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बिहार के राकेश से मिलिए, अखबार बेचते-बेचते प्रोफेसर बन गए, जानें संघर्ष की कहानी - SUCCESS STORY

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 18, 2024, 8:28 PM IST

अधिकतर लोगों के दिन की शुरुआत अखबार से होती है. हॉकर घर के बाहर न्यूज पेपर डालकर रोज चला जाता है और ज्यादातर लोग तो उसे जानते भी नहीं हैं. लेकिन भागलपुर के न्यूज पेपर बेचने वाले राकेश कुमार उर्फ कन्हैया को सभी जानते हैं. राकेश सिर्फ अखबार के हॉकर नहीं बल्कि हिंदी के प्रोफेसर भी हैं. जानें उनके संघर्ष की कहानी.

भागलपुर के प्रोफेसर राकेश कुमार बेचते हैं न्यूज पेपर
भागलपुर के प्रोफेसर राकेश कुमार बेचते हैं न्यूज पेपर (ETV Bharat)

देखें ये रिपोर्ट (ETV Bharat)

भागलपुर: सफलता और संघर्ष के बीच कड़ी मेहनत का अहम रोल होता है. कई बार असफलता मेहनत पर हावी हो जाती है और इंसान हार मानकर बैठ जाता है. लेकिन कई ऐसे लोग भी होते हैं जो लाख कठिनाइयों और असफलता का मुंह देखने के बावजूद हार नहीं मानते. उन्हीं लोगों में से एक भागलपुर के राकेश कुमार हैं.

न्यूज पेपर बेचने वाले राकेश बने प्रोफेसर : ज्ञान हमारे चारों तरफ होता है, इसे सच साबित कर दिखाया है नाथनगर के अनाथालय रोड के रहने वाले राकेश कुमार उर्फ कन्हैया ने. 22 साल से न्यूज पेपर बेचने वाले राकेश पीएचडी कर हिंदी के प्रोफेसर बन गए हैं. न्यूज पेपर सिर्फ बेचते ही नहीं बल्कि खुद भी उससे ज्ञान प्राप्त करते और उसी का फल है कि चार साल पहले वह प्रोफेसर बन गए.

ETV Bharat GFX.
ETV Bharat GFX. (ETV Bharat)

प्रोफेसर साहब ने नहीं छोड़ा न्यूज पेपर बेचना : राकेश अभी वर्तमान में सुल्तानगंज के एक प्राइवेट कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं.बावजूद इसके वह घर-घर घूम कर न्यूज पेपर बेचते हैं. राकेश का कहना है जिस व्यवसाय से मेरे पूरे परिवार का भरण पोषण हुआ जिस व्यवसाय से मैं पढ़ लिखकर एक प्रोफेसर बना उस व्यवसाय को मैं नहीं छोड़ सकता.अब राकेश का सपना है अपने छोटे भाई को बड़ा अधिकारी बनाने का.

''मैं रोज अपने बड़े भाई को देखता हूं, सुबह-सुबह वो पेपर बेचने घर से निकल जाते हैं. लौटने के बाद कॉलेज पढ़ाने चले जाते है. खाली समय में खुद भी पढ़ते है. जब भैया को कुछ काम होता है तो कभी-कभी मैं भी पेपर बेचने चला जाता हूं. मेरे भैया के कारण ही आज मैं पढ़ पा रहा हूं.'' - सूरज कुमार, राकेश का छोटा भाई

बिहार के प्रोफेसर साहब पिछले 22 सालों से बेच रहे अखबार
बिहार के प्रोफेसर साहब पिछले 22 सालों से बेच रहे अखबार (ETV Bharat)

10वीं के बाद दिल्ली में की मजदूरी: राकेश ने बताया कि ‘परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. परिवार बड़ा था और कमाने वाले अकेले पिताजी थे. इस कारण 10वीं के बाद मैं दिल्ली चला गया. वहां पर मजदूरी करने लगा. वहां से जब वापस घर आया, तो यहीं घर-घर घूमकर पेपर बेचना शुरू कर दिया. इसी कमाई से पढ़ाई भी जारी रखी. वह एक प्रोफेसर को भी पेपर देते थे. उनकी सलाह पर टीएमबीयू से न्यूजपेपर पर ही पीएचडी कर ली.

"मैं घर-घर न्यूज पेपर बेचा करता था. तभी मुझे एक प्रोफेसर मिले और उन्होंने पढ़ाई करने की सलाह दी और मैंने न्यूज पेपर पर ही पीएचडी कर ली. उसके बाद एक प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी ज्वाइन की. जीवन के संघर्ष में कई पतझड़ देखे हैं. इस संघर्ष में मुझे चार बार पढ़ाई छोड़नी पड़ी. घर की स्थिति देखकर मैट्रिक करने से पहले ही मैं 1996 में दिल्ली चला गया. वहां रिक्शा और ठेला चलाया." - राकेश कुमार, हिंदी के प्रोफेसर

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घर-घर सिलेंडर पहुंचाया, पेपर बेचा : 22 वर्ष से अखबार बेच रहे कर्मयोगी ने अखबार पर ही थीसिस लिखकर अपने नाम के आगे डाक्टर जोड़ लिया. संघर्ष कम नहीं था. कभी उन्होंने दिल्ली में ठेला-रिक्शा चलाया था. अखबार बांटने के बाद गैस सिलेंडर भी घर-घर पहुंचाते थे.

मजदूरी की और इस विषय में कर ली पीएचडी: इन्हें घर संभालने के लिए मजदूरी तक करनी पड़ी. बिहार के भागलपुर के राकेश को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग से 18 दिसंबर को डाक्टर की उपाधि मिली है. विषय है- हिंदी पत्रकारिता में एक अखबार का योगदान (संदर्भ बिहार, भागलपुर).

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पूरे परिवार का भरण पोषण करते हैं राकेश: राकेश बताते हैं कि वह अपने जीवन के संघर्षों की कहानी अपने बच्चों को सुनना चाहते हैं और प्रेरणा देना चाहते हैं. वह अपने अखबार बेचने के काम को लगातार करना चाहते हैं. वहीं उनकी पत्नी लुसी का कहना है कि ''मेरे पति हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं. हमारा पूरा परिवार उनके (राकेश) संघर्ष में शामिल है और उन्हें भरपूर सहयोग प्रदान करता है. उम्मीद है अपनी मेहनत से राकेश सफलता की नई ऊंचाइयों को छुए, जिसके लिए वे दिन रात प्रयासरत हैं.''

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