पटना : बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है. इससे पहले हर पार्टियां वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने की जुगत लगा रही है. इन सबके बीच एक बड़ा सवाल उठता है कि, क्या बिहार में मतदाताओं का ऐसा वर्ग तैयार हो सकता है जो सिर्फ जाति के आधार पर वोट न करें?
जाति वाली राजनीति से ऊपर उठेगा बिहार ? : यह सवाल इसलिए है क्योंकि हर कोई जानता है कि बिहार जैसे राज्य में हमेशा से ही जाति वाली राजनीति होती रहती है. पर कई वर्ग ऐसा भी है जो इससे ऊपर उठकर सोचता है. उसमें युवा और महिलाएं सबसे आगे हैं. चलिए सबसे पहले बात युवाओं की करते हैं, वह भी उनकी जो पहली बार विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनी भागीदारी निभाएंगे.
फर्स्ट टाईम वोटर : चुनाव आयोग ने जो आंकड़ा जारी किया है उसके अनुसार, करीब 8 लाख 18-19 आयु वर्ग के फर्स्ट टाईम वोटर हैं. इनका रुझान किस तरह रहता है यह बड़ा फैक्टर होगा. ऐसा नहीं है कि ये अपनी जाति से अनजान नहीं हैं. लेकिन आज अपने भविष्य, रोजगार और शिक्षा को लेकर जागरूक और चिंतित हैं.
ऐसे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि ''2025 में जाति का चक्र टूटेगा कि नहीं, यह तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि नए वोटर की ताकत को देखकर राजनीतिक दल उम्मीदवारों के चयन को लेकर सजग जरूर होगी. जिसकी बात अभी से बिहार की राजनीति में हो रही है. हालांकि सिर्फ चर्चा से यह संभव नहीं है. मतदाताओं को भी यह सोचना होगा कि क्या सिर्फ जाति के कारण किसी भी पार्टी से बंधे रहना सही है.''

बाढ़ की हर्षिता कुमारी पटना में निबंधन कार्यालय में भविष्य की योजनाओं को लेकर पहुंची थी. हर्षिता के अनुसार नौकरी, रोजगार और अच्छी सरकार देने का जो वादा करेगा वोट हम उसी को देंगे. हर्षिता जैसी युवा जो फर्स्ट टाइम वोटर हैं उसके लिए कास्ट पीछे रह गया है. यानी की कास्ट के चक्रव्यूह को तोड़कर नौकरी रोजगार के लिए वोट डालने की बात कह रही हैं.

''कास्ट तो बिहार में बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन कई चुनाव में मतदाताओं ने इससे से ऊपर उठकर भी वोट डाला है. 2005 और 2014 में जब बिहार के लोगों की उम्मीद जगी तब उन्होंने कास्ट के चक्रव्यूह को तोड़ा था. कास्ट का चक्रव्यूह तभी टूटेगा जब यूथ और आधी आबादी को लगेगा कि उनके लिए वाकई कोई भी दल कुछ करने वाला है. चाहे नौकरी रोजगार की बात हो सुरक्षा की बात हो महिला सशक्तिकरण की बात हो.''- विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, एएन सिन्हा शोध संस्थान

एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के राजीव कुमार के अनुसार बिहार में युवाओं पर जो शोध किए गए हैं उसमें यह बात भी सामने आई है कि युवा वर्ग नौकरी और रोजगार को लेकर भी वोटिंग करते हैं. राजीव कुमार यह भी कहते हैं बिहार के लिए एक चिंता की बात यह भी है चुनाव आयोग की एक रिपोर्ट में बिहार के केवल 19 प्रतिशत युवा ही चुनाव आयोग में इनरोल कराया था जबकि राष्ट्रीय औसत 30% के करीब है.
युवाओं को अपनी ओर लाने की कोशिश : वैसे गौर से देखें तो युवाओं पर फोकस हर पार्टी कर रही है. सत्ताधारी जेडीयू और बीजेपी का कहना है कि हमने लाखों युवाओं को रोजगार दिया. उनके लिए कई योजनाएं चल रही है. पर इस वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश विपक्ष की ओर से हो रही है.
तेजस्वी यादव अपने 17 महीने के कार्यकाल में किए गए कामों का बखान करते रहते हैं. वहीं जन सुराज के प्रशांत किशोर बिहार में युवाओं के लिए रोजगार को मुद्दा बनाकर जिले-जिले में पदयात्रा कर चुके हैं. पर सवाल उठता है कि युवा मतदाता खासकर फर्स्ट टाइम वोटर किसके पक्ष में मतदान करते हैं यह देखने वाली बात होगी.
''तेजस्वी यादव युवा हैं. उन्होंने 17 महीने के अपने कार्यकाल में नौकरी, रोजगार जिस प्रकार से दिया. महिलाओं के लिए उन्होंने जो घोषणा की है माई बहिन मान योजना के तहत ढाई हजार रुपए देने की तो युवा और आधी आबादी उन्हीं के तरफ देख रहे हैं.''- एजाज अहमद, आरजेडी प्रवक्ता
प्रदेश में पौने चार करोड़ महिला मतदाता : अब बात आधी आबादी यानी महिला वोटर की करते हैं. प्रदेश में 3 करोड़ 72 लाख 57477 महिला वोटर हैं. कहा जाता है कि यह वोट बैंक जिसके साथ जाता है, उसकी सरकार बनती है. तभी तो हर पार्टी इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती रहती है.

आधी आबादी, वोट में बड़ी भागीदारी : अगर पिछले चुनावों पर भी नजर डालें तो देखा गया है कि, कई बार महिलाओं ने यह साबित कर दिखाया है उनकी भागीदारी लोकतंत्र में काफी अधिक होती है. अगर वोटिंग वह ज्यादा की और अपने मुद्दे पर की तो कभी भी किसी की बाजी पलट सकती है.

''महिलाओं का वोट तो नीतीश कुमार को ही मिलता है और मिलेगा, क्योंकि महिलाओं के लिए नीतीश कुमार भगवान हैं. अब गरीब घर की महिलाएं भी कहती हैं कि मैडम अब हम सब्जी भी खाते हैं, दाल-भात और मछली भी खाते हैं.''- शीला मंडल, परिवहन मंत्री, बिहार सरकार

बिहार में कई बार टूटे हैं कास्ट के चक्रव्यूह : अगर फ्लैशबैक में चलें तो बिहार में 2005 में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर आधी आबादी ने कास्ट के बंधन को तोड़कर वोट किया था. एनडीए की सरकार बनी थी. 2006 में नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए पंचायत में 50% आरक्षण देने का बड़ा फैसला लिया था. साइकिल योजना, पोशाक योजना भी शुरू की थी.

इस सब का असर यह हुआ कि 2010 में भी महिलाओं ने नीतीश कुमार को बढ़ चढ़ कर वोट किया और एनडीए ने रिकॉर्ड 243 में से 206 सीटों कब्जा जमाया. राजद 22 सीटों पर सिमट गई. 2014 में मोदी लहर में 2 करोड़ नौकरी का जो वादा किया गया उसके कारण युवाओं ने बढ़-कर कर बीजेपी और एनडीए को वोट किया. यही कारण है कि बिहार में भाजपा, नीतीश के बिना चुनाव लड़ी और सबसे अधिक 29% वोट लायी और 22 सीटों पर जीत भी मिली. सहयोगी दलों को भी लाभ मिला.
2019 लोकसभा चुनाव में भी एनडीए को 40 में से 39 सीट पर जीत मिली थी. बीजेपी नीतीश कुमार के साथ चुनाव लड़ी, जिसका लाभ मिला. हालांकि 2020 विधानसभा चुनाव में स्थितियां बदल गई. तेजस्वी यादव ने नौकरी, रोजगार का जो वादा किया उसका असर दिखा. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई.
आयु वर्ग | कुल वोटर |
18 से 19 | 8 लाख 8857 |
20 से 29 | 1 करोड़ 55 लाख 90481 |
30 से 39 | 2 करोड़ 4 लाख 24 हजार 920 |
40 से 49 | 1 करोड़ 69 लाख 26 हजार 86 |
50 से 59 | 1 करोड़ 14 लाख 26 हजार 964 |
60 से 69 | 72 लाख 72 हजार 135 |
70 से 79 | 39 लाख 65 हजार 963 |
80 प्लस | 16 लाख 7 हजार 527 |
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