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पुलिस की डिक्शनरी से गायब होंगे उर्दू और फारसी शब्द, अब करना होगा इन शब्दों का इस्तेमाल - Urdu Persian Word removed MP Police

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 15, 2024, 8:16 PM IST

गैर इरादतन, दस्तयाब, मुखातिब, जब्त, मुचलका, खैरियत,दफा, इत्तिला, जरायम जैसे दर्जनों उर्दू और फारसी के शब्द पुलिस विभाग की आम बोलचाल की भाषा में शामिल हैं लेकिन ऐसे सभी शब्दों के इस्तेमाल पर अब पाबंदी लगा दी गई है.

POLICE DEPARTMENT BAN URDU WORDS
हिंदी शब्दों के इस्तेमाल के लिए आदेश जारी (ETV Bharat)

पुलिस की डिक्शनरी से गायब होंगे उर्दू और फारसी शब्द (ETV Bharat)

राजगढ़। पुलिस विभाग की आम बोलचाल की भाषा में उर्दू और फारसी के सैकड़ों ऐसे शब्द हैं जो हिंदी से ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. इन शब्दों का इस्तेमाल कागजी कार्रवाई समेत बोलचाल की भाषा में उपयोग होता है. पुलिसकर्मी या पेशेवर लोग इन्हें आसानी से समझ लेते हैं लेकिन कई बार शिकायतकर्ता या दूसरे लोग इन्हें नहीं समझ पाते. ऐसे में मध्यप्रदेश पुलिस के एक नए आदेश के अनुसार ऐसे सभी उर्दू और फारसी के शब्दों के इस्तेमाल को बंद कर हिंदी शब्दों के इस्तेमाल करने के निर्देश दिए गए हैं. हालांकि जानकार और वकीलों का मानना है कि कुछ शब्द बंद किए जा सकते हैं लेकिन सभी शब्दों पर रोक लगाना सही नहीं है.

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक का आदेश

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, मध्यप्रदेश पवन कुमार श्रीवास्तव के द्वारा 13/05/2024 के स्मरण पत्र में दिए गए दिशा निर्देशों के अनुसार पुलिस विभाग की कागजी कार्रवाई में उर्दू ,फारसी और अन्य शब्दों की जगह हिंदी शब्दो का प्रयोग किया जाएगा. जिसके संबंध में शब्दकोश की एक प्रति प्रदेश के सभी पुलिस अधीक्षक को भी भेजी जा चुकी है. इस आदेश में कहा गया है कि यह देखा जा रहा है कि वर्तमान में पुलिस विभाग द्वारा की जा रही कार्रवाई में उर्दू, फारसी समेत अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है. शासन द्वारा अपेक्षा की गई है कि पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई में गैर हिन्दी शब्दों के स्थान पर हिन्दी शब्दों का प्रचलन अधिक हो.

'ये कोई न्यायिक निर्णय नहीं बल्कि राजनीतिक निर्णय'

राजगढ़ के एडवोकेट शेख मुजीब ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि "इससे न्यायिक प्रक्रिया में कोई बदलाव आने की संभावना नहीं है,बल्कि ये कोई न्यायिक निर्णय नहीं बल्कि राजनीतिक निर्णय है. कुछ शब्द बदलने से कार्यप्रणाली और न्याय का इससे कोई मतलब नहीं है. शब्द की एक टर्मिनोलॉजी है और जो भाषाएं है उनका अर्थ है. ये वर्षों से चला आ रहा है और ये हमारे जीवन में रच-बस चुका है. इसको बदलने से असमानता,विषमता,परेशानियां और मुश्किलें ही पैदा होंगी."

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'सभी शब्द हटाना जरूरी नहीं'

ईटीवी भारत से बात करते हुए आरटीआई एक्टिविस्ट तनवीर वारसी कहते हैं कि "ये सामान्य है गृह विभाग का वर्ष 2022 का यह आदेश है जिस पर अमल अब वर्ष 2024 में किया जा रहा है. जिस तरह से उर्दू और फारसी शब्दों को हटाने या कम इस्तेमाल करने का जो आदेश जारी किया गया है. आपको ये बता दूं कि हमारे देश की जो हिंदी भाषा है इसमें संस्कृत, फारसी और अरबी मिल चुके हैं. इनको इस शब्दकोश से निकालना मायने नहीं रखता. इसमें कई शब्द ऐसे भी हैं जिसे मुस्लिम वर्ग के लोग भी नहीं जानते जैसे दस्तयाब करना, तहरीर भेजना ऐसे शब्दों को बंद कर कर सामान्य भाषा में आसान शब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए."

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