नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा के बाद अब दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से भी आम आदमी पार्टी की सत्ता चली गई है, एक दशक पहले प्रचंड बहुमत से दिल्ली में सरकार चलाने की शुरुआत करने वाली आम आदमी पार्टी से जुड़े संस्थापक सदस्य पहले ही किनारे हो गए थे, अब बीते कुछ महीनों से पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी दिल्ली से अधिक पंजाब में सक्रिय हैं. पढ़िए, क्या है रणनीति.
विधानसभा चुनाव हारने के बाद अब एमसीडी से बाहर, अब दिल्ली में AAP का क्या भविष्य है?
दिल्ली में लगातार हार के बाद आम आदमी पार्टी की भविष्य पर सवाल उठना बेवजह नहीं है. देश में जहां हर राज्य की राजनीति का मिजाज एक दूसरे से भिन्न है, ऐसे में आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अगर ऊपर उठाना चाहती है तो दो में से कोई एक फैक्टर ही है जो काम करता है. वह है, मजबूत हाईकमान और विचारधारा. बीजेपी जैसी पार्टी हरियाणा से महाराष्ट्र और कर्नाटक तक विचारधारा से एक सूत्र में जोड़ें रखती हैं, तो वहीं कांग्रेस जैसी पार्टी भी मजबूत हाईकमान के चलते हैं हिमाचल प्रदेश और दक्षिण के कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में सरकार चला पा रही है.

दो वर्षों में घोटालों में घिरी आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे व पूर्व विधायक राजेश गर्ग बताते हैं कि आम आदमी पार्टी की बात करें तो पार्टी कट्टर ईमानदारी, कट्टर देशभक्त और इंसानियत को अपनी विचारधारा बताती रही. मगर बीते दो वर्षों में दिल्ली में शराब घोटाला, शीश महल घोटाला और सरकारी योजनाओं में जिस तरह अब घोटाले की बात सामने आ रही है, इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की कट्टर ईमानदारी पर जबरदस्त डेंट लगा है.
दिल्ली में मेयर चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी का सरेंडर
दिल्ली सरकार के बाद अब दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में बहुमत मिलने के बाद तीन साल में ही आम आदमी पार्टी ने मेयर चुनाव से पहले अपने आप को सरेंडर कर दिया. इस पर राजनीतिक विश्लेषण नवीन गौतम बताते हैं कि दिल्ली में आम जनता का सरकार से अधिक वास्ता एमसीडी से पड़ता है. एक बच्चे के जन्म से लेकर किसी व्यक्ति की मृत्यु होने तक प्रमाण पत्र के लिए एमसीडी के चक्कर लगाने पड़ते हैं.
सड़क, मोहल्ले की साफ-सफाई, पार्कों का रखरखाव, नाली-गली से संबंधित मुद्दे शौचालय आदि नगर निगम से ही संबंधित हैं. इन्हीं मुद्दों को लेकर पिछले महीनों में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. आम आदमी पार्टी के नेता समझ रहे थे कि सत्ता परिवर्तन के बाद उनके लिए एमसीडी में भी काम कर पाना शायद उतना आसान नहीं होगा.

वर्ष 2022 में जब आम आदमी पार्टी सत्ता में आई तभी इस बात का अहसास हो गया. एमसीडी का काम दिखता है, जिसे पूरा करने में आप सफल नहीं हुई. ऐसे में पार्टी की रणनीति अब सरकार और एमसीडी के कामकाज को लेकर बीजेपी को घेरने की हो सकती है. जनता की समस्या उठाकर नाराजगी को कैश कराकर लोगों की सहानुभूति बटोरने की यह एक रणनीति हो सकती है. दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी विपक्ष की भूमिका में है अब पार्टी एमसीडी में भी विपक्ष की भूमिका में जाकर जनता की सहानुभूति को अपना समर्थन बढ़ाने के तौर पर कर सकती है.
आम आदमी पार्टी के सामने तीन बड़ी चुनौतियां
1. करीब ढाई महीने पहले दिल्ली सरकार से और अब एमसीडी से सत्ता गंवाने के बाद आम आदमी पार्टी के सामने अभी कार्यकर्ताओं और नेताओं में एकजुटता बनाए रखने की बड़ी चुनौती है. दिल्ली में हार के बाद आम आदमी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती पंजाब, गोवा, गुजरात से लेकर अन्य राज्यों तक पार्टी को एकजुट बनाए रखने की बड़ी चुनौती है.
2. विधानसभा चुनाव में ठीक पहले जिस तरह आम आदमी पार्टी के पार्षद बीजेपी में शामिल हुए, नतीजा है कि मेयर चुनाव होने से पहले ही आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के सामने खुद को सरेंडर कर दिया.
3. 25 अप्रैल को संपन्न हुए मेयर चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सोची समझी रणनीति के तहत प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया. अगर प्रत्याशी उतारने के बाद मेयर चुनाव में आप को बड़ी हार मिलती तो इसका असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी पड़ सकता था. तभी 21 अप्रैल को मेयर चुनाव के लिए नामांकन के दिन ही आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया कि चुनाव में वह प्रत्याशी नहीं उतारेगी और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

दिल्ली में मिली हार का क्या पंजाब में भी सरकार पर असर पड़ेगा?
कुछ महीने पहले तक देश के दो राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार थी. पार्टी राष्ट्रीय पार्टी होने का जश्न मना रही थी, अब दिल्ली की सत्ता से तो दूर हो ही गई, पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार जरूर है लेकिन बड़ा सवाल अब यह भी है कि वहां की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान पर हाईकमान कितना पकड़ रख पाता है.
आदमी पार्टी पर लगते रहे हैं वन मैन शो के आरोप
राजनीतिक विश्लेषज्ञ जगदीश ममगांई की मानें तो आम आदमी पार्टी वन मैन शो वाली पार्टी है, आम आदमी पार्टी को इस बात का अंदेशा पहले से था. इसी का नतीजा है कि दिल्ली का चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अब पंजाब पर होल्ड बनाने में जुट गए हैं. दिल्ली में मिली हार के तुरंत बाद वह विपश्यना के लिए पंजाब गए और उसके बाद में पंजाब सरकार के कामकाज को लेकर मीटिंग की, दौरे किए और चर्चा है अब वह पंजाब से ही राज्यसभा सदस्य चुनकर संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी में हैं.
आम आदमी पार्टी राजनीति को बदलने की बात कर सत्ता में आई थी, लेकिन क्या राजनीति ने उन्हें बदल दिया?
इस पर आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य और अरविंद केजरीवाल के कभी करीबी रहे राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव का कहना है कि वर्ष 2012 में अन्ना आंदोलन से आम लोगों ने जो वैकल्पिक राजनीति का सपना था वह तो बहुत पहले टूट चुका था. आम आदमी पार्टी राजनीति को बदलने आई थी, लेकिन राजनीति ने उन्हें बदल दिया. लगातार चुनाव हारने के बाद दिल्ली के आम इंसान के लिए कुछ किया जा सकता है इस संभावना को भी धक्का लगा है और इसके लिए आम आदमी पार्टी का नेतृत्व खुद जिम्मेदार है.

योगेंद्र कहते हैं कि केजरीवाल कहते थे हम सिक्योरिटी नहीं लेंगे, बंगला नहीं लेंगे, उसके बाद इतना बड़ा बंगला बनवाया हो वह शीश महल हो या ना हो सोने की कोई चीज हो या ना हो लेकिन एक बात तो तय है कि वह 'वह' नहीं है, जिसके सपने आम आदमी पार्टी देखते थी. शराब घोटाले में डायरेक्टली मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल इंवॉल्व हो या न हो, यह हम नहीं जानते. लेकिन यह तो है कि कुछ तो था शराब नीति में. दाल में काला तो था और कुछ गड़बड़ तो हो रही थी. अगर आप पूरी दुनिया को चोर बोल रहे हो, दुनिया पर उंगली उठा रहे हो तो तीन उंगली आपकी तरफ जो मुड़ती है उसे भी ध्यान से देखना शुरू कर देते.
आम आदमी पार्टी से पुराने नेताओं को निकालने व छोड़ना भी क्या एक बड़ी वजह है?
सीधी लाइन की राजनीति करने वाले केजरीवाल कब टेढ़ी लाइन चुन लें, यह अनुमान उनके साथी भी नहीं लगा पाते. यही कारण हैं कि उनके कई करीबी जब अपने मन की सुनने लगे तो उन्होंने धीरे से उन्हें किनारे लगा दिया. आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य व अरविंद केजरीवाल के काफी करीबी रहे आनंद कुमार कहते हैं कि अन्ना आंदोलन के बाद जब राजनीतिक पार्टी गठन करने का फैसला लिया गया और केजरीवाल चुनाव में उतरे तब बीजेपी, कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल के नेताओं ने केजरीवाल पर तरह-तरह के कमेंट किए. केजरीवाल बस यही कहते थे कि अब उन्होंने अपने जीवन को सार्वजनिक कर दिया है, तो जिसकी जितनी समझ है, उसके अनुसार अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है.

विधानसभा चुनाव के बाद अब एमसीडी से बाहर होने पर क्या है आम आदमी पार्टी का पक्ष?
इस चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब बीजेपी की चार इंजन की सरकार को काम करके दिखाना होगा. अब उसकी बहानेबाजी और बयानबाजी नहीं चलेगी. क्योंकि दिल्ली की जनता एक महीने में बीजेपी की असलियत जान जाएगी. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी ने दिल्लीवालों के हित में मेयर चुनाव का बहिष्कार किया. अब हम एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाएंगे.

सौरभ भारद्वाज का कहना है कि एमसीडी का चुनाव हारने के बावजूद बीजेपी किसी भी तरफ से सत्ता हथियाने की साजिश रचती रही है. वर्ष 2022 में एमसीडी का चुनाव जीतने के लिए उसने वार्डों का परिसीमन करवाया, जिसमें भारी गड़बड़ी की गई. फिर भी चुनाव में आम आदमी पार्टी को 134 सीटें मिलीं और बीजेपी को 104 सीटें मिलीं थीं. बीजेपी ने पहले मेयर चुनाव में जबरदस्ती एल्डरमैन से वोट डलवाने की कोशिशें की तो सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. तब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि एल्डरमैन वोट नहीं डाल सकते. इसके बाद से ही बीजेपी डरा-धमका कर और लालच देकर आम आदमी पार्टी के पार्षदों को अपने पाले में लाने की कोशिश में लगी हुई थी.
एमसीडी में मेयर चुनाव जीतने के बाद क्या कमाल करेगी बीजेपी?
इस पर बीजेपी के विधायक और दिल्ली सरकार के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि, AAP-दा ने दिल्ली की एमसीडी का बेड़ागर्क कर रखा था. दिल्ली में चारों तरफ गंदगी का अंबार था. क्या इसी गंदगी से भरी दिल्ली को AAP-दा पेरिस और लन्दन कहती थी? अब एमसीडी में बीजेपी का मेयर आने से और ट्रिपल इंजन की सरकार बनने से अब दिल्ली का विकास होगा.
ये भी पढ़ें- MCD मेयर चुनाव का बहिष्कार करेगी आम आदमी पार्टी, जानिए क्या बनाई है रणनीति
ये भी पढ़ें- मेयर चुनाव नहीं लड़ेगी आम आदमी पार्टी, बीजेपी का रास्ता साफ