अमेरिका में ₹8000 किलो मिलता है मखाना, बिहार से 150 करोड़ का होता है निर्यात, आंकड़ों से समझिए 'ट्रंप टैरिफ' का असर
आजकल चर्चा सिर्फ अमेरिकी टैरिफ को लेकर हो रही है. ऐसे में इसका असर मखाना पर कैसा पड़ेगा, विस्तार से पढ़ें अविनाश की रिपोर्ट.

Published : April 7, 2025 at 9:04 PM IST
पटना : अमेरिका सरकार की 'ट्रंप टैरिफ' से जहां एक ओर शेयर मार्केट धड़ाम हो गया है. वहीं कई व्यवसायी भी इसको लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं. बात अगर बिहार की हो तो यहां के मखाना कारोबार को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. इस मसले पर उद्योग जगत से जुड़े लोग क्या कहते हैं, इसके बारे में आपको बताएंगे लेकिन बात अमेरिका की हो रही है, तो सबसे पहले उसी की चर्चा कर लेते हैं.
अमेरिका में मखाना : कॉफेड के एमडी ऋषिकेश कश्यप बताते हैं कि, इस साल 1359 खेप अमेरिका को मखाना निर्यात किया गया है. अगर आंकड़ों की बात करें तो बिहार से डेढ़ सौ करोड़ रुपए का मखाना इस साल निर्यात किया गया है. अमेरिका में ₹8000 प्रति किलो मखाना बेचा जा रहा है, वहीं कच्चा मखाना भी ₹7000 प्रति किलो है. डॉलर में बात करें तो 92.88 डॉलर में रोस्टेड 1 किलो मखाना वहां बेचा जा रहा है.
मखाना पर 26% टैरिफ : ऐसे में साफ है कि अमेरिका में जब इसपर 26 प्रतिशत का टैरिफ लगेगा है तो इसकी कीमतों में और ज्यादा इजाफा हो जाएगा. अब सवाल उठता है कि क्या इसका असर स्थानीय किसान या व्यापारी पर पड़ेगा. इसको लेकर हमने विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से बात की. आगे बढ़ेंगे उससे पहले ग्राफिक्स के जरिए समझिए किसने क्या कहा?

'निर्यात और मुनाफा घट सकता है' : कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कमल नोपानी का कहना है अमेरिका ने 26% टैरिफ बढ़ाया है. इसका मतलब हुआ पहले ₹100 यदि कीमत होगा तो वह अब 126 रुपया हो जाएगा. स्वाभिक है इसके कारण काफी असर पड़ेगा. निर्यात घट सकता है या फिर मुनाफा घट जाएगा.
'सरकार को छूट देना होगा' : कॉफेड के एमडी ऋषिकेश कश्यप कहते हैं कि पिछले 1 साल से भी अधिक समय से कॉफेड की ओर से बड़े पैमाने पर मखाना का एक्सपोर्ट किया जा रहा है. जीपीओ, कोलकाता और अन्य स्थानों से यह निर्यात हो रहा है. अमेरिका निर्यात में डॉक्यूमेंटेशन भी बढ़ा है तो अब हम लोगों का ध्यान दूसरे देशों पर है. सरकार पर भी दबाव है. हम लोग पैकेजिंग और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की तरफ अधिक ध्यान दे रहे हैं. सरकार को इस क्षेत्र में और पहल करने की अब जरूरत पड़ेगी. सरकार को इस क्षेत्र में और छूट देना होगा.

'लोकल मार्केट में कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं' : मखाना के बड़े एक्सपोर्ट्स में से एक भानु सरावगी का मानना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. भानु कहते हैं कि मखाना की डिमांड ज्यादा है और सप्लाई कम, यानी ये अंडर सप्लाई प्रोडक्ट है. इसलिए लोकल मार्केट में इसका कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है.
मखाना को बिहार के नजरिए से देखिए : बता दें कि पूरे देश का लगभग 85 प्रतिशत मखाना बिहार में होता है. मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, सहरसा, सुपौल जैसे जिले मखाना के उत्पादन में टॉप पर हैं. केन्द्र सरकार ने बिहार में मखाना बोर्ड बनाने का फैसला लिया है.

मखाना बन गया है सुपर फूड ब्रांड : मखाना को हेल्दी सुपर वेजीटेरियन फूड के तौर पर पहचान मिलने लगी है और इसकी डिमांड भी बढ़ी है. मखाना के कई उत्पाद चाहे रोस्टेड मखाना हो या मखाना का आंटा भी लोग पसंद करने लगे हैं. आयुर्वेद में भी मखाना के गुणों को विस्तार से बताया गया है. इसलिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कहते हैं कि हम 365 दिन में से 300 दिन मखाना का सेवन करते हैं.

किसानों में मायूसी : वैसे मखाना उत्पादन करने वाले कई किसानों का कहना है कि जिस सिद्दत से वो लोग मखाना का उत्पादन करते हैं, उस हिसाब से उन्हें फल नहीं मिलता है. ब्रह्मेश्र मुखिया, जो मल्लाह जाति से आते हैं उनका कहना है कि भले ही विश्व के बाजारों में इसकी कीमत हजारों रुपये में हों, पर उन्हें 500 से 700 रुपये प्रति किलो ही मखाना बेचना पड़ता है. जबकि इसमें काफी मेहनत होती है.
मखाना को मिला है GI टैग : बता दें कि मोदी सरकार में दिसंबर 2021 में मिथिला मखाना को GI टैग मिला था. केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत भौगोलिक संकेत अधिकार (GI) और भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (GIR) ने बिहार मखाना का नाम बदलकर मिथिला मखाना कर दिया था. GI टैग उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा जारी किया जाता है.
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