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चंपारण सत्याग्रह के 107 साल, ना गोली चली.. ना लाठी-डंडे.. फिर भी बिहार से मिली पूरे देश को जीत - 107 YEARS OF CHAMPARAN SATYAGRAHA

चंपारण सत्याग्रह के 107 साल पूरे हो गए हैं. किसानों पर हो रहे जुल्म को खत्म करने के लिए महात्मा गांधी बिहार आए थे.

107 years of Champaran Satyagraha
चंपारण सत्याग्रह के 107 साल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 10, 2025 at 10:17 AM IST

4 Min Read

बेतिया: इतिहास के पन्ने का आज वो वह दिन है, जिसे कभी कोई भूल नहीं सकता है. सत्य और अहिंसा की लड़ाई इस कदर लड़ी गई कि इस आंदोलन ने एक सत्याग्रह का रूप ले लिया. 10 अप्रैल, 1917 यही वो दिन है, जब एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें न गोली चली और न लाठी, न जुलूस निकला और न कोई बड़ी सभा हुई. गिरफ्तारी हुई तो आरोपी ने खुद ही जमानत लेने से इनकार कर दिया.

चंपारण सत्याग्रह के 107 साल: दरअसल आज ही के दिन आजादी के आंदोलन का पहला सत्याग्रह शुरू हुआ था. इसे 'चंपारण सत्याग्रह' के नाम से जाना गया. 1917 में चंपारण सत्याग्रह हुआ जो महात्मा गांधी द्वारा भारत में पहला सत्याग्रह था. आज उस आंदोलन के 107 साल पूरे हो गये हैं, जिसे चंपारण सत्याग्रह कहा जाता है. आंदोलन किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर करने के खिलाफ था.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

135 सालों की प्रथा का हुआ था खात्मा: किसानों को ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जा रहा था. इसकी जानकारी जैसे ही महात्मा गांधी को मिली तो वह तुरंत चंपारण पहुंचे. उन्होंने सत्य और अहिंसा के जरिए एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें न गोली चली और न लाठी. अहिंसा के जरिए 135 साल से चली आ रही नील की खेती प्रथा का अंत किया था.

चंपारण सत्याग्रह का इतिहास: यह भारत में गांधीजी द्वारा नेतृत्व किया गया पहला सत्याग्रह आंदोलन था. गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. चंपारण सत्याग्रह ने भारत के युवा और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी. गांधी जी का यह सत्याग्रह एक दिन रंग लाया और 4 मार्च, 1918 को विधेयक अंततः पारित हो गया और चंपारण कृषि अधिनियम बन गया.

107 years of Champaran Satyagraha
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

तीन कट्ठा खेत में नील की खेती: दरअसल बिहार के पश्चिमोत्तर इलाके में स्थित चंपारण में अंग्रेजों ने तीनकठिया प्रणाली लागू कर दी थी. इसके तहत एक बीघा जमीन में तीन कट्ठा खेत में नील लगाना किसानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया. पूरे देश में बंगाल के अलावा यहीं पर नील की खेती होती थी. किसानों को इस मेहनत के बदले में कुछ भी नहीं मिलता था.

पहली बार चंपारण आए थे गांधीजी: किसान नेता राजकुमार शुक्ला के आग्रह पर 15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए. चंपारण के किसान नील की खेती से तबाह हो गए थे, लेकिन नील की खेती उनकी मजबूरी थी. अंग्रेजों ने तीन कठिया व्यवस्था लागू कर दी थी, जिसके तहत एक बीघा में से तीन कट्ठे पर नील की खेती अनिवार्य कर दी गई.

बदतर हो गई थी किसानों की हालत: किसानों के लिए मुश्किलों की शुरुआत यहीं से हुई. यहां तक की बुआई के लिए जमीन जमादार तय करते थे. यानी किसान जमीन के किस हिस्से पर नील बोयेगा यह किसानों के हाथ में नहीं था. फसल की कीमत बेहद कम होती थी. वह भी किसानों को नहीं मिलता था. मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी.

107 years of Champaran Satyagraha
15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए (ETV Bharat)

चंपारण महात्मा गांधी का बना प्रयोगशाला: गांधीजी ने चंपारण में सत्य व अहिंसा पर पहला प्रयोग किया और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया. गांधीजी का चंपारण सत्याग्रह सफल रहा और अंग्रेज झुकने को मजबूर हुए. चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल 1917 में हुआ था.

107 years of Champaran Satyagraha
चंपारण सत्याग्रह के 107 साल (ETV Bharat)

"गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाएं हुए अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. किसानों के इस आंदोलन को ही सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग माना जाता है. इसी आंदोलन के तहत महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के जरिए किसानों के शोषण पर रोक लगा दी."- अनिरुद्ध चौरसिया, गांधीवादी

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बेतिया: इतिहास के पन्ने का आज वो वह दिन है, जिसे कभी कोई भूल नहीं सकता है. सत्य और अहिंसा की लड़ाई इस कदर लड़ी गई कि इस आंदोलन ने एक सत्याग्रह का रूप ले लिया. 10 अप्रैल, 1917 यही वो दिन है, जब एक ऐसा आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें न गोली चली और न लाठी, न जुलूस निकला और न कोई बड़ी सभा हुई. गिरफ्तारी हुई तो आरोपी ने खुद ही जमानत लेने से इनकार कर दिया.

चंपारण सत्याग्रह के 107 साल: दरअसल आज ही के दिन आजादी के आंदोलन का पहला सत्याग्रह शुरू हुआ था. इसे 'चंपारण सत्याग्रह' के नाम से जाना गया. 1917 में चंपारण सत्याग्रह हुआ जो महात्मा गांधी द्वारा भारत में पहला सत्याग्रह था. आज उस आंदोलन के 107 साल पूरे हो गये हैं, जिसे चंपारण सत्याग्रह कहा जाता है. आंदोलन किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर करने के खिलाफ था.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

135 सालों की प्रथा का हुआ था खात्मा: किसानों को ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जा रहा था. इसकी जानकारी जैसे ही महात्मा गांधी को मिली तो वह तुरंत चंपारण पहुंचे. उन्होंने सत्य और अहिंसा के जरिए एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें न गोली चली और न लाठी. अहिंसा के जरिए 135 साल से चली आ रही नील की खेती प्रथा का अंत किया था.

चंपारण सत्याग्रह का इतिहास: यह भारत में गांधीजी द्वारा नेतृत्व किया गया पहला सत्याग्रह आंदोलन था. गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाए हुए अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. चंपारण सत्याग्रह ने भारत के युवा और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी. गांधी जी का यह सत्याग्रह एक दिन रंग लाया और 4 मार्च, 1918 को विधेयक अंततः पारित हो गया और चंपारण कृषि अधिनियम बन गया.

107 years of Champaran Satyagraha
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

तीन कट्ठा खेत में नील की खेती: दरअसल बिहार के पश्चिमोत्तर इलाके में स्थित चंपारण में अंग्रेजों ने तीनकठिया प्रणाली लागू कर दी थी. इसके तहत एक बीघा जमीन में तीन कट्ठा खेत में नील लगाना किसानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया. पूरे देश में बंगाल के अलावा यहीं पर नील की खेती होती थी. किसानों को इस मेहनत के बदले में कुछ भी नहीं मिलता था.

पहली बार चंपारण आए थे गांधीजी: किसान नेता राजकुमार शुक्ला के आग्रह पर 15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए. चंपारण के किसान नील की खेती से तबाह हो गए थे, लेकिन नील की खेती उनकी मजबूरी थी. अंग्रेजों ने तीन कठिया व्यवस्था लागू कर दी थी, जिसके तहत एक बीघा में से तीन कट्ठे पर नील की खेती अनिवार्य कर दी गई.

बदतर हो गई थी किसानों की हालत: किसानों के लिए मुश्किलों की शुरुआत यहीं से हुई. यहां तक की बुआई के लिए जमीन जमादार तय करते थे. यानी किसान जमीन के किस हिस्से पर नील बोयेगा यह किसानों के हाथ में नहीं था. फसल की कीमत बेहद कम होती थी. वह भी किसानों को नहीं मिलता था. मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी.

107 years of Champaran Satyagraha
15 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी चंपारण आए (ETV Bharat)

चंपारण महात्मा गांधी का बना प्रयोगशाला: गांधीजी ने चंपारण में सत्य व अहिंसा पर पहला प्रयोग किया और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया. गांधीजी का चंपारण सत्याग्रह सफल रहा और अंग्रेज झुकने को मजबूर हुए. चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल 1917 में हुआ था.

107 years of Champaran Satyagraha
चंपारण सत्याग्रह के 107 साल (ETV Bharat)

"गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने आजमाएं हुए अस्त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण की धरती पर ही किया. किसानों के इस आंदोलन को ही सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग माना जाता है. इसी आंदोलन के तहत महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के जरिए किसानों के शोषण पर रोक लगा दी."- अनिरुद्ध चौरसिया, गांधीवादी

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