नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि, निजी क्षेत्र के नियोक्ता और कर्मचारी अनुबंध की शर्तों से बंधे होते हैं. इसमें उस कोर्ट का क्षेत्राधिकार भी शामिल है जहां उनके विवादों का समाधान किया जाना चाहिए, भले ही प्रबंधन एक 'शक्तिशाली शेर' और कर्मचारी एक 'डरपोक खरगोश' क्यों न हो.
जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की बेंच ने HDFC बैंक की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया. इसमें कहा गया था कि पटना और दिल्ली में कार्यरत दो कर्मचारियों राकेश और दीप्ति की बर्खास्तगी से संबंधित विवाद का फैसला बैंक के मुख्यालय मुंबई में किया जाना चाहिए, जो दोनों के साथ किए गए रोजगार अनुबंधों के अनुसार बैंक का मुख्यालय है.
बेंच की ओर से निर्णय लिखने वाले जस्टिस दत्ता ने कहा, "कोई भी अनुबंध, चाहे वह वाणिज्यिक हो, बीमा हो... बिक्री हो, सेवा हो, आदि आखिरकार एक अनुबंध ही है. इसमें शामिल पक्षों या उनकी आपसी ताकतों की परवाह किए बिना यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है. अनुबंधों को बिना किसी पक्षपात या भेदभाव के समान माना जाना चाहिए. यह तथ्य कि एक पक्ष अधिक शक्तिशाली या प्रभावशाली है (शक्तिशाली शेर) और दूसरा अधिक कमजोर (डरपोक खरगोश) संविदात्मक सिद्धांतों के अनुप्रयोग में अपवाद या भेदभाव करने का औचित्य नहीं देता है.
बेंच ने 8 अप्रैल को दिए गए फैसले में कहा कि, राकेश और दीप्ति ने नियुक्ति पत्र, रोजगार समझौते की शर्तों को स्वीकार कर लिया है और अपने-अपने पदों पर शामिल होकर इसकी शर्तों पर काम किया है. वे संभवतः इस बात पर दूसरे विचार से अनुबंध से बच नहीं सकते थे कि इसमें निहित शर्तें बाद के चरण में उनके लिए फायदेमंद नहीं हो सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एचडीएफसी बैंक का यह दावा उचित है कि मुकदमे मुंबई की एक उचित अदालत में चलाए जाने चाहिए थे.
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