Assembly Elections Result: गुजरात में दिखा मोदी 'असर', पर हिमाचल रहा 'बेअसर'

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Published : Dec 8, 2022, 5:08 PM IST

Updated : Dec 11, 2022, 1:50 PM IST

BJP's massive victory in Gujarat, Congress's victory in Himachal

गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है, वहीं दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा को पछाड़ते हुए अपना परचम लहराया है. लेकिन कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने भी इन चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पढ़ें इन विधानसभा चुनावों पर ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट का एक विश्लेषण.

हैदराबाद : गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का अंदाजा पहले से ही था. पार्टी ने अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए नया रिकॉर्ड बना डाला. जाहिर है, इसका क्रेडिट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा के अन्य नेताओं द्वारा चलाए गए शक्तिशाली अभियान को जाता है. जनता के इस अपार समर्थन के लिए पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार अपील की थी. और आज की इस जीत ने दिखा दिया कि उनकी अपील का असर जनता पर किस हद तक पड़ता है. आधे से अधिक मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया.

आज की इस जीत ने विपक्ष और विपक्ष की धार, दोनों को कुंद कर दिया है. अब भाजपा राज्य विधानसभा में अपने दम पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होगी. अगले पांच वर्षों में विपक्ष के विधायकों की संख्या को देखते हुए, सदन में सत्तारूढ़ दल के विपरीत बैठी गैलरी से शायद ही कोई आवाज सुनाई देगी. कुछ भी नहीं, यहां तक कि दलित मुद्दा, बिल्किस बानो बलात्कार का मामला या सत्ता विरोधी लहर भी भाजपा को प्रभावित नहीं कर सकी.

मोदी और मोदी की विशाल छवि ने इन मुद्दों को ढंक लिया, या कहें तो आच्छादित कर लिया, जो अन्यथा भाजपा के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता था. पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता, पन्ना प्रमुखों ने लोगों से कहा कि अगर पार्टी ने उनके लिए पर्याप्त नहीं किया है, तो उन्हें अनदेखा कर दें, लेकिन मोदी को वोट देने का आग्रह जरूर किया. उन्होंने मोदी को मिट्टी का लाल बताकर वोटरों को भावनात्मक रूप से जोड़ा. विपक्षी खेमे के उम्मीदवार- कांग्रेस, आप, AIMIM- के बीच बंटे रहे, वे एक दूसरे का विरोध ही करते रह गए.

इसलिए विपक्ष को जो भी वोट मिला, वह बिखर गया. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में इतने सारे मुस्लिम उम्मीदवार थे कि वे केवल विभाजन के स्रोत के रूप में काम कर सकते थे और किसी भी विपक्षी दलों को लाभ नहीं पहुंचा सकते थे, यहां तक कि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम को भी नहीं. राज्य में भाजपा का भारी बहुमत एक सोची-समझी रणनीति का परिणाम है, जिसे पार्टी ने पिछले सूरत नगरपालिका चुनावों में आप के अच्छे प्रदर्शन के जवाब में अपनाया हो सकता है, जब उसने 27 सीटें जीती थीं.

भाजपा ने किसी न किसी कारण से ओवैसी के गुजरात के नियमित दौरे पर भी ध्यान दिया. उनके लिए, कांग्रेस एक बड़ा खतरा था जो पहले मौजूद था, विशेष रूप से सौराष्ट्र क्षेत्र में, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कांग्रेस के प्रभाव को कम करने के लिए अभियान शुरू किया था. जब उन्होंने पूरे राज्य के लोगों को संबोधित किया, तो वह वास्तव में सौराष्ट्र क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे और कई रैलियां कीं. उन्होंने उस क्षेत्र में विपक्ष के खिलाफ तीखा हमला किया, जो पहले कांग्रेस का गढ़ रहा था, जहां उन्होंने पिछले चुनावों में अधिकांश सीटें जीती थीं.

2017 में, कांग्रेस ने सौराष्ट्र की 48 में से 28 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने इस क्षेत्र से केवल 19 सीटें जीतीं. उत्तर गुजरात की 53 सीटों में से 24 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी के गृहनगर वडनगर, उंझा में भी कांग्रेस प्रत्याशी ने भाजपा प्रत्याशी को करीब 19000 वोटों से हरा दिया था. लेकिन इस बार, भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा अपने समर्थन के आधार से परे घुस गई है और समाज में हठधर्मिता को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रवेश कर गई है. हिंदुत्व के इस विचार ने राज्य में विपक्ष को वस्तुतः महत्वहीन बना दिया है.

हालांकि, हिमाचल में यह पैटर्न नहीं देखा गया. यहां पर भाजपा अपनी उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी. वह राज्य में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक संख्या में सीटें भी हासिल करने में असमर्थ रही. राज्य में मुस्लिम वोट प्रतिशत को देखते हुए, हिदुत्व का विचार पहाड़ी राज्य में भाजपा के लिए काम नहीं आया. यहां मुख्यतः सरकारी कर्मचारी थे, जिन्होंने शायद समग्र रूप से मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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जाहिर सी बात है कि पुरानी पेंशन योजना के वादों से कांग्रेस को सबसे अधिक फायदा पहुंचा है. गुजरात में जो भगवा छाया देखी गई, वह हिमाचल प्रदेश में पूरी तरह से विपरीत है. कांग्रेस पहाड़ी राज्य में सरकार बना रही है, जबकि भाजपा सातवीं बार गुजरात में सत्ता पर काबिज होने जा रही है. हिमाचल में हर पांच साल में सरकार बदलने का पैटर्न नहीं बदला है. इस बार भी यही ट्रेंड बना हुआ है.

लेकिन गुजरात ने जो रुझान स्थापित किया है, उससे निश्चित रूप से भाजपा को दीर्घकालिक लाभ होगा क्योंकि अगले वर्ष और राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं. अपनी विफलताओं से सीखने में पार्टी की जिस तरह की कुशाग्रता है, उसे देखते हुए यह विपक्ष के लिए प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है.

Last Updated :Dec 11, 2022, 1:50 PM IST
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