पटना : ''नीतीश कुमार ने पंचायत और नगर निकाय में मुस्लिम समुदाय के पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग को 20% आरक्षण की श्रेणी में रखा. यही कारण था कि कभी जदयू के विधायकों की संख्या 100 से ऊपर भी गई थी. 2015 में महागठबंधन की भी सरकार बनी, लेकिन 2 वर्षों के बाद नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया. उस समय से अल्पसंख्यक उनसे दूरी बनाने लगे.'' यह कहना है कभी नीतीश के करीबी रहे अली अनवर का.
वरिष्ठ पत्रकार इरशादुल हक का कहना है कि ट्रिपल तलाक हो या नागरिकता को लेकर केंद्र सरकार के द्वारा लाया गया कानून. इन दोनों विधेयकों में नीतीश कुमार और जदयू ने केंद्र सरकार का खुलकर साथ दिया. इन दोनों विधायकों में यदि जदयू केंद्र सरकार का साथ नहीं भी देती तो केंद्र सरकार इस विधेयक को पास करवा लेती, लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार का साथ दिया.

''2024 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र की सरकार नीतीश कुमार के रहमों करम पर चल रही है. केंद्र सरकार वक्फ संशोधन विधेयक पर काम कर रही है. नीतीश कुमार यदि चाहेंगे तो यह विधेयक पास नहीं हो सकता है लेकिन उनकी पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं है. यही कारण है कि 2017 के बाद इन तीन विधेयकों के कारण अल्पसंख्यक समाज धीरे-धीरे नीतीश कुमार से दूर होने लगा है."- इरशादुल हक, वरिष्ठ पत्रकार
बिहार में अल्पसंख्यक और नीतीश कुमार..: दरअसल, बिहार की राजनीति में हर वोट बैंक का अलग-अलग महत्व होता है. वैसे तो यहां जाति की राजनीति ही चलती है. पर M फैक्टर भी काफी ज्यादा असर डालता है, मतलब मुस्लिम मतदाता. पिछले 20 वर्षों से बिहार नीतीश कुमार का शासन चल रहा है. इन 20 वर्षों में नीतीश कुमार के साथ अल्पसंख्यकों ने कई मौके पर खुलकर साथ दिया. हालांकि वक्फ संसोधन विधायक के नाम पर अब अल्पसंख्यक समाज के लोगों की नाराजगी बिहार सरकार से दिखने लगी है.
नीतीश से क्यों है नाराजगी? : इमारतें सरिया पटना के पूर्व सेक्रेटरी और ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के एक्टिंग प्रेसिडेंट मौलाना अनिसुर रहमान कासमी ने बताया कि हमलोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज नहीं है. समाज में कई तरह के लोग हैं. हम लोग उनके काम से वाकिफ है. उन्होंने सभी धर्म के लोगों के लिए काम किया है.
''हम लोग उनको (नीतीश कुमार) सिर्फ यह एहसास देना चाहते हैं कि वक्फ विधेयक पर आप केंद्र सरकार के सामने अपनी बात रखिए. नीतीश कुमार हमेशा सच का साथ देते हैं. यदि वह एक बार केंद्र सरकार को इस मसले पर बोल देंगे कि यह सही नहीं हो रहा है तो उन लोगों को उम्मीद है कि यह विधेयक पास नहीं हो पाएगा.''- मौलाना अनिसुर रहमान कासमी, अध्यक्ष, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल
नीतीश कुमार से उम्मीद : मौलाना अनिसुर रहमान कासमी का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नीतीश कुमार से यह उम्मीद करती है कि इस मसले पर नीतीश कुमार बातचीत करने के लिए उनको समय दें. वे लोग जाकर उन्हें बताएंगे कि मुस्लिम संगठन इस बिल का विरोध क्यों कर रही है. जदयू की नाराजगी पर मौलाना अनिसुर रहमान कासमी का कहना था कि जदयू कोटा के केंद्रीय मंत्री ने जिस तरीके से इस बिल के समर्थन में बयान दिया है इस बात का उन लोगों को तकलीफ है.

''नीतीश कुमार ने मुसलमान के लिए बहुत काम किया है. पूरे मुल्क का मुस्लिम समाज उम्मीद लगाए हुए है कि वह सच का और हक का साथ देंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस चीज को समझ लेते हैं उसके हक में वह खड़े हो जाते हैं. मुसलमान नीतीश कुमार को अपना दुश्मन नहीं मानता है, लेकिन उनके कुछ नेता इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं.''- मौलाना अनिसुर रहमान कासमी, अध्यक्ष, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल
'खुदा की जमीन पर सरकार की नजर' : नीतीश कुमार के कभी करीबी रहे पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में बताया कि वक्फ की जमीन खुदा के नाम पर डोनेट की जाती है. डोनेट करने वाला आदमी भी यदि बाद में चाहेगा तो भी वह जमीन वापस नहीं ले सकता. अभी पूरे देश में जमीन की कीमत बढ़ गई है. इसलिए कॉरपोरेट जगत की नजर वक्फ की जमीन पर है. दान की गई जमीन मजदूर विधवा महिलाओं अस्पतालों एवं मजबूर लोगों के लिए की जाती है. ये हमारे मजहब की खुदा की दौलत है.

''वक्फ में कहीं-कहीं खामियां है, जिसे संशोधन की जरूरत है जिलाधिकारी राज्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं. हमलोगों को अंदेशा है कि कलेक्टर के जरिए सरकार उनकी संपत्ति पर भविष्य में कब्जा कर सकती है. मैं राज्यसभा का सांसद भी रह चुका हूं और कई कमेटियों का सदस्य भी रह चुके हैं. इस बिल की कमेटी के सामने अपनी बात रखना चाहते थे, लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई.''- अली अनवर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पसमांदा मुस्लिम महाज
मुसलमान में मन में डर : वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद ने बताया कि बिहार के मुसलमान की नाराजगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ नहीं है. मुसलमान के मन में यह नाराजगी है कि वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर उनके पक्ष में जदयू ने आवाज नहीं उठाई. अन्य राजनीतिक दल कांग्रेस, राजद, सपा राजनीतिक दल खुलकर इस बिल के खिलाफ बोल रहे हैं. वहीं जदयू के कुछ नेता इस बिल के समर्थन में भी बयान दिए हैं.
नीतीश कुमार ने इस विधेयक के बारे में अब तक एक शब्द भी बयान नहीं दिया उनके दिल में इस विधेयक को लेकर क्या है उन्होंने अपना पत्ता नहीं खोला. मुस्लिम संगठन के लोग यही चाहते हैं कि इस विधेयक को लेकर नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है वह अपना रुख स्पष्ट करें.
जदयू को हो सकता है नुकसान : अब बात करते हैं राजनीतिक नफा नुकसान की. वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद का मानना है कि इसी साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. यही कारण है कि सबसे ज्यादा इस बिल को लेकर बिहार में सियासत हो रही है. कुछ राजनीतिक दल इसे चुनाव से पहले एक मुद्दा बनाना चाह रहे हैं. यदि यह मुद्दा इलेक्शन इशू बना जाता है तो नीतीश कुमार को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
मुस्लिम मतदाता किसके साथ : बिहार में मुस्लिम मतदाता कभी कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करती थी. 1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने. इस समय पूरे देश में राम रथ यात्रा को लेकर लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से कन्याकुमारी तक रथ यात्रा निकाले हुए थे. लालू प्रसाद यादव ने बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा को रोका और उनको गिरफ्तार किया. इस एक्शन को लेकर मुसलमान का एकतरफा झुकाव लालू प्रसाद यादव के साथ हुआ और 1990 से लेकर अब तक लालू प्रसाद अपने 'माई' यानी मुस्लिम यादव समीकरण के आधार पर ही बिहार में राजनीति करते आ रहे हैं.

2005 में बिहार की कमान : 2005 में बिहार की कमान नीतीश कुमार के हाथ में आई और वह बिहार के मुख्यमंत्री बने. उस समय कब्रिस्तान की जमीन को लेकर सबसे ज्यादा बिहार में विवाद था. नीतीश कुमार ने कब्रिस्तान की घेराबंदी का फैसला किया. सरकार का मकसद था कि कब्रिस्तान की जमीन पर विवाद के चलते आए दिन दंगे जैसी स्थिति हो जाती थी. यही कारण था कि सरकार ने सभी कब्रिस्तानों की घेराबंदी का फैसला लिया.
भागलपुर दंगे की जांच : 1989 में भागलपुर में जातीय दंगा हुआ था. कहा जाता है कि इस दंगे में कई अल्पसंख्यकों को जान गंवानी पड़ी थी. नीतीश कुमार ने भागलपुर दंगे की जांच के लिए आयोग का गठन किया और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए दंगा पीड़ितों के मुआवजे देने का निर्णय किया. बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार में रहने के बावजूद अल्पसंख्यकों के मन में नीतीश कुमार के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर होने लगा.
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट आकार बढ़ा : नीतीश कुमार के 20 वर्षों की सरकार ने अल्पसंख्यकों के विकास के लिए अनेक योजनाएं चलाई. जिसका लाभ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को हुआ. इन 20 वर्षों में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट 284 गुना तक बढ़ गया. 2004-2005 में जहां अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट 3 करोड़ 53 लाख रुपया था. वहीं वित्तीय वर्ष 2025-2026 में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का बजट 1004.22 लाख करोड़ रुपए हो गया है.
अल्पसंख्यकों के लिए योजना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब से बिहार की सत्ता संभाली है, उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए अनेक योजनाओं की शुरुआत की जिसका लाभ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मिला. बिहार सरकार की तरफ से चलाई गई योजनाओं को इस ग्राफिक्स के जरिए समझिए.

जदयू के अल्पसंख्यक राज्यसभा सांसद : नीतीश कुमार ने ना सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए काम किया बल्कि कई मुस्लिम नेताओं को उन्होंने राजनीति में आगे भी बढ़ाया. 2006 से 2014 के बीच नीतीश कुमार ने पांच मुस्लिम नेताओं को राज्यसभा भेजा. जो अली अनवर आजकल उनके खिलाफ हैं, उन्हें तो 2 बार राज्यसभा भेजा.

बिहार में अल्पसंख्यकों की आबादी : बिहार में मुसलमानों की आबादी लगभग 17.7% है. मुसलमान की कुल आबादी में 73% आबादी पिछड़े अल्पसंख्यक यानी पसमांदा समाज का है. शेष 27% आबादी मुस्लिम तबके के अपर कास्ट का है.
2005 बिहार विधानसभा चुनाव का रुख : 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार अल्पसंख्यक वोटरों में बिखराव हुआ. आरजेडी से अलग होकर मुस्लिम मतदाताओं ने पहली बार नीतीश कुमार का बिहार के कई जगह में साथ दिया.
2010 बिहार विधानसभा का चुनाव : 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की. एनडीए बिहार में तीन चौथाई से अधिक सीट पर जीत दर्ज की. बीजेपी 91 और जदयू 115 सीट पर जीत दर्ज करने में सफल हुई. जदयू को अल्पसंख्यक वोटरों का पूरा साथ मिला.
2015 बिहार विधानसभा चुनाव : 2015 विधानसभा चुनाव में जदयू राजद और कांग्रेस के महागठबंधन के पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं ने मतदान किया. जबकि एनडीए को 7 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला.

2020 बिहार विधानसभा चुनाव : 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ चुनाव लड़ा. नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में एनडीए की सरकार बनी लेकिन एनडीए मात्र 125 सीटों पर की जीत दर्ज कर पाई. बीजेपी 74 और जदयू 43 सीट जीतने में कामयाब हुई. इस विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोटरों ने जदयू का साथ न देकर फिर से आरजेडी का साथ दिया. यही कारण है कि जदयू मात्र 15.40% वोट बैंक पर सिमट गई. सीमांचल में AIMIM ने भी अपने तरफ मुस्लिमों को खींचा. सीमांचल में 5 सीटों पर कब्जा जमाया.
बिहार में मुस्लिम बहुल इलाका : बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें है. जिसमें 47 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन 47 विधानसभा में मुस्लिम आबादी 20 से 45 प्रतिशत हैं. बिहार के सीमांचल के 4 जिलों किशनगंज, अररिया , कटिहार और पूर्णिया में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं.
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