबर है कि महाराष्ट्र बीजेपी के एक बड़े नेता से संपर्क साधा गया है. सूत्र बताते हैं कि बीजेपी बिहार में गठबंधन के लिए उनको केंद्रीय राजनीति में 'बड़े पद' का भी ऑफर दे रही है. हालांकि इस गहमा-गहमी के बीच गुरुवार को आरजेडी दफ्तर में आयोजित महागठबंधन की बैठक में सहनी भी शामिल हुए.
'राजनीति में कुछ भी संभव': वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय के मुताबिक मुकेश सहनी बिहार की राजनीति के वैसे नेता बन गए हैं, जिनका सभी दलों के बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी अच्छे संबंध हैं, जबकि आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से उनके रिश्ते जगजाहिर हैं.

"जब मुकेश सहनी एनडीए में थे, तब प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में मुकेश सहनी को अपना मित्र तक कहा था. 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए उनको अमित शाह की हरी झंडी के बाद ही एंट्री मिली थी. देखिये मुकेश सहनी राजनीति में कब कहां जाएंगे, यह कहा नहीं जा सकता है. वैसे भी राजनीति संभावनाओं का खेल है."- अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
बीजेपी से राजनीतिक जीवन की शुरुआत: 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से मशहूर मुकेश सहनी काफी कम समय में बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाई है. मल्लाहों के हक की आवाज उठाकर उन्होंने अपनी राजनीति शुरु की थी. 2013 में उन्होंने बीजेपी में शामिल होकर 2014 लोकसभा के चुनाव और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जमकर प्रचार किया.

2018 में बनाई अपनी पार्टी: हालांकि निषाद आरक्षण की मांग के सवाल पर मुकेश सहनी की बीजेपी से दूरी बढ़ने लगी और अपनी राह अलग कर ली. पहले निषाद विकास मंच की स्थापना की और बाद में उन्होंने खुद का राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया. आखिरकार साल 2018 में उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी का गठन किया.

निषादों के सबसे बड़े नेता हैं सहनी: मुकेश सहनी 'निषाद आरक्षण' को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं. अनुसूचित जाति में निषादों को शामिल कर उन्हें आरक्षण के दायरे में लाने की लड़ाई वह लड़ रहे हैं. कई सार्वजनिक मंचों से चुके हैं कि जो निषादों के आरक्षण की बात करेगा, उसके समर्थन में रहेंगे चाहे गठबंधन कोई भी हो. यही वजह है कि आज वह बिहार में निषादों के सबसे बड़े नेता माने जाता हैं.
2020 विधानसभा में एनडीए में वापसी: 2019 का लोकसभा चुनाव आरजेडी के साथ लड़ने वाले मुकेश सहनी 2020 बिहार विधानसभा में बीजेपी के साथ चले गए. चुनाव की घोषणा के बाद पटना के मौर्या होटल में महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही थी, उसी बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस से मुकेश सहनी ने उठकर आरजेडी पर आरोप लगाया कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है और उनकी पीठ में खंजर घोंपा गया है. पत्रकार वार्ता को छोड़कर निकल गए और बाद में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा.

बीजेपी से गठबंधन के बाद मिली 11 सीट: 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी के दल के रूप मे मुकेश सहनी की पार्टी (वीआईपी) को बीजेपी ने अपने हिस्से से 11 सीटें दी. इनमें ब्रह्मपुर, बोचहां, गौरा बोराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर और बहादुरगंज विधानसभा सीट शामिल है.

4 सीटों पर मिली जीत: 2020 विधानसभा चुनाव में वीआईपी का प्रदर्शन संतोषजनक रहा था. विकासशील इंसान पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की. जिन चार सीटों पर जीत मिली थी, उनमें मुजफ्फरपुर की बोचहां और साहिबगंज और दरभंगा जिला गौरा बोराम और अलीनगर की सीट शामिल थी. सिमरी बख्तियारपुर सीट पर मुकेश सहनी ने खुद चुनाव लड़ा था. हालांकि उनको हार का सामना करना पड़ा.

ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से वीआईपी ने जयराज चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया था. इस सीट पर मुकेश सहनी के उम्मीदवार की हार हुई थी, उनको 30,482 वोट मिला था. आरजेडी के शंभूनाथ यादव विजयी हुए थे, उन्हें 90176 वोट प्राप्त हुआ था. एलजेपी के हुलास पांडे को 39035 वोट प्राप्त हुआ था.
बोचहां विधानसभा सीट पर मुकेश सहनी की पार्टी ने मुसाफिर पासवान को उम्मीदवार बनाया था. वह विजयी रहे थे, उनको 77, 837 वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर आरजेडी के रमई राम थे, उन्हें 66569 वोट प्राप्त हुआ.
गौरा बोराम विधानसभा सीट से वीआईपी की स्वर्णा सिंह को जीत हुई थी, उनको 59538 वोट मिले. वहीं दूसरे नंबर पर आरेजडी के अफजल अली खान थे, जिन्हें 52, 258 वोट प्राप्त हुआ था.
सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा सीट से खुद मुकेश सहनी ने चुनाव लड़ा था. हालांकि उनको आरजेडी कैंडिडेट युसूफ सलाउद्दीन के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. युसूफ को जहां 75,684 मत मिले, वहीं मुकेश साहनी को 73,925 वोट प्राप्त हुए.

सुगौली विधानसभा सीट पर मुकेश सहनी की पार्टी ने रामचंद्र सहनी को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन उन्हें आरजेडी के शशि भूषण सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा. शशि भूषण सिंह को 65,267, जबकि रामचंद्र सहनी को 61820 वोट प्राप्त हुए.
मधुबनी विधानसभा सीट से मुकेश सहनी की पार्टी ने सुमन कुमार महासेठ को अपना उम्मीदवार बनाया. सुमन कुमार महासेठ को आरजेडी के समीर कुमार महासेठ ने शिकस्त दी थी. समीर को 71,332 और सुमन कुमार को 64, 518 मत मिले.
साहेबगंज विधानसभा सीट पर वीआईपी कैंडिडेट राजू कुमार सिंह को जीत मिली, जबकि आरजेडी के राम विचार राय दूसरे स्थान पर रहे थे. राजू सिंह को जहां 81,203 वोट मिले, वहीं रामविचार को 65,870 वोट मिले थे.
बलरामपुर विधानसभा सीट पर मुकेश सहनी की पार्टी ने वरुण कुमार झा को अपना उम्मीदवार बनाया था. उनको सीपीआईएमएल के महबूब आलम के हाथों हार का सामना करना पड़ा. महबूब आलम को 104489 वोट प्राप्त हुआ, जबकि वरुण कुमार झा को महज 50892 वोट ही मिले.
अलीनगर विधानसभा सीट पर वीआईपी से मिश्री लाल यादव को जीत मिली थी. उन्होंने आरजेडी के विनोद मिश्रा को हराया था. मिश्रीलाल को 61082 और विनोद को 57981 वोट मिले थे.

बनियापुर विधानसभा सीट से मुकेश सहनी की पार्टी ने वीरेंद्र कुमार ओझा को अपना उम्मीदवार बनाया था. हालांकि उनको आरजेडी के केदारनाथ सिंह से शिकस्त मिली. केदारनाथ को 65194 वोट, जबकि वीरेंद्र को 37405 वोट प्राप्त हुआ.
बहादुरगंज विधानसभा सीट से मुकेश सहनी ने अपना पार्टी से लखनलाल पंडित को अपना उम्मीदवार बनाया. एआईएमआईएम के मोहम्मद अंजार नईमी ने लखन लाल पंडित को चुनाव में मात दी. अंजार को 85855 वोट मिले, जबकि लखन लाल पंडित को 40,640 वोट प्राप्त हुआ.
बिहार सरकार में मंत्री बने सहनी: 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही मुकेश सहनी सिमरी बख्तियारपुर सीट से विधानसभा चुनाव हार गए लेकिन उनको मंत्री बनाया गया. उनको नीतीश सरकार में पशुपालन एवं मत्स्य पालन विभाग की जिम्मेदारी मिली. बीजेपी कोटे से उनको बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया गया था.

2024 लोकसभा चुनाव में आरजेडी से गठजोड़: 2024 लोकसभा चुनाव से पहले 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ था. सहनी एनडीए में रहने के बावजूद वहां पर चुनाव लड़ने गए. इस वजह से बीजेपी के साथ उनका संबंध खराब होने लगा और उसी साल वह एनडीए से अलग हो गए. बाद में उनकी पार्टी के सभी विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं लोकसभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए. आरजेडी ने अपने कोटे से गोपालगंज, मोतिहारी और झंझारपुर की सीट दी लेकिन सभी सीटों पर हार मिली.
गोपालगंज लोकसभा सीट (सुरक्षित) पर मुकेश सहनी ने चंचल पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया था. जेडीयू के आलोक कुमार सुमन ने वीआईपी कैंडिडेट को 127180 वोट से पराजित कर दिया. आलोक सुमन को 511866 वोट मिले, जबकि चंचल पासवान को 384686 वोट मिले थे.

मोतिहारी लोकसभा सीट पर विकासशील इंसान पार्टी ने राजेश कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया. हालांकि बीजेपी के राधा मोहन सिंह ने उनको 88000 से ज्यादा मतों से हरा दिया. राधामोहन को 542193 वोट मिले, जबकि राजेश कुमार को 453906 वोट प्राप्त हुए.
झंझारपुर लोकसभा सीट से वीआईपी ने सुमन कुमार महासेठ को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन उनको जेडीयू के रामप्रीत मंडल के हाथों हार का सामना करना पड़ा. रामप्रीत को 533032 वोट प्राप्त हुए, जबकि सुमन कुमार महासेठ को 348863 वोट प्राप्त हुए.
मुकेश सहनी की अहमियत क्यों?: बिहार में अति पिछड़ी जाति में निषाद और मल्लाह की कुल 17 जाति-उपजाति है, जिसकी कुल आबादी 6 प्रतिशत के करीब है. इन जातियों का राजनीतिक प्रभाव गंगा के पार यानी उत्तर बिहार में है. मुजफ्फरपुर, दरभंगा सहरसा, सुपौल, खगड़िया, अररिया में उनकी भूमिका राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है. यही वजह है कि बीजेपी और आरजेडी मुकेश सहनी को अपने साथ रखना चाहते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी कहते हैं, 'बिहार की राजनीति में कैप्टन जय नारायण निषाद पहले निषादों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. उनके बाद मुकेश सहनी ही बिहार की राजनीति में निषाद या मल्लाह के सबसे बड़े नेता हैं. निषादों के समूह के बड़े वोट बैंक के कारण बिहार की राजनीति में मुकेश सहनी को बिहार का हर एक राजनीतिक गठबंधन अपने पास रखना चाहता है.'

सहनी पर क्यों डोरे डाल रही है बीजेपी?: वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार के शासन में आने के बाद बिहार के राजनीति में अतिपिछड़ा वोट बैंक का महत्व बढ़ गया है. अति पिछड़ों की आबादी में एक बड़ा चंक मल्लाह जाति का है. उसी जाति से मुकेश सहनी आते हैं. कैप्टन जनरल निषाद के बाद मुकेश सहनी इस समाज के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं. ऐसे में बीजेपी चाहती है कि वह उनकी तरफ आ जाएं.
"इस वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी ने निषाद समुदाय के कई बड़े नेताओं को अपने पार्टी में शामिल भी करवाया और मंत्री भी बनाया है, बावजूद इसके अभी भी मुकेश सहनी के साथ निषाद और मल्लाह वोट बैंक जुड़ा हुआ है. निषादों के वोट बैंक को लेकर ही सभी राजनीतिक गठबंधन चाहते हैं कि मुकेश सहनी उनके साथ आ जाएं."- सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
क्या चाहते हैं मुकेश सहनी?: वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं कि मुकेश सहनी की गिनती बिहार की राजनीति में बड़े बार्गेनर के रूप में की जाती है. वह अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति करते हैं. मुकेश सहनी की चाहत बिहार के उपमुख्यमंत्री पद को लेकर है, जो एनडीए के साथ आने पर संभव नहीं दिख रहा है लेकिन फिर भी वह भविष्य के फायदे को देखकर ही कोई फैसला लेंगे.

"एनडीए में पांच दलों के बीच सीटों के बंटवारे का पेंच अभी तक नहीं सुलझा पाया है. ऐसे में छठे सहयोगी दल को लाकर और ज्यादा परेशानी होगी. दूसरी तरफ महागठबंधन में सीटों के तालमेल में मुकेश साहनी को 20 से 25 सीट आसानी से मिल सकती है. यही कारण है कि राजनीतिक दबाव बनाने के लिए भी इस तरीके का मुद्दा बनाया जाता है कि वह दूसरे गठबंधन में जा रहे हैं."- अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
एनडीए में जाने की कितनी संभावना?: वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय का मानना है कि मुकेश सहनी को बिहार के राजनीति के दोनों गठबंधन इंडिया (महागठबंधन) और एनडीए से खट्टा-मीठा अनुभव मिल चुका है. 2025 चुनाव से पहले एक बार फिर से वह राजनीतिक खेल खेलने की तैयारी में हैं. इस बार देखना होगा कि उनके राजनीतिक सौदे को खरीदने के लिए कौन तैयार है? पिछली बार भी अमित शाह के बुलावे पर वह एनडीए में शामिल हुए थे. इस बार भी बीजेपी के बड़े नेताओं के संपर्क में मुकेश सहनी के आने की चर्चा है.
क्या बोले मुकेश सहनी?: एनडीए में जाने की किसी भी संभावना से इंकार करते हुए मुकेश सहनी ने कहा कि वह इंडिया गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े हैं. तेजस्वी यादव की अगुवाई में इस बार महागठबंधन की सरकार बनेगी. उन्होंने चिराग पासवान और जीतनराम मांझी को भी नसीहत देते हुए कहा कि वे दोनों कम सीट पर बीजेपी के साथ समझौता नहीं करें, क्योंकि रणनीति के तहत बीजेपी मेरा नाम लेकर उन दोनों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है.
भाजपा वालों कान खोलकर सुन लो!
— Vikassheel Insaan Party (@vippartyindia) April 17, 2025
निषाद समाज अब झुकने वाला नहीं है, अगर आरक्षण नहीं दोगे तो निषाद समाज तुम्हारी छाती पर चढ़कर आरक्षण लेगा! pic.twitter.com/FAZBchyxOD
महागठबंधन की बैठक में हुए शामिल?: तमाम कयासबाजी के बीच गुरुवार को आरजेडी कार्यालय में आयोजित महागठबंधन की बैठक में मुकेश सहनी भी शामिल हुए. मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने जोर देकर कहा कि वह विपक्षी गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े हैं. इस दौरान उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार पर जोरदार हमला भी बोला.
राष्ट्रीय जनता दल के पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में श्री @yadavtejashwi जी की उपस्थिति में महागठबंधन के सभी घटक दलों के वरिष्ठ नेताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक:#TejashwiYadav #तेजस्वी_सरकार #RJD pic.twitter.com/FUmaipioEw
— Rashtriya Janata Dal (@RJDforIndia) April 17, 2025
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