नई दिल्लीः दिल्ली की राजनीति एक बार फिर झुग्गियों के इर्द-गिर्द घूम रही है. केजरीवाल का राजनीतिक सफर झुग्गियों से शुरू हुआ था, अब सत्ता में वापसी के लिए उनकी पार्टी उसी रास्ते पर लौट आई है. बता दें कि बीते दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल बाद सत्ता में जोरदार वापसी की. केजरीवाल लगातार तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन इस बार वह खुद अपनी ही सीट हार गए. जानिए, अब उनकी रणनीति क्या है
दरअसल, राजनीति में आम आदमी के नाम पर अपनी पहचान बनाने वाले अरविंद केजरीवाल ने नौकरी छोड़ने के बाद दिल्ली के सुंदर नगर की झुग्गियों से जनसेवा का रास्ता चुना था. अब जब आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता से बाहर होना पड़ा है तो एक बार फिर वही झुग्गियां आम आदमी पार्टी के राजनीतिक संघर्ष की अगली जमीन बन गई हैं. राजधानी दिल्ली में लगातार झुग्गी बस्तियों को तोड़े जाने के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए इसे गरीबों के साथ अन्याय बताया है.

झुग्गी बस्तियों से फिर सत्ता पाने की तैयारी: आम आदमी पार्टी झुग्गियां को अपनी जमीन बनाकर सत्ता में वापसी की तैयारी के लिए अभी से जुट गई है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिन्होंने भाजपा को वोट दिया और उनकी झुग्गी तोड़ दी गई है. उनका पूरा परिवार अब भाजपा को शायद ही वोट देगा. आम आदमी पार्टी उनके साथ खड़ी होकर मौके को भुनाने का पूरा प्रयास करेगी.
आम आदमी पार्टी का पार्टी का दावा है कि भाजपा का ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ का वादा झूठा साबित हुआ है. ऐसे में अब बेघर लोगों की आवाज को उठाने के लिए आप 29 जून को जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन करेगी. 'चलो जंतर मंतर' अभियान के तहत पार्टी कार्यकर्ता और झुग्गीवासी मिलकर भाजपा की नीतियों के खिलाफ पुरजोर विरोध दर्ज कराएंगे.

झुग्गियों से जन आंदोलन तक, फिर दिल्ली सीएम तक का सफर: अरविंद केजरीवाल ने 1995 में यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आईआरएस अधिकारी बने थे. वह इनकम टैक्स में संयुक्त आयुक्त के पद पर लंबे समय तक कार्यरत रहे. अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद दिल्ली की सुंदर नगर की झुग्गियों में 'परिवर्तन' नामक एनजीओ के जरिए लोगों की मदद का काम शुरू किया. झुग्गीवासियों के लिए राशन कार्ड, पानी कनेक्शन, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी बुनियादी जरूरतें दिलवाने के काम किया करते थे. वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे.

इसी जनसेवा के काम के दौरान साल 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले जन लोकपाल आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. दिल्ली के रामलीला मैदान में उमड़ी जनता की भीड़ से संदेश आया कि देश बदलाव चाहता है. इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना की और वर्ष 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में धमाकेदार एंट्री की. इसमें कच्ची कॉलोनी, झुग्गीवासी समेत दिल्ली की अन्य वर्ग के लोगों ने पार्टी को वोट किया.
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 10 वर्षों तक सरकार चलाई. मुफ्त बिजली-पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा व मोहल्ला क्लीनिक जैसे सुविधाओं पर पार्टी को मजबूत जनसमर्थन पाया, लेकिन फरवरी 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा. 27 साल बाद भाजपा सत्ता में आई. अब पार्टी फिर से अपनी जड़ों यानी झुग्गियों की ओर लौट रही है. जड़ों को मजबूत करने का काम कर रही है.

राजनीति में क्यों अहम हो गई है झुग्गियों की जमीन? दिल्ली की आबादी में झुग्गी बस्तियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. आंकड़े के मुताबिक, राजधानी में करीब 40 लाख मतदाता झुग्गियों में रहते हैं. दिल्ली में लगभग 1700 कच्ची कॉलोनियां व झुग्गी बस्तियां हैं. ये लोग सफाईकर्मी, घरेलू कामगार, दिहाड़ी मजदूर, ड्राइवर, गार्ड व असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. झुग्गियों में रहने वाले मतदाता चुनावों में निर्णायक भूमिका में रहते हैं. यही कारण है कि इनका समर्थन पाने के लिए पार्टियां योजनाएं बनाती हैं और चुनाव से पहले इनके लिए वादे करती हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को इन झुग्गियों से भारी समर्थन मिला था. अब जब भाजपा सत्ता में है और झुग्गियों पर बुलडोजर चल रहा है तो आप इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने का काम कर रही है.

पुनर्वास का संकट, जिंदगी कैसे प्रभावित हो रही: जिन झुग्गियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है. वहां के लोगों को नरेला, बवाना जैसे क्षेत्रों में भेजा जा रहा है, जो मूल स्थान से 30 से 50 किमी तक दूर हैं. झुग्गियों की महिलाएं जो आस-पास घरेलू काम करती हैं, उनकी आजीविका खतरे में आ गई है. पुरुषों को काम पर पहुंचने में वक्त व पैसे दोनों का नुकसान हो रहा है. पुरुष नौकरी के साथ सुबह खाली समय में आसपास की सोसायटियों में लोगों की गाड़ियां साफ करने का भी काम कर लेते थे. बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है, क्योंकि स्कूल व आंगनबाड़ी छूट रहे हैं.

क्या ये आंदोलन ''आप'' को फिर से दिला सकता है सत्ता ?: राजनीतिक पंडितों की राय है कि झुग्गियों का मुद्दा दिल्ली में एक भावनात्मक व सामाजिक दोनों तरह से अहम चुनावी मुद्दा पहले से ही रहा है. यदि आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाते हुए जनता की सहानुभूति बटोरती है तो यह आगामी चुनावों में उसे सत्ता में वापसी की जमीन दे सकता है. आप का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भी दिखाता है कि जब भी वह जनता के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरती है तो उसका असर पड़ता है. ऐसे में 'चलो जंतर मंतर' अभियान सिर्फ विरोध ही नहीं बल्कि सत्ता में वापसी की राजनीतिक रणनीति भी बन सकता है.

इन इलाकों में टूटी हैं सैकड़ों झुग्गियां: दिल्ली के कई इलाके जैसे मद्रासी कैंप, ओखला, ताकीनगर में हाल के दिनों में सैकड़ों झुग्गियां तोड़ी गई हैं, जिससे बड़ी संख्या में परिवार बेघर हो गए हैं. आम आदमी पार्टी का कहना है कि सभी लोगों को कोई वैकल्पिक आवास नहीं दिया गया, जबकि सरकार का दावा है कि पुनर्वास की व्यवस्था की गई है. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कहती हैं कि कोर्ट के आदेश की अवहेलना नहीं की जा सकती है, जिन इलाकों में अतिक्रमण हटाया गया है, वह सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक थे. सरकार का दावा है कि प्रभावित लोगों को नरेला जैसे इलाकों में पुनर्वास के लिए विकल्प दिया गया है. लेकिन, आप का कहना है कि “जहां लोग रोजगार करते हैं, स्कूल जाते हैं, अस्पताल पास में हैं. वहां से उन्हें 40-50 किलोमीटर दूर भेजना कहां का इंसाफ है.

हाईकोर्ट में में क्या है स्थिति: दिल्ली हाईकोर्ट में अतिक्रमण व पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कई मामले विचाराधीन हैं. हाईकोर्ट के निर्देश पर कई जगहों पर झुग्गियां हटाई गई है. दिल्ली सरकार का तर्क है कि वह सिर्फ आदेश का पालन कर रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी का दावा है कि सरकार जानबूझकर कोर्ट से आदेश निकलवाती है, जिससे झुग्गियों को तोड़ा जा सके. पुनर्वास योजना की मौजूदगी के बावजूद उसका प्रभावी कार्यान्वयन सवालों के घेरे में है.
राजधानी में कहां कितनी हैं झुग्गियां की संख्या: अगर राजधानी दिल्ली की बात करें तो दक्षिण दिल्ली में सबसे ज्यादा करीब 65,468 झुग्गियां हैं, उसके बाद नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र करीब 64,206 झुग्गियों के साथ दूसरे नंबर आता है. वहीं, तीसरे स्थान पर चांदनी चौक 51,958 झुग्गियों और चौथे पर पूर्वी दिल्ली में करीब 46,180 झुग्गियां हैं. इसी तरह, नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली में 29,182 व नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में करीब 24,831 झुग्गी आते हैं. जबकि पश्चिम दिल्ली में 22,363 झुग्गियों की संख्या है.

एक राजनीतिक दांव या दूरगामी सोच: अरविंद केजरीवाल की ये नई रणनीति उन्हें दिल्ली की सत्ता में वापसी करा पाएगी या नहीं, ये तो वक्त बताएगा. फिलहाल इतना जरूर है कि वे खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करना चाहते हैं जो केवल सत्ता की राजनीति नहीं करता, बल्कि जनता के असली मुद्दों के साथ खड़ा रहता है. पंजाब में केजरीवाल का डेरा और नशे के खिलाफ अभियान इसी दिशा में एक बड़ा संकेत है.
ये भी पढ़ें: